पंचक्रोशी यात्रा विशेष : पंचक्रोशी यात्रा के पहले दिन ऐसे करें यात्रा पूर्ण
काशी में अनेक शिवभक्त काशी नगरी की पंचक्रोशी यात्रा करने की इच्छा व्यक्त कर रहे हैं,परंतु उन्हें इस पुनीत यात्रा का ज्ञान नहीं
#चले श्री ढुंढीराज कृपा से कई पौराणिक पुस्तकों में वर्णित काशी की पंचकोशी यात्रा के पौराणिक विधि नियम कई खण्डों में इसे आप तक पहुँचने का प्रयास करूँगा #ॐ_विश्वेश्वराय_नमः
#पंचक्रोशी_यात्रा_विधि
प्रथम दिन मणिकर्णिका स्नान कर मच्छोदरी मत्स्यतीर्थ में मार्जन कर तारक तीर्थ में मार्जन, ओंकारेश्वर महादेव का दर्शन कर ओंकार और मकार का पूजन और मणिकर्णिका कुण्ड में मार्जन और पूजन के पश्चात् आत्मावीश्रेश्वर का पूजन, संकठा जी का दर्शन पूजन कर घर जाय । रात्रि में हविष्य भोजन करे। दूसरे दिन प्रातः मणिकर्णिका स्नान कर नित्य यात्रा करे ।
ज्ञानवापी व्यासासन से आचार्य द्वारा नियम लेकर प्रथम दिन अन्तरगृही यात्रा पापों के शान्त्यर्थ करना चाहिये। यात्रा से लौट कर यात्रा के सभी देवताओं के नाम से अक्षत छोड़ना चाहिये । फिर यात्रा का संकल्प पूर्ण कर आचार्य को यथाशक्ति दक्षिणा देकर आशीर्वाद लेकर घर जाना चाहिये । उसी दिन सायंकाल ढुंढिराज गणेश को लड्डू और सुपाड़ी दक्षिणा चढ़ा कर यह प्रार्थना मंत्र पढ़े, या आचार्य द्वारा सुने और आज्ञा ले ।
ढुंढिराजगणेशान महाविघ्नौघनाशन ।
पञ्चक्रोशस्य यात्रार्थं देह्याज्ञां कृपया विभो ।। १७ ।।
दूसरे दिन प्रातःकाल मणिकर्णिका घाट पर स्नान करे और चक्रपुष्करिणी में स्नान या मार्जन कर ज्ञानवापी कूप में स्नान या मार्जन के बाद विश्वनाथ जी की विधिवत् पूजा करें।
विश्वेशं त्रिःपरिक्रम्य, दण्डवत् प्रणिपत्य च ।
मोदं प्रमोदं सुमुखं, दुर्मुखं गणनायकम् ।। १८ ।।
अन्नपूर्णा जी की पूजा के बाद आदित्य, द्रौपदी की पूजा करे। विष्णु की पूजा के बाद फिर ढुंढिराज गणेश की पूजा करे। तत्पश्चात् दण्डपाणि का दर्शन-पूजन करे। फिर गंगेश्वर महादेव का पूजन करे, जो ज्ञानवापी से उत्तर पीपल के नीचे गुप्त हैं, स्थान की पूजा कर वहीं समीप में म०न० ३५/१ में गंगेश्वर लिंग की पूजा करे। फिर ज्ञानवापी की पूजा करे। वही पूर्व में नन्दिकेश्वर बगल में ताड़केश्वर की पूजा करें। दक्षिण पीपल के नीचे महाकालेश्वर, फिर महेश्वर, जो ज्ञानवापी से पश्चिम-दक्षिण कोण पर पीपल के नीचे मढ़ी में है पूजा करें। मस्जिद के पीछे मोक्षेश्वर नाम से स्थान की पूजा करे। आगे उत्तर पश्चिम कोण पर वीर भद्रेश्वर गुप्त है, उस स्थान की पूजा करे। फिर उत्तर फाटक के सामने कब्र के चौतरे पर गुप्त है उसी स्थान पर अविमुक्तेश्वर की पूजा करे। फिर मोद, प्रमोद, दुर्मुख, सुमुख, गणनाथ, पंचविनायकों का पूजन करना चाहिए।
प्रणम्य पूजयित्वादौ, दण्डपाणिं ततोऽर्चयेत् ।
कालराजं च पुरतो, विश्वेशस्य जगद्गुरोः ।। १६
तत्पश्चात् दण्डपाणि भैरव और कालभैरव का दर्शन पूजन करे ।
पूजयित्वा ततो गच्छेन्मणिकर्णि विधानतः ।
तत्र स्नात्वा महादेवं, मणिकर्णेशमर्चयेत् ।। २० ।।
कालभैरव से लौट कर पुनः मणिकर्णिका स्नान कर, ज्ञानवापी स्थित व्यासासन से आज्ञा-संकल्प प्रतिज्ञा मंत्र आचार्य से लें।
#शिवरहस्य_में_वर्णित_प्रतिज्ञा_मंत्र
श्रृणुष्वात्र विधिं सम्यक् पंचक्रोशी प्रदक्षिणे ।
यत् प्रदक्षिणमात्रेण नश्येत्पापकुलं शतम् ।।
उपवासः प्रयत्नेन कार्यो मुंडनपूर्वकम् ।
पंचगव्यं ततो ग्राह्यं स्नात्वा ज्ञानेशसंनिधौ ।
ततोऽन्तर्गृहयात्रापि कर्तव्या विधिपूर्वकम् ।।
मुक्तिमंडपमासाद्य ततः संकल्पमाचरेत् ।
करिष्ये विश्वनाथोऽहम् पंचक्रोशीप्रदक्षिणाम् ।।
आज्ञां देहि महादेव सर्वपापविमुक्तये ।
निष्ठीवनं कृतं काश्यां दत्तौ च चरणौ मया ।।
लिंगेष्वेव सदा शम्भो तत् पापं शान्तिमेष्यतु ।
काश्यां जलचराः केचित् पादाघातेन संहताः ।।
शिवरूप महादेव तत् पापं शान्तिमेष्यतु ।
काश्यां स्थलचराः कीटाः पादाघातेन संहताः ।।
करेण निहताः केचित् तत्पापं शान्तिमेष्यतु ।
प्रसक्तेन कदा सम्यक् अंतर्गेहे प्रदक्षिणम् ।।
मया न कृतमीशान तत्पापं शान्तिमेष्यतु ।
कदाचिदनृता वाणी निःसृता मन्मुखाच्छिव ।।
सर्वपापहरः शम्भो तत् पापं शान्तिमेष्यतु ।
कदाचित्रकृतं दैवाच्छेववर्यस्य वंदनम् ।
सर्वपापहरः शम्भो तत् पापं शान्तिमेष्यतु ।।
कदाचिदुदकं पीतं न कृत्वा भस्मधारणम् ।।
प्रमादेन महादेव तत् पापं शांतिमेष्यतु ।
मयापि शिवलिंगस्य निर्णेजनजलं शुभम् ॥
न पीतं पार्वतीनाथ तत् पापं शान्तिमेष्यतु ।
कदाचिद् बिल्वपत्रेण भ्रमादेव हि सर्वथा ।।
लिंगं न चार्चितं शम्भो तत् पापं शान्तिमेष्यतु ।
ज्ञानवापीजले रम्यें भ्रमेणैव कदाचन ।।
स्नानं न कृतमीशान तत् पापं शान्तिमेष्यतु ।
कदाचित् न कृतं शम्भो दण्डपाण्यर्चनं मया ।।
नार्चितो ढुंढिराजोऽपि तत् पापं शान्तिमेष्यतु ।
वीरेश्वरो भ्रमेणैव कदाचित् नार्चितो मया ।।
सर्वार्थदः कृपासिन्धो तत् पापं शान्तिमेष्यतु ।
श्रीमान् पशुपतीशोपि पशुपाशविमोचकः ।।
कदाचित् नार्चितः शम्भो तत् पापं शान्तिमेष्यतु ।
श्रीकालभैरवेशोपि भ्रमेणैव कदाचन ।।
नाराधितो महादेव तत् पापं शान्तिमेष्यतु ।
शिवगंगाजले स्नानं कदाचित् न कृतं मया ।।
आलस्येन विरूपाक्ष ! तत् पापं शान्तिमेष्यतु ।
प्रचण्डविघ्नसंहर्ता वक्रतुण्डेश्वरो मया ।।
कदाचित् नार्चितः शम्भो तत् पापं शान्तिमेष्यतु ।
ओंकारस्य महालिंगं भ्रमेणैव कदाचन। ।
मया नाभ्यर्चितं शम्भो तत् पापं शान्तिमेष्यतु ।
केदारेश्वरमासाद्य अनाराध्यैव संस्थितः ।।
कदाचिदपि विश्वेश तत् पापं शान्तिमेष्यतु ।
एवमुच्चार्य सकलानपराधान्यथाक्रमम्।।
ततः स्नात्वा ज्ञानवाप्यां पुनः संपूज्य शान्तितः ।
वीरेश्वरादि स्थानेषु गत्वा संपूज्य सादरम् ।।
पुनरभ्यर्चनं कार्यमपि भक्तिपुरःसरम् ।
ततो मौनेन नियमैः कृतांजलिपुटो नरः ।।
दण्डपाणिं प्रणम्यैव गन्तव्यं मुक्तिमण्डपात् ।
दिनाष्टकेन विधिवत् पंचक्रोशीप्रदक्षिणम् ।।
कर्तव्यमपि यत्नेन श्रद्धाभक्तिसमन्वितः ।
मध्ये सर्वेषु तीर्थेषु स्नात्वा संम्यग् यथाविधि ।।
श्राद्धं कार्य प्रयत्नेन स्वान्त्रैरपि च शोभने ।
पूजनीयाः प्रयत्नेन पंचक्रोशस्य रक्षकाः ।।
यात्राविघ्नहराः सर्वे वंदनीयाः प्रयत्नतः ।
सहस्नकोटिलिङ्गानि व्याख्यातान्ययुतानि च ।।
पंचक्रोशीमहामार्गे तिष्ठन्ति कमलानने।
पत्रपुष्पादिनैवेद्यैः श्रद्धया परयायुतः।।
पूजनीयानि लिङ्गानि यथाशक्ति यथाक्रमम् ॥
भैरवानां गणाः पूज्याः शोभनाङ्गा वरानने ।
संख्याऽनेन न वर्तन्ते दर्शनं चापि दुर्लभम् ।।
निराहारेण कुर्वन्ति देवगंधर्वदानवाः।
केचिन् मुनीश्वरा दिव्याः पंचक्रोशीप्रदक्षिणाम् ।।
पंचक्रोशस्य यात्रायां तिलमात्रमपि प्रिये ।
नातिक्रमेऽत्ययान्मार्गे गन्तव्यमतियत्नतः।।
करसंचय ऽयुक्तैश्च कृतांजलिपुटैः सदा।
मौनेनैव हि कर्तव्या पंचक्रोशीप्रदक्षिणा ॥
मामेव सर्वदा ध्यात्वा शिवमद्वयमव्ययम् ।
अकृतश्रवणासत्तेस्तत् कर्तव्यं प्रयत्नतः ।।
रात्री जागरणं कार्यं आदिनाष्टकमादरात् ।
भोजनीयाः प्रयत्नेन सेव्या ब्राह्मणपुंगवाः ।।
ततो ममांऽतिकं प्राप्य मामभ्यर्च्य शिवप्रिये ।
यात्रां निवेद्य शुभदां ततः स्वगृहमाविशेत् ।।
प्रतिपक्षं प्रकर्तव्यं पंचक्रोशीप्रदक्षिणम् ।
एवमेवातियत्नेन काशीवासरतैर्जनैः।।
एवं तु स्थूलमार्गेण पंचक्रोशीप्रदक्षिणा ।
यथाकथंचित् कर्तुं स्याद्देवैरपि न शक्यते ।।
यथाशास्त्रं कृता चेत् स्यान्मोक्षः स्यादेव तत् क्षणात् ।
पंचक्रोशस्य यात्रां वै करिष्ये विधिपूर्वकम् ।।
प्रीत्यर्थं तव देवेश विश्वनाथकृपानिधे। इति संकल्प्य मौनेन गन्तव्यं मणिकार्णिकाम् ॥
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इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता को जाँच लें । सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/ प्रवचनों /धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। जानकारी पूरी सावधानी से दी जाती हैं फिर भी आप पुरोहित से स्पस्ट कर लें।
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