Home 2023 जानिये, मांसाहारी को पुराण में क्यों कहा गया है महापापी , कौन 6 लोग होते है जीव हत्या में महापाप क

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जानिये, मांसाहारी को पुराण में क्यों कहा गया है महापापी , कौन 6 लोग होते है जीव हत्या में महापाप के भागी

– अजय शर्मा, काशी

धर्मांगद राजा को उपदेश करते हुए,सनन्दन ऋषि ने कहा कि – हे राजन्! समर्थ व्यक्ति को जीवों पर दया करना चाहिए, जीवों को मारना नहीं चाहिए।

सनंदन ऋषि ने कहा कि- हे राजन! किसी भी प्रकार से जीवों की हत्या करनेवाले,जीवहत्यारे ही हैं। भले ही वे धर्म को आगे करके जीवहत्या कर रहे हों,या देवी देवताओं के निमित्त जीवहत्या कर रहे हों,या मनोरंजन के लिए जीवहत्या कर रहे हों,अथवा स्वयं के स्वाद के लिए ही जीवहत्या कर रहे हों,जो मांसाहार का निमित्त हैं,या मांसाहारी हैं,ऐसे सभी स्त्री पुरुषों को जीवहत्यारा ही माना जाता है।

एक जीव के नाश में छ: लोग पापी माने जाते हैं। प्रथम वो,जो स्त्री पुरुष,मांस खाने का अनुमोदन करते हैं। दूसरे वो,जो पशु पक्षी,मछली को मारते हैं। तीसरे वो,जो अपने पाले पोसे जीव को बेचते हैं। चौथे वे जो, मांस खाते है। पांचवें वे,जो मांस पकाते हैं। छठवें वे,जो विग्रही अर्थात जो पशुओं पक्षियों को मारकर लाते हैं,या व्यवस्था करते हैं।

दंड का प्रविधान

हिंसया वर्तमानस्य व्यर्थो धर्मो भवेदिति।
कुर्वन्नपि वृथा धर्मान् यो हिंसामनुवर्तते।।8।।

– हिंसा करके किसी भी प्रकार का किया गया परोपकार,दान,पूजा उपासना आदि धर्म,सभी कुछ व्यर्थ हो जाता है।

इन छहों व्यक्तियों को,एक जीवघात का कारण मानकर, धर्मराज यमराज दण्ड देते हैं। या तो वर्तमान जीवन में अथवा मरने के पश्चात तो दण्ड प्राप्त होता ही है। यही नहीं शास्त्रों के अनुसार मांसाहारी स्त्री पुरुषों की संतानों को भी,माता पिता के पाप का फल भोगना पड़ता है।

मांसाहारी स्त्री पुरुषों के द्वारा किया गया कोई भी सत्कर्म, भी धर्म नहीं माना जाता है। हिंसा करना ही इतना बड़ा अधर्म है कि,अन्य परोपकार आदि धर्म तथा पूजा, उपासना, पाठ व्रत सभी कुछ निरर्थक हो जाता है।

जैसे,चोरी किए गए,धन का दान करने से,चोर को कोई भी पुण्य नहीं होता है,इसी प्रकार, मांसाहारी स्त्री पुरुषों के द्वारा किए गए,किसी भी प्रकार के सत्कर्म को पुण्य नहीं माना जाता है।

जिस धर्म में, मांसाहार को धर्म माना जाता है, वास्तव में वह अधर्म ही है।

शास्त्र में जीव हत्या के 6 भागी कौन

बृहन्नारदीय पुराण के, उत्तरखण्ड के,10 वें अध्याय के,9 वें श्लोक में, ब्रह्मापुत्र ,सनन्दन जी ने, देवर्षि नारद को,एक जीव की हिंसा में छ व्यक्तियों को पाप का भागी बताते हुए कहा कि –

षड्विधं नृप ते प्रोक्तं विद्वद्भिर्जीवघातनम्।
अनुमोदयिता पूर्वं द्वितीयो घातक:स्मृत:।
विश्वासकस्तृतीयोsपि चतुर्थो भक्षकस्तथा।।
पंचम:पाचक:प्रोक्त:षष्ठो भूपात्र विग्रही।
हिंसया संयुतं धर्ममधर्मं च विदुर्बुधा:।।9।।

पहला महापापी
अनुमोदयिता पूर्वम्। ( खाने का अनुमोदन करता हैं )

पूर्व अर्थात सर्वप्रथम महापापी, हिंसक जीवहत्यारे तो वे ही होते हैं,जो स्त्री पुरुष,मांस,अण्डा खाने का अनुमोदन करते हैं। जो स्त्री पुरुष,कहते हैं कि – अण्डा खाना चाहिए,गौमांस खाना चाहिए,तथा सभी जीवों का मांस खाना चाहिए। मनुष्यों के लिए, मांसाहार करना भी धर्म है। हमारे धर्म में, मांसाहार करने से इष्टदेव कुलदेव प्रसन्न होते हैं। देवी देवता प्रसन्न होते हैं। देवी देवताओं के नाम पर हिंसा जीवों की हत्या करनेवाले,तथा मांसाहार को ही धर्म बतानेवाले, जीवों की हत्या के प्रेरक हैं। अनुमोदन करनेवाले हैं। अनुमोदन करनेवाले स्त्री पुरुष,भले ही स्वयं ही मांसाहार नहीं करते हों, किन्तु इनकी प्रेरणा से दूसरे मूढ़ स्त्री पुरुष जीवहत्या करते हैं तो,अमुमोदकों को, प्रेरकों को भी, जीवहत्या का उतना ही पाप भोगना पड़ता है,जितना पाप,मारने खानेवाले को भोगना पड़ता है।

दूसरा महापापी
द्वितोयो घातक:स्मृत:। ( हिंसक,जीवघातक )

द्वितीय अर्थात दूसरा महापापी हिंसक,जीवघातक वे हैं, जो मुर्गा मुर्गी,बकरा बकरी,मछली,पक्षी,गाय भैंस को अपने हाथों से मारते हैं। वे स्त्री पुरुष तो निर्दयी,साक्षात राक्षस ही हैं,जो जीवों को तड़पते हुए देखते हुए भी, काटते मारते हैं। इनको भला,यमराज या प्रकृति कैसे क्षमा करेगी। ये तो महापापी हैं। जो स्त्री पुरुष, जीवों को स्वयं ही मारकर काटकर बेचते हैं,ऐसे स्त्री पुरुषों का विश्वास कभी नहीं करना चाहिए, और न ही ऐसों से किसी भी प्रकार का व्यवहार करना चाहिए।

तीसरा महापापी
विश्वासकस्तृतीयोsपि। (जीवों को पालक बुद्धि देकर मारते हैं )

जीवहत्या के महापापी स्त्री पुरुष वे भी हैं,विश्वासक हैं। अर्थात जीवों को पालक बुद्धि देकर मारते हैं। जब कोई स्त्री पुरुष,किसी गाय,भैंस,मुर्गा मुर्गी, मछली,बकरा बकरी को पालते हैं तो, उन जीवों को पालनेवाले पर विश्वास हो जाता है कि – ये हमारे रक्षक हैं। किन्तु वे पालक ही जीवों को विश्वास देकर,किसी हत्यारे को बेच देते हैं,या स्वयं ही मारकर खा जाते हैं,ऐसे स्त्री पुरुषों को “विश्वासक” शब्द से कहा जाता है। पालकर बेचनेवाले,भले ही स्वयं ही मांसाहारी न हों, किन्तु मांसाहारी को बेचने के कारण,इनको भी वही पाप लगता है जो, मांसाहारी स्त्री पुरुषों को लगता है। इनको भी वही दण्ड भोगना पड़ता है। इनकी संतानों को भी भोगना पड़ता है।

चौथा महापापी
चतुर्थो भक्षकस्तथा ( भक्षक अर्थात मांस खानेवाले )

सबसे बड़ा महापापी स्त्री पुरुष तो वे हैं,जो मांस भक्षण करते हैं। यदि कोई मांस नहीं खाते होते,तो मांस बेचनेवाले भी नहीं होते। जो मांस खानेवाले नहीं होते तो,कोई कोई उन पशुओं पक्षियों मछलियों का पालन ही क्यों करते। इसीलिए मांसाहारी स्त्री पुरुष ही, जीवहत्या के मुख्य आधार हैं। ये ही सबसे अधिक महापापी हैं। इनके कारण ही,ये महापाप होता है। मांसाहारी स्त्री पुरुषों को मरने के पश्चात,वही योनि प्राप्त होती है,जिस योनि के जीवों को इनने मार मारकर खाया है। इनको भी मार मारकर तड़पा तड़पा कर मारा खाया जाएगा। इनके बच्चों को भी इनके ही समक्ष वंशहीन किया जाएगा।

पांचवां महापापी
पंच: पाचको प्रोक्त: ( जो,मांस को पकाते हैं )

जीवहत्या के पांचवें महापापी स्त्री पुरुष वे हैं जो,मांस को पकाते हैं। पकानेवाले को पाचक कहते हैं। मांसपाचक अर्थात मांस को बनानेवाले स्त्री पुरुषों की संतानें ही इनकी दुर्दशा करतीं हैं। तड़पा तड़पाकर वृद्धावस्था में मृत्यु देते हैं।

छठवें महापापी
षष्ठो भूपात्र विग्रही ( झगड़ा करानेवाले स्त्री पुरुष )

विग्रही अर्थात झगड़ा करानेवाले स्त्री पुरुष। जो स्त्री पुरुष,दो जीवों को लड़वाते हैं, पक्षियों को लड़वाते हैं। भैंसा,सांड़ आदि को लड़वाकर,दूसरे निर्बल जीवों को,घाव करवाते हैं। मुर्गा लड़वाना,तीतर लड़वाना तथा भैंसा सांड़ आदि जीवों को लड़वाना आदि भी हिंसा है, जीवहत्या ही है।



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Author: Admin Editor MBC

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