अखंड भारत में कब आये मुसलमान..क्या प्रभू श्रीराम शासनकाल में मुसलमान थे ?
रामायण काल मे असुर थे, राक्षस थे, दानव थे. इनका क्षेत्र दंडकारण्य था. खर दूषण दंडकारण्य के राक्षस अधिपति थे. ऋषि मुनि ब्राह्मण और आम जनो को यज्ञ आदि नहीं करने देते थे या विघ्न डालते रहते थे. इनमे कुछ अनुभवी ज्ञानी भी थे जैसे मारीच आदि. दक्षिण भारत के हिस्से, मध्य भारत के हिस्से इनके अधिकार मे थे. बीच बीच मे वानर, आदि का भी कालोनी थी. इनके चार विचार आजकल के कुछ मास भक्षी लोगो से मिलते है लेकिन उनको मुसलमान नहीं कहा जा सकता. ये उन लोगो के ही पूर्वज थे जो गोमांस खाना अपना धर्म मानते है. जो लोग आर्यों कि सनातन परम्परा का तीव्र विरोध् करते है.
लीला पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण नाम की पुस्तक जिसके लेखक श्री भक्ति वेदांत प्रभुपाद है उसके अनुसार देवता और असुर मे अंतर बताया गया है. इन दोनों मे यही अंतर है कि जो लोग सदुपदेश ग्रहण करके अपना जीवन यापन सदुपदेशानुसार करने लगे वह देव तथा जो इन सदुपदेशों को समझने मे अक्षम होते है या जिनकी वृत्ति आसुरी नास्तिक होती है उनको असुर दानव कहते है.
आज भी बिहार झारखण्ड छत्तीसगढ़ मे कुछ लोग अपने नाम मे असुर लगते है और स्वयं को देवि दुर्गा द्वारा मारे गए असुर का वंशज मानते है. आजकल वाममार्गी, वामपंथी लोगो द्वारा जे एन यू मे इस तरह के उत्सव नवदुर्गा त्यौहार के समय मनाये जाते है.
रामायण काल मे पूरी धरती आबाद थी लेकिन राम जी का सम्पर्क सिर्फ भारत के हिमालय पहाड़ से लेकर अफ़ग़ानिस्तान से लेकर समुद्र के कुछ टापुओं तक सीमित था. समुद्र के ये टापू आजकल के श्री लंका मालदीव , इंडोनेशिया या ऑस्ट्रेलिया तक हो सकते है. ऑस्ट्रेलिया को रावण का अस्त्रालय कहा जाता है. तुलसीकृत रामचरितमानस के किष्किंधा कांड के दोहा 28 के अनुसार, लंका रामेश्वर से 100 योजन दूर थी, तो ये दुरी वर्तमान लंका से मेल नहीं खाती.
जो नाघइ सत जोजन सागर, करई सो रामकाज मति आगर।
मोहि विलोकि धरहु मन धीरा, राम कृपा कस भयउ सरीरा।।
इसी तरह राम राज्य कि विशालता के बारे मे उत्तर कांड रामचरित मानस मे कहा गया है कि
रामराज बैठे त्रेलोका, हर्षित भये गए सभी लोका
बयरु न कर कहु से कोई, राम प्रताप विषमता खोई
भूमि सप्त सागर मेखला, एक भूप रघुपति कोशला
भुयन अनेक रोम प्रति जासु, यह प्रभुता कछु बहुत न तासु
अर्थात राम राज्य मे सभी समान थे सुखी थे और राम राज कौशल नरेश राम सात सागरो के मध्य समस्त भूमि के राजा थे. कोई हिन्दू सनातनी दैत्य दानव नाग वानर राक्षस आदि सब सुखी सम्पन्न थे. आपसी वैमनस्य नहीं प्रेम था.
अफ़ग़ानिस्तान के हिस्से मे उस समय सनातन, वैदिक धर्म और आर्य संस्कृति का ही बोल वाला था.महाभारत मे कालयवन का जिक्र है, वह जरासंध का मित्र था और कृष्ण को मारने के लिए जरासंध कि मदद कर रहा था, लेकिन कृष्ण जी ने उसे दंड दिया था मुचुकुन्द से जलवाकर जो कि एक गुफा मे देवासुर संग्राम जीतकर सोये हुए थे और वरदान प्राप्त थे सूर्य वंशी क्षत्रिय थे. कालयवन किसी ऋषि का पुत्र था. और अरब देशो से था. कालयवन जैसा नाम से ही पता है यवन ही था. चन्द्रगुप्त मौर्य के समय भी म्लेच्छ थे, जो आर्य संस्कृति के खिलाफ थे. सिल्यूकस को भी यवन कहा गया है. अलक्षेन्द्र भी यवन ही था. आजकल के इजिप्ट या मिश्र देश से था.
मुसलमान का कुछ सन्दर्भ
द्वारिका मे हुए कृष्ण जी के वंश के यादव लोगो मे आपसी युध मे वर्णन है. महाभारत मे मुसल पर्व है उसमे जो मुसल शब्द उपयोग हुआ है तो उसको हम गदा कह सकते है, गदा लेकर यदुवंशी आपस मे भीड़ गए और लड़कर मर गए. मुस्लमान तो बस 1400 साल पहले बने है. उससे पहले ये सभी अरब के कबीलो मे रहने वाले मूरति पूजक ही थे. असभ्य और लूटेरे ही थे, मुहम्मद साब ने भी इसका जिक्र किया है. फिर इनको मुसलमान बनाया अर्थात ऐसा व्यक्ति जिसका ईमान मुसल्लम हो. आपस मे बहुत उपद्रव करते थे, अशांत क्षेत्र था. स्वयं इस्लाम के रिकॉर्ड मे है कि इस्लाम के उदय से पूर्व अरब मे अंधकार था. मतलब इस्लाम से पहले कि संस्कृति को पिछड़ी हुयी, अज्ञानता और भ्रष्ट मानते थे, अपने पूर्वजों मे इनको कोई खास रूचि नहीं है बल्कि उनको नफ़रत कि नज़र से देखते है. मूरति पुजको को ही हराकर, डराकर, धमकाकर और शुरू मे समझकर मुसलमान बनाया गया.
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