सफला एकादशी : भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा-अर्चना से होगी मनोकामना पूर्ण, व्रत से मिलती है कार्य सिद्धि
भारतीय संस्कृति के हिन्दू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है, यह तो सभी जानते हैं। हर महीने में दो बार एकादशी पड़ती है, जिससे पूरे 1 वर्ष में 24 या 25 एकादशी आती हैं। एकादशी तिथि भगवान श्रीविष्णु को समर्पित होती है। इस दिन व्रत और पूजा-पाठ करने से भगवान श्रीविष्णु प्रसन्न होकर मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद देते हैं। अगर इस दिन विधि-विधान से पूजा की जाए तो जीवन में सफलता अवश्य मिलता है।
पौष मास के कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि सफला एकादशी के नाम से जानी जाती है। इस बार पौष मास के कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि 6 जनवरी, शनिवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 12 बजकर 42 मिनट पर लगेगी जो कि 7 जनवरी, रविवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 12 बजकर 47 मिनट तक रहेगी। जिसके फलस्वरूप 7 जनवरी, रविवार को यह व्रत रखा जाएगा। एकादशी तिथि के व्रत का पारण द्वादशी तिथि में ही करना लाभकारी रहता है। सफला एकादशी की विशेष महत्ता है, जैसा कि तिथि के नाम से ज्ञात है कि तिथि विशेष के दिन सम्पूर्ण दिन व्रत उपवास रखने से मनोकामनाओं की पूर्ति के साथ ही समस्त कार्यों में सफलता मिलती है।
व्रत का विधान –
व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपने समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर गंगा-स्नानादि करना चाहिए। गंगा-स्नान यदि सम्भव न हो तो घर पर ही स्वच्छ जल से स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना के पश्चात् सफला एकादशी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। सम्पूर्ण दिन व्रत उपवास रखकर जल आदि कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए । विशेष परिस्थितियों में दूध या फलाहार ग्रहण किया जा सकता है। आज के दिन सम्पूर्ण दिन निराहार रहना चाहिए, चावल तथा अन्न ग्रहण करने का निषेध है।
भगवान् श्रीविष्णु की विशेष अनुकम्पा-प्राप्ति एवं उनकी प्रसन्नता के लिए भगवान् श्रीविष्णु जी के मन्त्र ‘ॐ नमो नारायण’ या ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का नियमित रूप से अधिकतम संख्या में जप करना चाहिए। आज के दिन ब्राह्मण को यथा सामर्थ्य दक्षिणा के साथ दान करके लाभ उठाना चाहिए। जीवन में सुख-समृद्धि, आरोग्य व सौभाग्य में अभिवृद्धि भी होती है। मन-वचन कर्म से पूर्णरूपेण शुचिता बरतते हुए यह व्रत करना विशेष फलदायी रहता है। भगवान् श्रीविष्णु जी की श्रद्धा, आस्था भक्तिभाव के साथ आराधना कर पुण्य अर्जित करके लाभ उठाना चाहिए।
चावल क्यों है वर्जित –
मान्यता है कि माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए महर्षि मेधा ने अपने शरीर का त्याग किया था, जिसके बाद उनका अंश धरती में समा गया। जिस दिन उनका अंश पृथ्वी में समाया उस दिन एकादशी तिथि थी। माना जाता है। चावल और जौ के रूप में वह उत्पन्न हुए थे। इसलिए इस दिन यदि कोई चावल खाता है तो इसे महर्षि मेधा के मांस और रक्त के सेवन के समान माना जाता है।
वर्ष 2024 में पड़ने वाले समस्त एकादशी व्रत
सफला एकादशी – 7 जनवरी, रविवार • पुत्रदा एकादशी – 21 जनवरी, रविवार • षट्तिला एकादशी – 6 फरवरी, मंगलवार •जया एकादशी – 20 फरवरी, मंगलवार विजया एकादशी – 6 मार्च, बुधवार (स्मार्त), 7 मार्च, गुरुवार (वैष्णव) • आमलकी ( रंगभरी) एकादशी-20 मार्च, बुधवार• पापमोचनी एकादशी-5 अप्रैल, शुक्रवार • कामदा एकादशी- 19 अप्रैल, शुक्रवार • वरुथिनी एकादशी -4 मई, शनिवार • मोहिनी एकादशी – 19 मई, रविवार • अचला एकादशी – 2 जून, रविवार (स्मार्त), 3 जून, सोमवार (वैष्णव) • निर्जला एकादशी – 18 जून, मंगलवार • योगिनी एकादशी -2 जुलाई, मंगलवार • हरिशयनी एकादशी – 17 जुलाई, बुधवार• कामदा एकादशी – 31 जुलाई, बुधवार • पुत्रदा एकादशी – 16 अगस्त, शुक्रवार• जया एकादशी 29 अगस्त, गुरुवार पद्मा / जलझुलनी एकादशी 14 सितम्बर, शनिवार • इन्दिरा एकादशी 28 सितम्बर, शनिवार• पापांकुशा एकादशी – 14 अक्टूबर, सोमवार • रम्भा एकादशी 28 अक्टूबर, सोमवार • प्रबोधिनी / देवोत्थानी एकादशी – 12 नवम्बर, मंगलवार • उत्पन्ना एकादशी – 26 नवम्बर, मंगलवार • मोक्षदा एकादशी – 11 दिसम्बर, बुधवार• सफला एकादशी – 26 दिसम्बर, गुरुवार ।
विशेष – देशाचार से तिथि में परिवर्तन सम्भव है।
– ज्योतिर्विद् विमल जैन
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