भौम प्रदोष व्रत : कर्ज से मुक्ति के लिए रखा जाता है भौम प्रदोष व्रत, जाने व्रत का विधान और 2024 में कब-कब है प्रदोष
सनातन धर्म में तैंतीस कोटि देवी-देवताओं में देवधिदेव भगवान शिव को महादेव की उपमा से अलंकृत किया गया है। भगवान शिवजी की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए शिवपुराण में अनेक व्रत-उपवास का उल्लेख है, जिसमें प्रदोष व्रत एवं शिवरात्र का व्रत अत्यन्त शुभ फलदायी माना गया है। यह प्रदोष व्रत प्रत्येक मास में दो बार आता है। शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष की प्रदोष काल में व्याप्त त्रयोदशी तिथि के दिन यह व्रत रखा जाता है। सूर्यास्त की समाप्ति एवं रात्रि के प्रारम्भ में पड़ने वाली
त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है। सूर्यास्त के बाद तीन मुहूर्तपर्यन्त जो त्रयोदशी तिथि हो, उसी दिन यह व्रत रखा जाता है।
सायंकाल प्रदोषकाल में भगवान् शिव की विधि-विधान से पूजा-अर्चना का नियम है। इस बार प्रदोष व्रत 9 जनवरी, मंगलवार को रखा जाएगा। पौष मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 8 जनवरी, सोमवार को अर्द्धरात्रि 12 बजकर 00 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 9 जनवरी, मंगलवार को रात्रि 10 बजकर 25 मिनट तक रहेगी। प्रदोषकाल का समय सूर्यास्त से 48 मिनट या 72 मिनट तक माना गया है, इसी अवधि में भगवान् शिवजी की पूजा प्रारम्भ करनी चाहिए। व्रतकर्ता को इस दिन सम्पूर्ण दिन निराहार रहते हुए सायंकाल पुनः स्नान करने के उपरान्त स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए तत्पश्चात् प्रदोष बेला में भगवान शिवजी की पूजा-अर्चना पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके करनी चाहिए। व्रत के दिन व्रतकर्ता को दिन में शयन नहीं करना चाहिए, परनिन्दा व व्यर्थ के वार्तालाप से बचना चाहिए।
प्रदोष व्रत का विधान
व्रतकर्ता को प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त हो स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। तत्पश्चात् पूजा-अर्चना के बाद अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर प्रदोष व्रत का संकल्प लेना चाहिए। दिनभर निराहार रहकर सायंकाल पुनः स्नान करके प्रदोष काल में भगवान शिवजी की विधि- विधान पूर्वक पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा-अर्चना करनी चाहिए। भगवान शिवजी का अभिषेक करके उन्हें वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, सुगन्धित द्रव्य के साथ बेलपत्र, कनेर, धतूरा, मदार, ऋतुपुष्प, नैवेद्य आदि अर्पित करके धूप-दीप के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए। शिवभक्त अपने मस्तिष्क पर भस्म और तिलक लगाकर शिवजी की पूजा करें तो पूजा शीघ्र फलदायी होती है। शिवजी की विशेष अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए स्कन्दपुराण में वर्णित प्रदोषव्रत कथा का पठन या श्रवण करना चाहिए। प्रदोष व्रत से जीवन के समस्त दोषों का शमन होता है साथ ही सुख सौभाग्य में अभिवृद्धि होती है। प्रदोष व्रत से शिवजी की अपार अनुकम्पा मिलती है। प्रदोष व्रत महिलाएँ एवं पुरुष दोनों के लिए समानरूप से पुण्य फलदायी है।
कार्य के अनुसार किस दिन रखें प्रदोष व्रत
प्रत्येक दिन के प्रदोष व्रत का अलग- अलग महत्त्व है। रवि प्रदोष- आयु, आरोग्य, सुख-समृद्धि,
सोम प्रदोष – शान्ति एवं रक्षा,
भौम प्रदोष-कर्ज से मुक्ति,
बुध प्रदोष- मनोकामना की पूर्ति,
गुरु प्रदोष-विजय व लक्ष्य की प्राप्ति,
शुक्र प्रदोष- आरोग्य, सौभाग्य एवं मनोकामना की पूर्ति,
शनि प्रदोष-पुत्र सुख की प्राप्ति।
अभीष्ट की पूर्ति के लिए 11 प्रदोष व्रत या वर्ष के समस्त त्रयोदशी तिथियों का व्रत अथवा मनोकामना पूर्ति होने तक प्रदोष व्रत रखने का विधान है। कलियुग में भगवान शिवजी की आराधना के लिए किए जाने वाला प्रदोष व्रत शीघ्र फलदायी बतलाया गया है। प्रदोष व्रत से शिवभक्तों का सदैव कल्याण होता रहता है।
विशेष
रवि प्रदोष – आयु, आरोग्य, सुख-समृद्धि,
सोम प्रदोष शान्ति एवं रक्षा,
भौम प्रदोष- कर्ज से मुक्ति,
शनि प्रदोष- पुत्र सुख की प्राप्ति ।
प्रदोष व्रत का आरम्भ किसी भी शुक्ल पक्ष के शनि प्रदोष अथवा सोम प्रदोष व्रत से करना चाहिए।
वर्ष 2024 में पड़ने वाले समस्त प्रदोष व्रत
9 जनवरी, मंगलवार • 23 जनवरी, मंगलवार • 7 फरवरी, बुधवार• 21 फरवरी, बुधवार • 8 मार्च, शुक्रवार • 22 मार्च, शुक्रवार, 6 अप्रैल, शनिवार • 21 अप्रैल, रविवार • 5 मई, रविवार • 20 मई, सोमवार • 4 जून, मंगलवार • 19 जून, बुधवार • 3 जुलाई, बुधवार
• 19 जुलाई, शुक्रवार • 1 अगस्त, गुरुवार • 17 अगस्त, शनिवार • 31 अगस्त, शनिवार • 15 सितम्बर, रविवार • 30 सितम्बर, सोमवार • 15 अक्टूबर, मंगलवार • 29 अक्टूबर, मंगलवार • 13 नवम्बर, बुधवार • 28 नवम्बर, गुरुवार 13 दिसम्बर, शुक्रवार • 28 दिसम्बर, शनिवार
विशेष – देशाचार से तिथि में परिवर्तन सम्भव है।
– ज्योतिर्विद् श्री विमल जैन
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