Makar sankarnti : छत्रपति शिवाजी ने 11 जनवरी तो अकबर ने 10 जनवरी को मनायी थी मकर संक्रन्ति, पढ़िए इतिहास
– जानिए क्या है मकर संक्रांति का इतिहास, पौराणिक एवं ज्योतिषीय महत्व संग वैज्ञानिक महत्व
– किन कारणों से मनाया जाता है मकर संक्राति पर्व को 14 की जगह 15 जनवरी को ?
मकर संक्रांति धार्मिक त्यौहार के साथ-साथ वैज्ञानिक पर्व भी है, जिस दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायन में प्रवेश करता है। भारत में प्रतिवर्ष अनेकों त्यौहार मनाये जाते हैं। इन त्यौहारों को मनाने के पीछे सिर्फ परंपरा या रूढ़िवादी बातें नहीं है, इनके पीछे ज्ञान, विज्ञान, स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था से जुड़े अनेक कारण हैं। इन्हीं त्यौहारों में से एक मकर संक्रांति पर्व है, जो अभी 14 जनवरी या 15 जनवरी को मनाया जाता है। यह भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश व पश्चिम बिहार में इसे खिचड़ी पर्व के रूप में मनाते हैं। वहीं तमिलनाडु में पोंगल, आंध्र प्रदेश व कर्नाटक में मकर संक्रमामा, गुजरात में उत्तरायण, बुंदेलखंड में सकरात आदि नामों से यह संपूर्ण भारत में हर्षोल्लास से मनाया जाता हैं। भारत के अलावा यह अन्य देशों में विभिन्न नामों से भी मनाया जाता हैं। जैसे नेपाल में माघे संक्रांति, थाईलैंड में सोंग्क्रण, म्यांमार में थिन्ज्ञान, कंबोडिया में मोहा संग्क्रण, श्रीलंका में उलावर थिरुनाल और लाओस में पी मा लाओ नाम से मनाया जाता हैं। मकर संक्रांति का धार्मिक दृष्टि से भी और वैज्ञानिक आधार पर भी अपना महत्व है।
मकर संक्रांति का इतिहास
वर्ष 2023 में मकर संक्रांति का यह त्यौहार 15 जनवरी को मनाया जा रहा है। ज्योतिष आचार्यों के अनुसार वर्ष 1902 में पहली बार 14 जनवरी व वर्ष 1964 में पहली बार 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनायी गयी थी और वर्ष 2101 में 16 जनवरी को मनायी जायेगी। इसके अलावा 2012 व 2020 को भी मकर संक्राति 15 जनवरी को मनायी गयी थी। इससे पूर्व 18वीं सदी में 12 व 13 जनवरी को यह त्यौहार मनाया जाता था। वहीं ज्योतिष आचार्यों का कहना है कि राजा हर्षवर्द्धन के समय मकर संक्रांति 24 दिसंबर को, छत्रपति शिवाजी के समयकाल में 11 जनवरी को, मुगल बादशाह अकबर के समयकाल में 10 जनवरी को मनायी गयी थी।
वैज्ञानिकों के अुनसार जिस प्रकार पृथ्वी व अन्य ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते है, उसी प्रकार सूर्य भी आकाश गंगा के केंद्र की परिक्रमा करता है, जिसमें सूर्य को 22 से 25 करोड़ वर्ष लगते हैं। सूर्य के परिक्रमा वर्ष को निहारिका वर्ष भी कहा जाता है। सूर्य हर वर्ष धनु राशि से मकर राशि में 20 मिनट की देरी से प्रवेश करता हैं। इस आकलन अनुसार हर तीन साल बाद सूर्य 1 घंटे व 72 वर्षों में एक दिन की देरी से मकर राशि में प्रवेश करता है। जिस कारण मकर संक्रांति की तारीख में बदलाव होता है, क्योंकि हर तीसरे साल एक महीना अधिक होता है। इसलिए मकर संक्रांति त्यौहार की तारीख में बदलाव होता है।
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