क्यों ख़ास है माताओं के लिये माध मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी जिसे कहा जाता है सकट, संकष्टी या तिलकुटा चौथ, जानिए इसकी दो कथा
माघ महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को सकट चौथ पर्व मनाया जाता है तथा व्रत रखा जाता है. सकट चौथ के व्रत में माताएं अपनी संतान की लम्बी आयु, अच्छी सेहत और जीवन में सुख-समृद्धि की कामना के लिए भगवान श्री गणेश एवं सकट माता की विशेष रूप से पूजा-उपासना करती हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सकट चौथ का व्रत भगवान गणेश एवं सकट माता के प्रति अपनी आस्था प्रगट करने का त्योहार होता है. संकष्ट या संकट का अर्थ है कष्ट या विपत्ति. मान्यता है जो भी सकट चौथ का व्रत विधि-विधान के साथ रखता है उसके जीवन में आने वाला संकट समाप्त हो जाता है, क्योंकि सकट चौथ के दिन ही भगवान गणेश के जीवन पर सबसे बड़ा संकट आया था. प्रत्येक वर्ष माघ के महीने में सकट चौथ के दिन भगवान गणेश को मोदक, गुड़ से बने तिल के लड्डू और दूर्वा अर्पित किया जाता है. इस दिन गणेश स्तुति, गणेश चालीसा और सकट चौथ व्रत कथा का पाठ किया किया जाता है।
सकट चौथ तिथि और शुभ मुहूर्त
चतुर्थी तिथि २९ जनवरी २०२४ को प्रातः ०३ बजकर ५४ मिनट से आरम्भ होकर अगले दिन ३० जनवरी को प्रातः ०६ बजकर ०५ मिनट तक रहेगी। अर्थात पूरा दिन पूरी रात आज 29 जनवरी को गणेश चतुर्थी रहेगी
चतुर्थी तिथि पर व्रत रखने के बाद चंद्रमा का दर्शन अवश्य किया जाता है. ऐसे में २९ जनवरी की रात को सकट चौथ पर चंद्रोदय रात्रि ०८ बजकर ४८ मिनट पर होगा. ऐसे में जो महिलाएं सकट चौथ का व्रत रखेंगी वे पूजा के बाद चंद्रमा के दर्शन करते हुए जल अर्पित करें और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करते हुए भगवान गणेश से आशीर्वाद प्राप्त करें. इसके बाद व्रत का पारण करें।
सकट चौथ व्रत कथा
आज सकट चौथ का व्रत है। इस दिन सांयकाल को गणेश जी की कथा पढ़कर पूजा अर्चना की जाती है। इस व्रत को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं। व्रत में भगवान शंकर और गणेश जी की कहानी को भी सुना जाता है। इसके । वहीं कहीं-कहीं गणेश जी और बुढिया माई की कहानी भी सुनी जाती है। यहां हम आपके लिए लाएं है दोनों कहानियां। आप अपने अनुसार इनमें से कोई भी कहानी पढ़ सकते हैं।
शंकर भगवान की कथा
एक बार मां पार्वती स्नान करने गईं। स्नानघर के बाहर उन्होंने अपने पुत्र गणेश जी को खड़ा कर दिया और उन्हें रखवाली का आदेश देते हुए कहा कि जब तक मैं स्नान कर खुद बाहर न आऊं किसी को भीतर आने की इजाजत मत देना!
गणेश जी अपनी मां की बात मानते हुए बाहर पहरा देने लगे। उसी समय भगवान शिव माता पार्वती से मिलने आए लेकिन गणेश भगवान ने उन्हें दरवाजे पर ही कुछ देर रुकने के लिए कहा। भगवान शिव ने इस बात से बेहद आहत और अपमानित महसूस किया। गुस्से में उन्होंने गणेश भगवान पर त्रिशूल का वार किया। जिससे उनकी गर्दन दूर जा गिरी।
स्नानघर के बाहर शोरगुल सुनकर जब माता पार्वती बाहर आईं तो देखा कि गणेश जी की गर्दन कटी हुई है। ये देखकर वो रोने लगीं और उन्होंने शिवजी से कहा कि गणेश जी के प्राण फिर से वापस कर दें।
इस पर शिवजी ने एक हाथी का सिर लेकर गणेश जी को लगा दिया। इस तरह से गणेश भगवान को दूसरा जीवन मिला। तभी से गणेश की हाथी की तरह सूंड होने लगी. तभी से महिलाएं बच्चों की सलामती के लिए माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी का व्रत करने लगीं।
दूसरी कहानी : बुढिया माई
एक बुढ़िया थी। वह बहुत ही गरीब और दृष्टिहीन थीं। उसके एक बेटा और बहू थे। वह बुढ़िया सदैव गणेश जी की पूजा किया करती थी। एक दिन गणेश जी प्रकट होकर उस बुढ़िया से बोले- ‘बुढ़िया मां! तू जो चाहे सो मांग ले।’
बुढ़िया बोली- ‘मुझसे तो मांगना नहीं आता। कैसे और क्या मांगू?’
तब गणेशजी बोले – ‘अपने बहू-बेटे से पूछकर मांग ले।’ तब बुढ़िया ने अपने बेटे से कहा- ‘गणेशजी कहते हैं ‘तू कुछ मांग ले’ बता मैं क्या मांगू?’ पुत्र ने कहा- ‘मां! तू धन मांग ले।’ बहू से पूछा तो बहू ने कहा- ‘नाती मांग ले।’
तब बुढ़िया ने सोचा कि ये तो अपने-अपने मतलब की बात कह रहे हैं। अत: उस बुढ़िया ने पड़ोसिनों से पूछा, तो उन्होंने कहा- ‘बुढ़िया! तू तो थोड़े दिन जीएगी, क्यों तू धन मांगे और क्यों नाती मांगे। तू तो अपनी आंखों की रोशनी मांग ले, जिससे तेरी जिंदगी आराम से कट जाए।’
इस पर बुढ़िया बोली- ‘यदि आप प्रसन्न हैं, तो मुझे नौ करोड़ की माया दें, निरोगी काया दें, अमर सुहाग दें, आंखों की रोशनी दें, नाती दें, पोता, दें और सब परिवार को सुख दें और अंत में मोक्ष दें।’
यह सुनकर तब गणेशजी बोले- ‘बुढ़िया मां! तुमने तो हमें ठग लिया। फिर भी जो तूने मांगा है वचन के अनुसार सब तुझे मिलेगा।’ और यह कहकर गणेशजी अंतर्धान हो गए। उधर बुढ़िया मां ने जो कुछ मांगा वह सब कुछ मिल गया। हे गणेशजी महाराज! जैसे तुमने उस बुढ़िया मां को सब कुछ दिया, वैसे ही सबको देना।
– ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा
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