Ratha saptami : चमकना है सूर्य की तरह तो करें ये 5 उपाय, आज है रथ सप्तमी यानि भगवान सूर्य का जन्मदिन
माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को ‘रथ सप्तमी’ का पर्व मनाया जाता है। इसे अचला सप्तमी या आरोग्य सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है। यह सूर्योपासना का दिन है।
सप्तमी तिथि भगवान सूर्य को समर्पित है, सूर्य को सात सफेद घोड़ों वाले रथ पर विराजमान माना गया है। माघ महीने में शुक्ल पक्ष सप्तमी को रथ सप्तमी या माघ सप्तमी के रूप में जाना जाता है। मान्यता है कि, भगवान सूर्य देव ने रथ सप्तमी के दिन पूरी दुनिया का ज्ञानवर्धन करना शुरू किया था अर्थात इसे भगवान सूर्य का जन्म दिवस भी माना जाता था। इसलिए इस दिन को सूर्य जयंती के रूप में भी परिभाषित किया गया है।
सूर्यग्रहणतुल्या तु शुक्ला माघस्य सप्तमी ।
अचला सप्तमी दुर्गा शिवरात्रिर्महाभरः ॥
रथ सप्तमी को दान-पुण्य के लिए सूर्य ग्रहण के समान अत्यधिक शुभ माना गया है। रथ सप्तमी पर अरुणोदय के दौरान स्नान करना चाहिए। सूर्योदय से पहले स्नान करना एक स्वस्थ परम्परा है, और यह सभी प्रकार की बीमारियों से मुक्त रखता है। इस मान्यता के कारण रथ सप्तमी को आरोग्य सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है। संतों के बीच यह दिन अचला सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है।
विष्णु पुराण के अनुसार सूर्य देव के रथ में लगे सात घोड़े के नाम गायत्री, वृहति, उष्णिक, जगती, त्रिष्टुप, अनुष्टुप और पंक्ति हैं।
आज के दिन स्नान करने के बाद सूर्योदय के समय सूर्यदेव को अर्घ्यदान* देकर उनकी पूजा करनी चाहिए। इसके बाद शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए और कपूर, धुप और फूलों से सूर्य देव की पूजा करनी चाहिए। सूर्यदेव को प्रातः काल स्नान कर अर्घ्यदान तथा दान-पुण्य करने से लंबी आयु, उत्तम स्वास्थ्य और समृद्धि प्राप्त होती है।
मुहूर्त
सप्तमी तिथि प्रारंभ- 15 फरवरी सुबह 10 बजकर 12 मिनट से
तिथि का समापन 16 फरवरी सुबह 08.54 मिनट पर
उदया तिथि की वजह से ये पर्व आज मनाया जा रहा है। आज के दिन सूर्य देव को जल अर्पित करने के साथ ही खास मंत्रों का जाप करने और आरती करने से इंसान को दोगुने फल की प्राप्ति होती है।
मंत्र
ॐ घृणिं सूर्य्य: आदित्य:
ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः ।
ॐ सूर्याय नम: ।
ॐ घृणि सूर्याय नम: ।
ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।
यश के लिये के 5 उपाय
अर्घ्य दें
सप्तमी तिथि सूर्यदेव को अतिप्रिय है। इस दिन प्रातःकाल नहाकर उगते हुए सूर्य को जल देने के लिए तांबे के लोटे में जल, लाल चन्दन, चावल,लाल फूल और कुश डालकर प्रसन्न मन से सूर्य की ओर मुख करके कलश को छाती के बीचों-बीच लाकर सूर्य मंत्र का जप करते हुए जल की धारा धीरे-धीरे प्रवाहित कर भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर लाल पुष्प अर्पित करने चाहिए।
आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ
वाल्मीकि रामायण के अनुसार “आदित्य हृदय स्तोत्र” अगस्त्य ऋषि द्वारा भगवान् श्री राम को युद्ध में रावण पर विजय प्राप्ति हेतु दिया गया था। विशेष रूप से इस दिन आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ जीवन के अनेक कष्टों का एकमात्र निवारण है। इसके नियमित पाठ से मानसिक कष्ट, हृदय रोग, तनाव, शत्रु कष्ट और असफलताओं पर विजय प्राप्त की जा सकती है। इस स्तोत्र में सूर्य देव की निष्ठापूर्वक उपासना करते हुए उनसे विजयी मार्ग पर ले जाने का अनुरोध है। आदित्य हृदय स्तोत्र सभी प्रकार के पापों , कष्टों और शत्रुओं से मुक्ति कराने वाला, सर्व कल्याणकारी, आयु, उर्जा और प्रतिष्ठा बढाने वाला अति मंगलकारी विजय स्तोत्र है।
सूर्यदेव के निमित्त व्रत
शास्त्रों के अनुसार इस दिन सूर्य भगवान के निमित्त व्रत करने से हर तरह की शारीरिक पीड़ा से मुक्ति मिलती है। शास्त्रों में लिखा है कि सूर्य का व्रत करने से काया निरोगी तो होती ही है, साथ ही अशुभ फल भी शुभ फल में बदल जाते है। अगर इस दिन व्रत कथा सुनी जाए तो इससे मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साथ ही मान-सम्मान, धन-यश और उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति भी होती है। व्रत में नमक का उपयोग न करें।
दान करें
इस दिन सूर्य से संबंधित चीजें जैसे तांबे का बर्तन, पीले या लाल वस्त्र, गेहूं, गुड़, माणिक्य, लाल चंदन आदि का दान करें। अपनी श्रद्धानुसार इन चीजों में से किसी भी चीज का दान किया जा सकता है। इससे कुंडली में सूर्य के दोष दूर हो जाते हैं एवं धन,ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
सूर्य गायत्री मंत्र का जप करें
1.ऊँ आदित्याय विदमहे प्रभाकराय धीमहितन्न: सूर्य प्रचोदयात्।
2.ऊँ सप्ततुरंगाय विद्महे सहस्त्रकिरणाय धीमहि तन्नो रवि: प्रचोदयात्।
सूर्य गायत्री मंत्र के जाप करने से आत्मशुद्धि, आत्म-सम्मान, मन की शांति मिलती है। व्यक्ति पर आने वाले संकट टल जाते हैं।
व्रत कथा
माघ शुक्ल सप्तमी से संबंधित कथा का उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। इसके अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब को अपने शारीरिक बल पर बहुत अभिमान हो गया था। एक बार दुर्वासा ऋषि भगवान श्रीकृष्ण से मिलने आए। वे बहुत अधिक दिनों तक तप करके आए थे और इस कारण उनका शरीर बहुत दुर्बल हो गया था। शाम्ब उनकी दुर्बलता का मजाक उड़ाने लगा और उनका अपमान भी किया इसे बात से क्रोधित होकर दुर्वासा ऋषि ने शाम्ब को कुष्ठ होने का श्राप दे दिया। शाम्ब की यह स्थिति देखकर श्रीकृष्ण ने उसे भगवान सूर्य की उपासना करने को कहा। पिता की आज्ञा मानकर शाम्ब ने भगवान सूर्य की आराधना करना प्रारंभ किया, ऐसा करने से कुछ समय में ही कुष्ठ रोग ठीक हो गया।
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