Shani dev : आखिर क्यों शनि की सवारी है कौआ, क्या है इसका धार्मिक महत्व, कैसे हुआ शनि का जन्म ?
क्या आपने कभी शनिदेव के वाहनों को देखा है? एक नहीं बल्कि शनि देव के नौ वाहन हैं, लेकिन उनका सबसे प्रिय है कौआ। अधिकतर तस्वीरों और धार्मिक ग्रंथों में शनिदेव को कौए की सवारी करते हुए ही चित्रित किया जाता है। हिंदू धर्म में कौए का महत्व भी बहुत है। इसे पितरों का प्रतीक माना जाता है और अतिथि के आगमन का संकेत भी। कौए को लेकर धार्मिक ग्रंथों में कई कहानियां भी हैं।
आपने वो कहावत तो सुनी ही होगी ‘झूठ बोले कौआ काटे’, इससे जुड़ी एक थ्योरी यह भी है कि शनि देव कर्म के देवता हैं और लोगों को उनके कर्मों के हिसाब से दंड भी देते हैं। ऐसे में झूठ का पर्याय किसी गलत काम से है और कौए का शनि देव के दंड से।
कैसे हुआ शनिदेव का जन्म
कौआ कैसे शनिदेव का वाहन बना उसे जानने के लिए पहले हमें शनिदेव के जन्म की कहानी जाननी होगी। सूर्यदेव की पत्नी संध्या से उनका ताप नहीं झेला जा रहा था और इसके कारण उन्होंने अपनी छाया का निर्माण किया और खुद तप करने चली गईं। उन्होंने छाया से कहा कि वो सूर्यदेव और उनके दोनों बच्चों यम और यामी का ख्याल रखेंगी। छाया भी संध्या की आज्ञा को मानते हुए कई वर्षों तक यही करती रहीं। हालांकि, संध्या ने यह भी कहा था कि छाया को सूर्यदेव से दूरी बनाकर रखनी होगी।
जब संध्या की तपस्या खत्म हुई तब तक छाया को सूर्यदेव से शनिदेव की प्राप्ति हो चुकी थी। क्योंकि शनिदेव छाया से जन्मे थे इसलिए कुरुप थे। ऐसे में सूर्यदेव ने खुद ही शनिदेव और छाया का परित्याग कर दिया था। जब संध्या को इसके बारे में पता चला, तो उन्होंने छाया पर बहुत क्रोध दिखाया। हालांकि, संध्या ने छाया को सूर्यलोक से निकालने के लिए बहुत प्रयास किए और अंतत: सूर्यदेव को इसके बारे में पता चल ही गया।
पत्नी के इस व्यवहार से सूर्यदेव बहुत क्रोधित हुए और छाया शनिदेव के साथ चली गईं। छाया और शनिदेव जिस वन में गए थे वहां एक कौआ उनके साथ रहता था। जब सूर्यदेव को इसके बारे में पता चला, तो उन्होंने छाया और शनिदेव को मारने के लिए वन में आग लगा दी। छाया तो परछाई थीं इसलिए वो आसानी से आग से निकल गईं उस वक्त कौए ने ही शनिदेव को उस आग से निकाला था। यही कारण है कि कौआ उनका प्रिय वाहन बन गया।
शनिदेव ने मांगा था अपनी मां के लिए वरदान
अपनी मां की रक्षा करने के लिए शनिदेव महादेव की शरण में गए और उनसे वरदान मांगा। इसके बाद छाया को जीवन दान भी मिला और देवी का दर्जा भी। हालांकि, अपने पिता के इस व्यवहार के चलते शनिदेव ने सूर्यलोक हमेशा के लिए छोड़ दिया और उस वक्त भी कौआ उनके साथ था। यही कारण है कि शनिदेव का प्रिय वाहन कौआ ही कहा जाता है।
ऐसी ही एक अन्य कथा भी है जिसके अनुसार संध्या छाया को सूर्यलोक से निकाल पाने में असमर्थ थीं इसलिए उन्होंने अपने पिता भगवान विश्वकर्मा का साथ मांगा। विश्वकर्मा को पता था कि अगर उन्होंने छाया के खिलाफ कुछ भी किया, तो शनि का प्रकोप झेलना होगा जो अब तक महादेव का वर्दान पा चुके थे। ऐसे में संध्या ने छाया का तिरस्कार करना शुरू कर दिया। माता का तिरस्कार, खुद की बेइज्जती और पिता का कठोर रूप देखकर शनि देव ने हमेशा के लिए सूर्यलोक छोड़ दिया। उस वक्त शनि अपने कौए के साथ कागलोक चले गए।
आखिर क्यों शनि की सवारी है कौआ ?
क्या आपने कभी शनिदेव के वाहनों को देखा है? एक नहीं बल्कि शनि देव के नौ वाहन हैं, लेकिन उनका सबसे प्रिय है कौआ। अधिकतर तस्वीरों और धार्मिक ग्रंथों में शनिदेव को कौए की सवारी करते हुए ही चित्रित किया जाता है। हिंदू धर्म में कौए का महत्व भी बहुत है। इसे पितरों का प्रतीक माना जाता है और अतिथि के आगमन का संकेत भी। कौए को लेकर धार्मिक ग्रंथों में कई कहानियां भी हैं।
आपने वो कहावत तो सुनी ही होगी ‘झूठ बोले कौआ काटे’, इससे जुड़ी एक थ्योरी यह भी है कि शनि देव कर्म के देवता हैं और लोगों को उनके कर्मों के हिसाब से दंड भी देते हैं। ऐसे में झूठ का पर्याय किसी गलत काम से है और कौए का शनि देव के दंड से।
कैसे हुआ शनिदेव का जन्म
कौआ कैसे शनिदेव का वाहन बना उसे जानने के लिए पहले हमें शनिदेव के जन्म की कहानी जाननी होगी। सूर्यदेव की पत्नी संध्या से उनका ताप नहीं झेला जा रहा था और इसके कारण उन्होंने अपनी छाया का निर्माण किया और खुद तप करने चली गईं। उन्होंने छाया से कहा कि वो सूर्यदेव और उनके दोनों बच्चों यम और यामी का ख्याल रखेंगी। छाया भी संध्या की आज्ञा को मानते हुए कई वर्षों तक यही करती रहीं। हालांकि, संध्या ने यह भी कहा था कि छाया को सूर्यदेव से दूरी बनाकर रखनी होगी।
जब संध्या की तपस्या खत्म हुई तब तक छाया को सूर्यदेव से शनिदेव की प्राप्ति हो चुकी थी। क्योंकि शनिदेव छाया से जन्मे थे इसलिए कुरुप थे। ऐसे में सूर्यदेव ने खुद ही शनिदेव और छाया का परित्याग कर दिया था। जब संध्या को इसके बारे में पता चला, तो उन्होंने छाया पर बहुत क्रोध दिखाया। हालांकि, संध्या ने छाया को सूर्यलोक से निकालने के लिए बहुत प्रयास किए और अंतत: सूर्यदेव को इसके बारे में पता चल ही गया।
पत्नी के इस व्यवहार से सूर्यदेव बहुत क्रोधित हुए और छाया शनिदेव के साथ चली गईं। छाया और शनिदेव जिस वन में गए थे वहां एक कौआ उनके साथ रहता था। जब सूर्यदेव को इसके बारे में पता चला, तो उन्होंने छाया और शनिदेव को मारने के लिए वन में आग लगा दी। छाया तो परछाई थीं इसलिए वो आसानी से आग से निकल गईं उस वक्त कौए ने ही शनिदेव को उस आग से निकाला था। यही कारण है कि कौआ उनका प्रिय वाहन बन गया।
क्या है कौए का धार्मिक महत्व?
धार्मिक मान्यता है कि कौआ पितृ लोक के दूत का काम करता है और पितृ पक्ष के दौरान कौओं को भोजन करवाने का मतलब होता है पितरों की आत्मा को तृप्त करना। कौओं को भोजन करवाने को शनि देव की शांति का एक उपाय भी माना जाता है। है कौए का धार्मिक महत्व?
धार्मिक मान्यता है कि कौआ पितृ लोक के दूत का काम करता है और पितृ पक्ष के दौरान कौओं को भोजन करवाने का मतलब होता है पितरों की आत्मा को तृप्त करना। कौओं को भोजन करवाने को शनि देव की शांति का एक उपाय भी माना जाता है।
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