Bhishm ashtami : आज के दिन भीष्म पितामह ने त्यागा था शरीर, जानें इस दिन का महत्व
माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भीष्म अष्टमी कहते हैं। इस दिन को भीष्म तर्पण दिवस भी कहते हैं, क्योंकि इसी दिन भीष्म पितामह ने अपना शरीर त्याग दिया था। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार 17 फरवरी 2024, दिन शनिवार को भीष्माष्टमी पर्व मनाया जा रहा है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्याग दिए थे और तब उनका तर्पण किया गया था। इस दिन व्रत रखने या पूजा करने से नि:संतान दंपत्तियों को गुणवान संतान की प्राप्ति होती है। इसी दिन पितरों का पिंडदान और तर्पण करने से सभी तरह के पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन भीष्म पितामह की स्मृति में श्राद्ध भी किया जाता है।
माघे मासि सिताष्टम्यां सतिलं भीष्मतर्पणम्।
श्राद्धच ये नरा: कुर्युस्ते स्यु: सन्ततिभागिन:।।
( जो व्यक्ति माघ शुक्ल अष्टमी को भीष्म के निमित्त तर्पण, जलदान आदि करता है, उसे हर तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है।)
माना जाता है कि इस दिन भीष्म पितामह की स्मृति के निमित्त जो श्रद्धालु कुश, तिल, जल के साथ श्राद्ध तर्पण करता है, उसे संतान तथा मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होती है और पाप नष्ट हो जाते हैं। भीष्म अष्टमी के दिन ही भीष्म पितामह ने लगभग 150 वर्ष से अधिक समय तक जीकर निर्वाण को प्राप्त हुए थे। एक गणना अनुसार उनकी आयु लगभग 186 वर्ष की बताई जाती है।
भीष्म पितामह ने करीब 58 दिनों तक मृत्यु शैया पर लेटे रहने के बाद सूर्य उत्तरायण होने के पश्चात माघ महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को अपने शरीर को छोड़ा था, यानी अपना शरीर त्याग दिया था। अत: यह दिन भीष्म पितामह का निर्वाण दिवस है।
मान्यता के अनुसार भीष्माष्टमी के दिन व्रत रखकर जो व्यक्ति अपने पित्तरों के निमित्त जल, कुश और तिल के साथ पूरे श्रद्धापूर्वक तर्पण करता है, उसे संतान तथा मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होती है तथा उनके पितरों को भी वैकुंठ प्राप्त होता है।
भीष्म अष्टमी पूजा
भीष्म पितामह के सम्मान में लोगों द्वारा एकोदिष्ट श्राद्ध किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह वहीं व्यक्ति कर सकता है जिसके पिता जीवित न हो। परन्तु कुछ लोग ऐसा नहीं मानते हैं और भीष्म अष्टमी की ‘पूजा अनुष्ठान’ कर सकते है।
भीष्म पितामह की आत्मा को शांति देने के लिए लोग पास के नदी तट पर जाते हैं और ’तर्पण’ की रस्म करते हैं। इसी रीति से वे अपने पूर्वजों का सम्मान भी करते हैं।
लोग गंगा नदी में पवित्र डुबकी लगाते हैं और जीवन और मृत्यु के चक्र से बाहर आने और अपनी आत्मा को शुद्ध करने के लिए उबले हुए चावल और तिल चढ़ाते हैं।
भक्त दिन के दौरान उपवास रखते हैं और ’अर्घ्यम’ करते हैं और देवता का आशीर्वाद पाने के लिए ’भीष्म अष्टमी मंत्र’ का जाप करते हैं।
भीष्म अष्टमी के दिन कुरुक्षेत्र में स्थित भीष्म कुंड में पवित्र डुबकी लगाते है और पूजा करते है।
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