जानिए ‘सप्तपुरियों’ में शामिल नगरों का नाम और उनका महत्त्व, काशी, अयोध्या के अलावा कौन से हैं नगर
इन मोक्ष-दायिनी पुरियों में शरीर त्यागना मनुष्य जीवन के लिए सभी मूल्यवान वस्तुओं से ऊपर है। परंतु मोक्षदायिनी पुरियां क्या है? हिन्दू पुराणों के अनुसार सात ऐसी पुरियों का निर्माण किया गया है, जहां इंसान को मुक्ति प्राप्त होती है।
पौराणिक कथाओं में उल्लिखित हैं इन सप्तपुरियों का रहस्य
माना जाता है कि प्रभु के चरणों में यदि दम भी निकल जाए तो उस इंसान का जीवन ही नहीं मृत्यु भी सफल हो जाती है। जिस भगवान को सारी ज़िंदगी इंसान पाने की कोशिश करता है, अपनी आखिरी सांसों में उसी भगवान के दर पर सांसें खत्म हो जाना हिन्दू मान्यताओं के अनुसार शुभ माना जाता है। हिन्दू धर्म में मोक्ष पाने को बेहद महत्व दिया जाता है। मोक्ष यानी कि मुक्ति, जो इंसान को जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति देती है। शास्त्रों में मुक्ति के पांच प्रकार बताए गए हैं।
पहला है ब्रह्म-ज्ञान, दूसरा भक्ति द्वारा भगवत-कृपा प्राप्ति, तीसरा पुत्र-पौत्रादि, गोत्रज, कुटुम्बियों आदि द्वारा गया आदि तीर्थो में संपादित श्राद्ध कर्म और चौथा है धर्म-युद्ध और गौ-रक्षा आदि में इंसान की मृत्यु हो जाना। आखिरी और पांचवां मोक्ष प्राप्ति का साधन है मोक्ष-दायिनी पुरियों में निवास और शरीर-त्याग।
पौराणिक कथाओं में उल्लिखित इन 7 स्थानों को ‘सप्त पुरियां’ कहा जाता है। यहां सप्त से तात्पर्य है ‘सात अंक’ एवं पुरियों का अर्थ है ‘नगर’। मान्यतानुसार भारत में सात ऐसे स्थान हैं, जिन्हें मोक्षदायिनी सप्त पुरियां कहा जाता है। ये हैं – हरिद्वार, द्वारिका, कांचीपुरम, उज्जैन, वाराणसी, अयोध्या एवं मथुरा। सप्तपुरियों को तीर्थ स्थल भी कहा जाता है। तीर्थ एक संस्कृत शब्द ‘त्री’ से बना है, जिसका अर्थ है सभी पापों से मुक्त हो जाना। इसीलिए मनुष्य इन तीर्थ स्थलों के दर्शन कर अपने पापों से मुक्त होने का प्रयास करता है। इन तीर्थ स्थलों पर इंसान की आखिरी यात्रा, जब उसकी आत्मा अपना पार्थिव शरीर छोड़ यम लोक की ओर प्रस्थान करती है, तो उसे मुक्ति प्राप्त हो और उसकी आत्मा को किसी प्रकार का कष्ट ना मिले, इसके लिए लोग अपने मृत संबंधियों की पूजा इन्हें तीर्थ स्थलों पर करवाते हैं।
पुराणों में उल्लेखनीय इन सप्त पुरियों का अपना खास महत्व है। इनके पीछे एक बड़ा इतिहास और महानता छिपी है जो भक्तों को अपनी ओर खींचती है। इन सभी नगरों में खास मेलों का आयोजन भी किया जाता है, जिस समय भक्तों का एक बड़ा समुद्र देखने को मिलता है।
हरिद्वार नगरी
सप्त पुरियों में से पहला है हरिद्वार। हरिद्वार दो शब्दों – हरि + द्वार का मेल है। यहां ‘हरि’ से तात्पर्य है भगवान विष्णु या फिर ‘हर’ को भगवान शिव से भी जोड़ा जाता है। मां गंगा (गंगा नदी) के किनारे बसा यह शहर दुनिया के सबसे पवित्र शहरों में से एक माना जाता है। हरिद्वार भारत के उत्तरखंड राज्य में स्थित है। इसे पौराणिक व्याख्या में ‘मायापुरी’ के नाम से भी पुकारा गया है। भगवान शिव के केशों से निकली गंगा नदी इस शहर की पवित्रता को और भी बढ़ाती है। वर्षों से लोग मोक्ष प्राप्ति के लिए हरिद्वार के दर्शन करने आते हैं।
राम-भूमि अयोध्या
राम-जन्म भूमि अयोध्या भी सप्त पुरियों में से एक खास नगर है। भगवान विष्णु के सातवें अवतार और अयोध्या के राजा दशरथ के बड़े पुत्र श्रीराम का जन्म अयोध्या की पवित्र भूमि पर ही हुआ था। यह शहर उत्तर प्रदेश में स्थित है। मंदिरों से घिरा हुआ यह शहर एक प्राचीन शहर है। त्रेता युग से कलयुग तक अपनी पहचान बनाने वाले अयोध्या शहर को अथर्ववेद में ईश्वर का नगर बताया गया है। इस पवित्र नगरी के पास सरयू नदी बहती है जहां श्रीराम ने अपना मानव रूप त्याग कर भक्तों को विष्णु अवतार के दर्शन दिए और फिर वैकुण्ठ लोक की ओर प्रस्थान किया था।
श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा
मथुरा नगरी अपने आप में पवित्रता का प्रतीक है। अनेक ग्रंथों में मथुरा को विभिन्न मान्यता प्राप्त है। पुराणों में मथुरा को नगरी का गौरव हासिल है। वहीं दूसरी ओर वराह पुराण में कहा गया है कि इस नगरी में जो लोग शुद्ध विचार से निवास करते हैं, वे मनुष्य के रूप में साक्षात देवता हैं। मथुरा शहर के पास यमुना नदी बहती है। भगवान कृष्ण के जन्म स्थान होने के कारण इस स्थान की पवित्रता और भी बढ़ जाती है। मथुरा ने श्रीकृष्ण का नटखट बचपन देखा है। एक पौराणिक कथा के अनुसार मथुरा को भगवान राम के सबसे छोटे भाई शत्रुघ्न द्वारा खोजा गया था। यह नगरी श्राद्ध कर्म के लिए विशेष है। दूर-दूर से लोग यहां अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए आते हैं।
वाराणसी या काशी
वाराणसी या काशी गंगा नदी के प्यार से उज्जवल एक आध्यात्मिक एवं प्राचीन नगरी है। इसे बनारस भी कहा जाता है लेकिन पौराणिक महत्व से इसे काशी कहा गया है। इस नगरी को गंगा नदी का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त है लेकिन इसके साथ अन्य दो नदियां – वरुणा एवं असी नदी भी यहां मौजूद हैं। वरुण एवं असी नदी के मेल से ही इस नगर का नाम वाराणसी पड़ा। हिन्दू धर्म के चार वेदों में से एक वेद ऋग्वेद में काशी का वर्णन किया गया है, जिसके अनुसार काशी को शिव की नगरी कहा जाता है। मान्यता है कि यह नगरी भगवान शिव के सबसे प्रिय स्थानों में से एक हैं जहाँ मनुष्य के मृत्यु के बाद भगवान शिव मृतक के बाएं कान में स्वयं मोक्ष का मंत्र प्रदान करते हैं।शास्त्रों में वर्णित है कि काशी में मुत्यु के बाद मनुष्य को गर्भ कष्ट से मुक्ति मिल जाती है अर्थात फिर से जन्म नहीं लेना पड़ता।
कांचीपुरम या कांची
कांचीपुरम तीर्थपुरी दक्षिण की काशी मानी जाती है। यह भारत के दक्षिणी प्रांत तमिलनाडु के पास स्थित है। कांचीपुरम या पौराणिक कथाओं के अनुसार कांची को सृष्टि के रचनाकार भगवान ब्रह्मा द्वारा निर्मित जाना जाता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार इस स्थान पर भगवान ब्रह्मा ने देवी के दर्शन के लिए तप किया था। इस शहर का भारतीय इतिहास में एक विशाल योगदान है। यहां सम्राट अशोक से लेकर मौर्य परिवार ने राज किया। इसके साथ ही भगवान बुद्ध के चरणों से भी पवित्र मानी जाती है कांची नगरी।
प्राचीनतम उज्ज्यिनी शहर
पूरे भारत में उज्जैन के मंदिर प्रसिद्ध हैं। उज्जयिनी का प्राचीनतम नाम अवन्तिका है जिसे अवन्ति नामक राजा के नाम पर रखा गया था। प्राचीन काल में उज्जयिनी महाराज विक्रमादित्य की राजधानी थी। एक अध्ययन के मुताबिक भारतीय ज्योतिष शास्त्र में देशान्तर की शून्य रेखा उज्जयिनी से प्रारम्भ हुई मानी जाती है। इसे कालिदास की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ हर 12 वर्ष पर सिंहस्थ कुंभ मेला लगता है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक महाकाल इस नगरी में स्थित है।
यादवों की नगरी द्वारका
कृष्ण की नगरी द्वारका सप्त पुरियों में शामिल सात तीर्थ स्थलों में से एक है। इस नगरी को स्वयं भगवान कृष्ण द्वारा ही बनवाया गया था। इसका प्राचीन नाम कुशस्थली था। एक पौराणिक कथा के अनुसार महाराजा रैवतक के समुद्र में कुश बिछाकर यज्ञ करने के कारण ही इस नगरी का नाम कुशस्थली हुआ था। हरिवंश पुराण में भी द्वारका नगरी का वर्णन किया गया है जहां बताया है कि यह वह स्थान है जहां यादव कुल ने एक पवित्र नगरी का निर्माण किया था। विष्णु पुराण में भी द्वारका नगरी के स्थापित होने की बात कही गई है। एक पौराणिक कथा में श्रीकृष्ण द्वारा अपनी पत्नी रुकमणी की प्यास बुझाने के लिए द्वारका नगरी में अपने अंगूठे द्वारा गंगा नदी प्रकट की गई थी।
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