Home 2024 जानिए, क्या मायने है पंच मकार के, जो आप जानते है वो नहीं है तंत्र साधना में पंच मकार का सही अर्थ

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जानिए, क्या मायने है पंच मकार के, जो आप जानते है वो नहीं है तंत्र साधना में पंच मकार का सही अर्थ

– डॉ संतोष ओझा -काशी

तंत्र के विषय में तरह-तरह की भ्रांतियां समाज में हैं और सत्य तो यह हैं कि जन-साधारण के मन में तंत्र के प्रति घृणा और नफ़रत की भावना घर कर गयी। जबकि वास्तव में यदि देखा जाय तो ऐसा नहीं है। तंत्र एक उच्चकोटि की विद्या है , एक प्रकृष्ट विज्ञान है जिसे कुछ भ्रष्ट और स्वार्थी तांत्रिकों ने अपने निहित स्वार्थ के चलते बदनाम कर दिया है। आइये, हम लोग इस तंत्र की वास्तविकता और उसमें आये हुए ‘पञ्च मकार’ (मद्य, मांस, मत्स्य, मुद्रा और मैथुन) का वास्तविक आशय समझने का प्रयास करें।

पंचमकार

पंचमकार तंत्र साधना से सम्बन्धित शब्द है जिसका अर्थ ‘म से आरम्भ होने वाली पाँच वस्तुएँ’ है, ये पाँच वस्तुएँ तांत्रिक साधना के सफल सिद्धि हेतू उपयोग में लायी जाती हैं।

तंत्र क्रिया सदेव ही प्रकृति के नियमों के अनुरूप चलती है। यह पूरा संसार ही एक तांत्रिक क्रिया है। तांत्रिक क्रिया पञ्च मकार से मिल कर ही पूरी होती है। पञ्च मकार यानि तंत्र क्रिया के पाँच स्तम्भ। मॉस, मतस्य, मुद्रा, मदिरा और मैथुन तांत्रिक क्रिया के पञ्च मकार हैं। तथा बिना इन पञ्च मकार के सम्मिलन से श्रृष्टि में जीवन का सञ्चालन असंभव है।

आईए जानते हैं पंचमकर की सही व्याख्या….दरअसल पंचमकार को लोग गलत दृष्टि से परिभाषित करते हैं और समझते हैं। पंच मकार एक विस्तृत सोच और गूढ साधना का प्रतीक है।

मॉस ( उत्पत्ति या प्रारंभ)

पंचमकार का पहला ” म ” मांस के लिए माना जाता है। जिसका तात्कालिक अर्थ मांस भक्षण से लगाया जाता है जबकि ऐसा नहीं है। इस श्रृष्टि में प्राणी का जन्म का प्रारम्भ मॉस के लोथडे के रूप में होता है। ऐसा कोई भी प्राणी नही है जो पञ्च मकर के प्रथम ” म” मॉस से वंचित रह कर जीवन यापन कर सके। मॉस के रूप में ही मनुष्य एवं जीवों की अपने माँ के गर्भ से उत्पत्ति है। हर प्राणी किसी न किसी प्रकार मॉस का उपयोग अपने दैनिक क्रिया में करता है। चाहे वह किसी को छूना, देखना या महसूस करना सभी में मॉस की प्राथमिकता है। इससे सिद्ध होता है की जीवन की शुरुआत ही पञ्च मकार के प्रथम ” म ” से होती है।

मतस्य ( चंचलता या गति)

मतस्य का शाब्दिक अर्थ मछली से होता है। परन्तु तंत्र क्रिया के पञ्च मकार में मतस्य का मतलब चंचलता या गति से होता है। जिस प्रकार मछली अपने जीवनपर्यंत गतिमान रहती है और पानी के विपरीत दिशा में तैरते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त करती है उसी प्रकार तंत्र साधना के अनुसार बिना गति के कोई भी जीव इस संसार में रह नही सकता। पञ्च मकार के मॉस गुण के प्राणी में आने के बाद मतस्य गुण का होना एक मॉस को गति प्रदान करता है। पञ्च मकार के दुसरे मकार ” मतस्य” से ही संसार में जीवो को हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती हैं । मतस्य का शाब्दिक अर्थ यह है कि गुण ही व्यक्ति को नए कार्यो के प्रति प्रगतिशील बनता है।

मुद्रा ( क्रिया या खाद्य प्रदार्थ )

तंत्र में पंचमकार के तीसरे म का अर्थ मुद्रा से है जिसके दो रूप होते हैं के दो रूप होते है। पहला मुद्रा यानी किसी प्रकार की क्रिया जो व्यक्त की जा सके। जैसे योनी मुद्रा, लिंग मुद्रा, ज्ञान मुद्रा। जबकि दूसरा मुद्रा का मतलब खाद्य पदार्थ से है। जीव में सही मुद्रा (क्रिया) के ज्ञान का होना अति आवश्यक है। और सही क्रिया को करने के लिए सही मुद्रा ( खाद्य पदार्थ ) की भी आवश्यकता है। जब गर्भ में जीव गति प्राप्त कर लेता है तब वह अपने हाथ और पैर को अपने गर्दन के चारो और बाँध कर एक मुद्रा धारण करता है। जैसे ही वह अपनी माता द्वारा ग्रहण किया गया भोजन को अपना आहार बनाता है, उसके हाथ पैर में गति आ जाती है। यह पञ्च मकार के तीसरे ” म ” का श्रेष्ठ उदहारण है।

मदिरा ( जूनून या लगन )

तंत्र में मदिरा का अर्थ “नशा” है। आम मनुष्य मदिरा पीने वाले नशे को ही तंत्र से जोड़ते हैं। परन्तु सही मायने में पञ्च मकार में मदिरा रुपी नशे को किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए होने वाली लगन को कहते हैं। इश्वर की भक्ति को प्राप्त करने का नशा ही तांत्रिक को कठिन से कठिन साधना पूरा करने के लिए प्रेरित करता है। जीव को आगे बढ़ने के लिए स्वयं में मदिरा गुण को लाना अति आवश्यक है। पञ्च मकार के यह चारों गुन जब साथ मिलते हैं तो वह जीव मॉस (शरीर ), मतस्य (गति),मुद्रा (क्रिया,आहार )और मदिरा ( जूनून) के आने के बाद अपने जीवन में कोई भी लक्ष्य प्राप्त कर सकता है। जब बालक अपने माँ के गर्भ में बड़ा हो रहा होता है तो वह समय उसके लिए बहुत कष्टकारी होता है। माँ के द्वारा ग्रहण किया गया भोजन उसकी कोमल त्वचा को चोट पहुचाता है। गति आने के बाद और माँ से आहार मिलने के बाद वह जीव स्वयं को इस कष्ट से निकलने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता है। उसके अन्दर मदिरा गुण का प्रवेश होते ही वह अपने कष्ट को दूर करने के लिए इश्वर की प्रार्थना में लीन होना चाहता है।

मैथुन ( मंथन या साधना )

मैथुन का अर्थ है “मथना ” तंत्र में मैथुन का बहुत महत्त्व है। परन्तु इसे किस प्रकार अपने जीवन में अपनाना है वह जानना बहुत जरुरी है। अधिकतर लोगों को तंत्र के बारे में यह भ्रान्ति है कि तंत्र साधक को मैथुन ( सम्भोग) करने की छुट है। लेकिन पञ्च मकार के इस पांचवे और बहुत ही महत्वपूर्ण ” म ” के बारे में जानना सबसे ज्यादा जरूरी है। तंत्र में यह कहा गया है की इस संसार में पाई जाने वाली हर वस्तु को यदि सही प्रकार से मथा जाए तो एक नई वस्तु का जन्म देता है । उदाहरण के रूप में धर्म शास्त्रों में वर्णित समुन्द्र मंथन से लिया जा सकता है। समुन्द्र मंथन के समय सागर के मंथन से विभिन्न प्रकार की 14 वस्तुओं की जन्म हुआ था जिसमे विष और अमृत की उल्लेख प्रमुख्य है। गृहस्थ जीवन में भी जब एक पुरूष अपनी स्त्री के साथ मैथुन करता है, अपने वीर्य को स्त्री के बीज के साथ मंथन कराता है तो एक बालक के रूप में नए जीवन की निर्माण होता है। इसलिए मैथुन करके ( सम्भोग नहीं ) तंत्र में कुछ नया निर्माण करने की बात कही गई है। जब एक तांत्रिक मैथुन करता है तब वह स्वयं अपने शरीर (ब्रह्म / शिव ) तथा अपनी आत्मा ( शक्ति / शिव) का मंथन करता है। तथा उस मंथन को सही ढंग से करने के उपरांत ही ईश्वर के समीप पहुंचने के नए नए रास्तों की निर्माण करता है।

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Author: Admin Editor MBC

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