Aamlaki ekadashi : सहस्र गोदान फल के समान है पुण्य फलदायी आमलकी एकादशी व्रत
– ज्योतिर्विद् विमल जैन
– आंवले के वृक्ष के नीचे भगवान् श्रीविष्णु की होती है आराधना
– मिलता है वर्षभर के समस्त एकादशी के व्रत का फल
भारतीय सनातन परम्परा के हिन्दू धर्मशास्त्रों में हर माह के विशिष्ट तिथि की विशेष महिमा है। द्वादश मास के समस्त तिथियों में एकादशी तिथि की अपनी खास पहचान है। फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि के दिन आमलकी/रंगभरी एकादशी मनाई जाती है।
मान्यता है कि आमलकी एकादशी के व्रत से द्वादश मास के समस्त एकादशी के व्रत का पुण्यफल मिलता है, साथ ही जीवन के समस्त पापों का शमन भी होता है। एकादशी तिथि के दिन स्नान-दान व्रत से सहस्र गोदान के समान शुभफल की प्राप्ति बतलाई गई है। इस दिन स्नान-दान व व्रत से भगवान् श्रीहरि यानि श्रीविष्णु जी की पूजा-अर्चना का विशेष महत्त्व है ।
फाल्गुन शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि 19 मार्च, मंगलवार को अर्द्धरात्रि 12 बजकर 24 मिनट पर लग रही है जो 20 मार्च, बुधवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 2 बजकर 24 मिनट तक रहेगी। पुष्य नक्षत्र 19 मार्च, मंगलवार को रात्रि 8 बजकर 10 मिनट से 20 मार्च, बुधवार को रात्रि 10 बजकर 38 मिनट तक रहेगा। 20 मार्च, बुधवार को
उदया तिथि के रूप में एकादशी तिथि होने से आमलकी/रंगभरी एकादशी का व्रत इसी दिन रखा जाएगा। आज के दिन काशी में श्रीकाशी विश्वनाथ जी का प्रतिष्ठा महोत्सव व श्रृंगार दिवस भी मनाया जाता है। रंगभरी एकादशी के दिन काशी में शिवजी के भक्त बहुत धूम-धाम इस त्योहार को मनाते हैं। इस दिन भोलेनाथ माँ पार्वती का गौना कराकर काशी लाए थे। इसलिए इस दिन काशी में माँ पार्वती का भव्य स्वागत किया जाता है, और इसी खुशी में रंग-गुलाल उड़ाने की परम्परा है।
ऐसे करें भगवान् श्रीहरि की पूजा
व्रतकर्ता को अपने दैनिक नित्य कृत्यों से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करके आमलकी/रंगभरी एकादशी व्रत का संकल्प लेना चाहिए। संकल्प के साथ व्रत करके समस्त नियम- संयम आदि का पालन करना चाहिए। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि आंवले के वृक्ष में त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश) का वास माना गया है । ब्रह्माजी वृक्ष के ऊपरी भाग में, शिवजी वृक्ष के मध्य भाग में एवं श्रीविष्णु वृक्ष के जड़ में निवास करते हैं।
धार्मिक परम्परा के अनुसार आंवले के वृक्ष का पूजन पूर्वाभिमुख होकर करना चाहिए। साथ ही आँवले के वृक्ष के पूजन में पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित करने चाहिये। पूजन के पश्चात् वृक्ष की आरती करके परिक्रमा करना पुण्य फलदायी माना गया है। आंवले के फल का दान
करना भी सौभाग्य में वृद्धि करता है।
रात्रि जागरण विशेष पुण्य फलदायी
भगवान श्रीविष्णु की विशेष कृपा प्राप्ति के लिए रात्रि जागरण करके इनके मन्त्र ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का जप अधिक से अधिक संख्या में करना चाहिए। आज रात्रि जागरण करना लाभकारी रहता है। सम्पूर्ण दिन निराहार रहकर व्रत सम्पादित करना चाहिए, अन्न ग्रहण करने का निषेध है। विशेष परिस्थितियों में दूध या फलाहार ग्रहण किया जा सकता है। साथ ही व्रत के समय दिन में शयन नहीं करना चाहिए। आज के दिन ब्राह्मण को यथा सामर्थ्य दक्षिणा के साथ दान करके लाभ उठाना चाहिए। अपने जीवन में मन-वचन कर्म से पूर्णरूपेण शुचिता बरतते हुए यह व्रत करना विशेष फलदायी रहता है। रंगभरी एकादशी के व्रत व भगवान् श्रीविष्णु जी की श्रद्धा, आस्था भक्तिभाव के साथ आराधना करके पुण्य अर्जित करना चाहिए,जिससे जीवन में सुख-समृद्धि, आरोग्य व सौभाग्य बना रहे ।
आंवला के पेड़ की भी होती है पूजा
रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव के साथ-साथ आंवले के पेड़ की भी पूजा की जाती है। इसलिए रंगभरी एकादशी को आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन पूजा पाठ करने से व्यक्ति को सेहत और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इतना ही नहीं, इस दिन माँ अन्नपूर्णा की सोने या चांदी की मूर्ति के दर्शन करने का भी विधान है।
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