Mahavaruni parv : शनिवार को है दुर्लभ महावारुणी योग आखिर क्यों है आप के लिये ख़ास, जानिए इस योग का क्या है पुराणों में वर्णन
जल के देवता वरूण देव की पूजा इस तिथि को खास है। इसे वारुणी पर्व कहा जाता है। वरूण देव की पूजा की जाती है। वारुणी योग को हजारों ग्रहण के समान माना गया है। इस दिन गंगा सहित पवित्र नदियों में स्नान बड़ा महत्व है। दान का विशेष महत्व है।
इस पर्व में जो भी भक्त गंगा स्नान करते हैं उनके तीन करोड़ कुल/पीढ़ी का उद्धार हो जाता है तथा एक करोड़ सूर्य ग्रहण में स्नान करने का पुण्य फल प्राप्त होता है।
पर्व काल –
काशी में प्रातः 7:07 से दिन के 1:02 तक जबकि
हरिद्वार में प्रातः 7:27 से दिन के 1:22 तक
भविष्य पुराण के अनुसार चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी यदि शनिवार या शतभिषा से युक्त हो तो वह महावारुणी पर्व कहलाता है | इसमें किया गया स्नान, दान एवं श्राद्ध अक्षय होता है।
पर्व की खास चार पहलू …
1.
वारुणी योग चैत्र माह में बनने वाला एक अत्यंत पुण्यप्रद महायोग कहा जाता है। इसका वर्णन विभिन्न पुराणों में भी मिलता है। यह महायोग तीन प्रकार का होता है, चैत्र कृष्ण त्रयोदशी को वारुण नक्षत्र यानी शतभिषा हो तो वारुणी योग बनता है। चैत्र कृष्ण त्रयोदशी को शतभिषा नक्षत्र और शनिवार हो तो महावारुणी योग बनता है और चैत्र कृष्ण त्रयोदशी को शतभिषा नक्षत्र, शनिवार और शुभ नामक योग हो तो महा-महावारुणी योग बनता है। वैदिक ज्योतिष में इस योग को अत्यंत दुर्लभ माना गया है।
2.
समुद्र मंथन से एक से एक बेशकीमती रत्न निकले थे लेकिन उनमें 14 तरह के रत्न खास थे। जैसे सबसे पहले निकला हलाहल विष, केमधेनु, उच्चैःश्रवा घोड़ा, कौस्तुभ मणि, कल्पवृक्ष, अप्सरा रंभा, लक्ष्मी, चंद्रमा, पारिजात वृक्ष, शंख, धन्वंतरि वैद्य और अमृत, लेकिन एक और चीज निकली थी वारुणी। जल से उत्पन्न होने के कारण उसे वारुणी कहा गया। वरुण का अर्थ जल। वरुण की पत्नी को वरुणी कहते हैं। कहते हैं कि यह समुद्र से निकली मदिरा की देवी के रूप में प्रतिष्ठित हुई और वही वरुण देवी की पत्नी वारुणी बनी। चरकसंहिता के अनुसार वारुणी को मदिरा के एक प्रकार के रूप में बताया गया है जो समुद्र से उत्पन्न हुई थी।
3.
किसी विशेष मंत्र की सिद्धि करना हो तो इस दिन जरूर करें, मंत्र जल्दी सिद्ध होता है। इस दिन मंत्र जप, यज्ञ, करने का बड़ा महत्व है। पुराणों में कहा गया है कि इस दिन किए गए एक यज्ञ का फल हजारों यज्ञों के जितना मिलता है। इस शुभ योग में तीर्थों पर नदियों में नहा के भगवान शिव की पूजा की जाती है। इससे हर तरह के सुख मिलते हैं। वारुणी योग में भगवान शिव की पूजा से मोक्ष मिलता है। इस दिन शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाएं, बेलपत्र की माला अर्पित करें। शिवलिंग पर एक जोड़ा केला चढ़ाएं और वहीं बैठकर शिव पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें। इससे शीघ्र विवाह का मार्ग खुलता है।
4.
धर्मसिंधु ग्रंथ में कहा गया है कि इस पर्व पर तीर्थ में स्नान और दान करने से अनंत गुना शुभ फल मिलता है। जो कि कई यज्ञों और बड़े पर्वों पर दान के बराबर होता है। इस योग में गंगा आदि तीर्थ स्थानों में स्नान, दान और उपवास करने से करोड़ों सूर्य-चंद्र ग्रहणों में किए जाने वाले जप-अनुष्ठान के समान शुभ फल प्राप्त होता है। वारुणी योग में गंगा, यमुना, नर्मदा, कावेरी, गोदावरी समेत अन्य पवित्र नदियों में स्नान और दान का बड़ा महत्व है। अगर पवित्र नदियों में नहीं नहा सके तो घर में ही पवित्र नदियों का पानी डालकर नहाएं।
कुछ ऐसा है शास्त्रों में पर्व का उल्लेख
भविष्य पुराण
चैत्रे मासि सिताष्टम्यां शनौ शतभिषा यदि ।
गंगाया यदि लभ्येत सूर्यग्रहशतैः समा ।।
सेयं महावारुणीति ख्याता कृष्णत्रयोदशी ।
अस्यां स्नानं च दानं च श्राद्धं वाक्षयमुच्यते ।।
नारदपुराण
वारुणेन समायुक्ता मधौ कृष्णा त्रयोदशी ।
गंगायां यदि लभ्येत सूर्यग्रहशतैः समा ।।
स्कन्दपुराण
“वारुणेन समायुक्ता मधौ कृष्णा त्रयोदशी।
गङ्गायां यदि लभ्येत सूर्यग्रहशतैः समा॥
शनिवारसमायुक्ता सा महावारुणी स्मृता।
गङ्गायां यदि लभ्येत कोटिसूर्यग्रहैः समा॥”
देवीभागवत पुराण
“वारुणं कालिकाख्यञ्च शाम्बं नन्दिकृतं शुभम्।
सौरं पाराशरप्रोक्तमादित्यं चातिविस्तरम्॥”
त्रिस्थलीसेतु
चैत्रासिते वारुणऋक्षयुक्ता त्रयोदशी सूर्यसुतस्य वारे।
योगे शुभे सा महती महत्या गंगाजलेर्कग्रहकोटितुल्या।।
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