Pradosh vrat : जानिए शनि प्रदोष पर पूजा का विधान, क्या है वार के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ
– ज्योतिर्विद् श्री विमल जैन
– भगवान शिवजी की कृपा से मिलती है सुख-समृद्धि, खुशहाली
– पुत्र की कामना के लिए रखते हैं शनि प्रदोष व्रत
भगवान् शिवजी की पूजा-अर्चना अपनी-अपनी परम्परा के अनुसार हर आस्थावान धर्मावलम्बी मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए करते हैं। भगवान शिवजी की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए शिवपुराण में विविध व्रतों का उल्लेख है। जिनमें प्रदोष व्रत प्रमुख है। प्रदोष व्रत प्रदोष व्यापिनी त्रयोदशी तिथि के दिन किया जाता है। सूर्यास्त और रात्रि के सन्धिकाल को प्रदोष बेला कहते हैं। प्रदोष बेला की अवधि दो या तीन घटी मानी गई है, एक घटी 24 मिनट की होती है।
चैत्र कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि 6 अप्रैल, शनिवार को प्रातः 10 बजकर 20 मिनट पर लगेगी जो 7 अप्रैल, रविवार को प्रातः 6 बजकर 55 मिनट तक रहेगी। शतभिषा नक्षत्र 5 अप्रैल, शुक्रवार को सायं 6 बजकर 7 मिनट से 6 अप्रैल, शनिवार को दिन में 3 बजकर 40 मिनट रहेगा। तत्पश्चात् पूर्वाभाद्र नक्षत्र लग जायेगा। त्रयोदशी तिथि के दिन शुभयोग 6 अप्रैल, शनिवार को प्रातः 6 बजकर 15 मिनट से रात्रि 2 बजकर 20 मिनट तक रहेगा। प्रदोष वेला में त्रयोदशी तिथि का मान 6 अप्रैल, शनिवार को होने से प्रदोष व्रत इसी दिन रखा जाएगा।
प्रदोष व्रत का विधान
व्रतकर्ता को प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपने समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। अपने इष्ट देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना के पश्चात् भगवान शिवजी की प्रसन्नता के लिए प्रदोष व्रत का संकल्प लेना चाहिए। दिनभर निराहार रहते हुए सायंकाल पुनः स्नान करके यथासम्भव धुले हुए या स्वच्छ वस्त्र धारण कर प्रदोष काल में श्रद्धा भक्ति व आस्था के साथ भगवान शिवजी की विधि-विधान पूर्वक पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा-अर्चना करनी चाहिए। भगवान शिवजी का जलाभिषेक करके उन्हें वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, सुगन्धित द्रव्य के साथ बेलपत्र, कनेर, धतूरा, मदार, ऋतुपुष्प, ऋतुफल, नैवेद्य आदि अर्पित करके धूप-दीप के साथ पूजा-अर्चना पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की ओर मुख करके करनी चाहिए। शिवभक्त अपने मस्तिष्क पर भस्म और तिलक लगाकर शिवजी की पूजा करें तो पूजा विशेष लाभदायी होती है।
भगवान् शिवजी की महिमा में प्रदोष स्तोत्र का पाठ एवं स्कन्दपुराण में वर्णित प्रदोष व्रत कथा का पठन या श्रवण अवश्य करना चाहिए। इससे मनोकामना की पूर्ति व अभीष्ट की प्राप्ति होती है। यह व्रत महिलाएँ एवं पुरुष दोनों के लिए शुभ फलदायी है। व्रत के दिन अपनी दिनचर्या सुव्यवस्थित रखते हुए भगवान शिवजी की अर्चना करनी चाहिए। व्रतकर्ता को दिन में शयन नहीं करना चाहिए तथा अपने परिवार के अतिरिक्त अन्यत्र कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। अपने दैनिक जीवन में शुचिता का पालन करना चाहिए जिससे प्रदोष व्रत शीघ्र फलदायी हो।
वार के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ
प्रत्येक दिन के प्रदोष व्रत का अलग-अलग महत्त्व है । जैसे – रवि प्रदोष आयु, आरोग्य, सुख-समृद्धि, सोम प्रदोष – शान्ति एवं रक्षा, भौम प्रदोष – कर्ज से मुक्ति, बुध प्रदोष-मनोकामना की पूर्ति, गुरु प्रदोष – विजय व लक्ष्य की प्राप्ति, शुक्र प्रदोष – आरोग्य, सौभाग्य एवं मनोकामना की पूर्ति, शनि प्रदोष पुत्र सुख की प्राप्ति । अभीष्ट की पूर्ति के लिए 11 प्रदोष व्रत या वर्ष के समस्त त्रयोदशी तिथियों का व्रत अथवा मनोकामना पूर्ति होने तक प्रदोष व्रत रखने का विधान है।
कलियुग में भगवान शिवजी की आराधना के लिए किए जाने वाला प्रदोष व्रत अत्यन्त चमत्कारिक बतलाया है। श्रद्धाभक्ति एवं आस्था के साथ किए गए प्रदोष व्रत से जीवन के समस्त दोषों का शमन होता है तथा सौभाग्य में अभिवृद्धि का सुयोग बनता है। जिनकी जन्मकुण्डली में शनिग्रह प्रतिकूल हों या शनिग्रह की अढैया अथवा साढ़ेसाती का प्रभाव हो, उन्हें देवाधिदेव महादेवजी की कृपा प्राप्ति के लिए शनि प्रदोष व्रत करके अवश्य लाभ उठाना चाहिए, जिससे शनिग्रहजनित दोषों का शमन होकर सुख-समृद्धि की प्राप्ति हो ।
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