Home 2024 Raja bhartuhari : राजा भर्तृहरि जो अपनी सुंदर पत्नी से आहत होकर बने थे बैरागी

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Raja bhartuhari : राजा भर्तृहरि जो अपनी सुंदर पत्नी से आहत होकर बने थे बैरागी

प्राचीन उज्जैन में बड़े प्रतापी राजा हुए राजा भर्तृहरि, जो राजा विक्रमादित्य के बड़े भाई थे। भर्तृहरि अपनी तीसरी पत्नी पिंगला पर आसक्त थे और वे उस पर अत्यंत विश्वास करते थे। आलम यह था कि राजा पत्नी मोह में अपने कर्तव्यों को भी भूल गए थे।

उस समय उज्जैन में एक तपस्वी गुरु गोरखनाथ का आगमन हुआ। गोरखनाथ राजा के दरबार में पहुंचे। भर्तृहरि ने गोरखनाथ का उचित आदर-सत्कार किया। इससे तपस्वी गुरु अति प्रसन्न हुए। प्रसन्न होकर गोरखनाथ ने राजा एक फल दिया और कहा कि यह खाने से वह सदैव जवान बने रहेंगे, कभी बुढ़ापा नहीं आएगा, सदैव सुंदरता बनी रहेगी।

यह चमत्कारी फल देकर गोरखनाथ वहां से चले गए। राजा ने फल लेकर सोचा कि उन्हें जवानी और सुंदरता की क्या आवश्यकता है। चूंकि राजा अपनी तीसरी पत्नी पर अत्यधिक मोहित थे, अत: उन्होंने सोचा कि यदि यह फल पिंगला खा लेगी तो वह सदैव सुंदर और जवान बनी रहेगी। यह सोचकर राजा ने पिंगला को वह फल दे दिया।

रानी पिंगला भर्तृहरि पर नहीं बल्कि उसके राज्य के कोतवाल पर मोहित थी। यह बात राजा नहीं जानते थे। जब राजा ने वह चमत्कारी फल रानी को दिया तो रानी ने सोचा कि यह फल यदि कोतवाल खाएगा तो वह लंबे समय तक उसकी इच्छाओं की पूर्ति कर सकेगा। रानी ने यह सोचकर चमत्कारी फल कोतवाल को दे दिया।

वह कोतवाल एक वैश्या से प्रेम करता था और उसने चमत्कारी फल उसे दे दिया। ताकि वैश्या सदैव जवान और सुंदर बनी रहे। वैश्या ने फल पाकर सोचा कि यदि वह जवान और सुंदर बनी रहेगी तो उसे यह गंदा काम हमेशा करना पड़ेगा। नर्क समान जीवन से मुक्ति नहीं मिलेगी।

इस फल की सबसे ज्यादा जरूरत हमारे राजा को है। राजा हमेशा जवान रहेंगे तो लंबे समय तक प्रजा को सभी सुख-सुविधाएं देता रहेगा। यह सोचकर उसने चमत्कारी फल राजा को दे दिया। राजा वह फल देखकर हतप्रभ रह गए।

राजा ने वैश्या से पूछा कि यह फल उसे कहां से प्राप्त हुआ। वैश्या ने बताया कि यह फल उसे कोतवाल ने दिया है। भर्तृहरि ने तुरंत कोतवाल को बुलवा लिया। सख्ती से पूछने पर कोतवाल ने बताया कि यह फल उसे रानी पिंगला ने दिया है।

जब भरथरी को पूरी सच्चाई मालूम हुई तो वह समझ गए कि रानी पिंगला उसे धोखा दे रही है। पत्नी के धोखे से भर्तृहरि के मन में वैराग्य जाग गया और वे अपना संपूर्ण राज्य विक्रमादित्य को सौंपकर उज्जैन की एक गुफा में आ गए। उस गुफा में भर्तृहरि ने 12 वर्षों तक तपस्या की थी।

उज्जैन में आज भी राजा भर्तृहरि की गुफा दर्शनीय स्थल के रूप में स्थित है। राजा भर्तृहरि ने वैराग्य पर वैराग्य शतक की रचना की, जो कि काफी प्रसिद्ध है। राजा भर्तृहरि ने श्रृंगार शतक और नीति शतक की भी रचना की। यह तीनों ही शतक आज भी उपलब्ध हैं और पढ़ने योग्य है।

भृतहरि की समाधि

भृतहरि ने नाथ सम्प्रदाय में दीक्षा चुनार ( चरणादीगढ़)आने से पूर्व ली या बाद में इस सम्बन्ध में पुख्ता तौर पर कहना मुश्किल है। लेकिन चुनार दुर्ग पर लगे शिलालेखों का प्रमाण माना जाये तो इस दुर्ग का निर्माण ईसा से 56 वर्ष पूर्व उज्जैन नरेश विक्रमादित्य ने इसलिये कराया था ताकि उनके बड़े भाई भृतहरि की तपस्या में कोई विघ्न व् बाधा न पड़े और इस वन क्षेत्र में जंगली जानवर और पशुओं से उनकी रक्षा हो सके। वास्तविकता यह है कि प्राचीन काल से ही विंध्य पर्वतमालाओं को पवित्र तथा साधना के लिए उपयुक्त माना जाता है।

अरबी में औरंगजेब का हुक्मनामा

खुदा के नाम की बन्दगी, मैं समाधि पर आया और मैंने आवाज दी कोई उत्तर नही मिलने पर मैने इसके विरुद्ध खिलाफत किया। मस्जिद बनवाने हेतु इसे तुड़वाया किंतु समाधि पर एक लकीर पैदा हुयी जिससे भौरे निकलना शुरू हुए भौरों को नष्ट करने हेतु इस लकीर में 17 कुप्पा खौलता सरसों तेल छुड़वाया किन्तु न भौरे मरे न छेद भरा तो माफ़ी मांगी और भृतहरि का अस्तित्व माना तथा क़दर करने की बात स्वीकार की। कोई भी बादशाह आये इस समाधि की इज्जत करे और खिलाफत करने की हिम्मत न करे।


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Author: Admin Editor MBC

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