ब्राम्हणो के अभाव में ऐसे दें पितरों को जल, जानिए जल देते समय का मंत्र और क्रम, तिल और कुश का अभिप्राय
– डॉ संतोष ओझा, काशी
9889881111
18 सितंबर से 16 दिवसीय श्राद्ध पितृ पक्ष प्रारंभ हो गया है। इस दौरान पितरों को तर्पण और पिंडदान दिया जाता है। तर्पण यानी जल देना और पिंडदान यानी भोजन देना। जैसे पशुओं का भोजन तृण और मनुष्यों का भोजन अन्न कहलाता है, वैसे ही देवता और पितरों का भोजन अन्न सार तत्व है। सार तत्व अर्थात गंध, रस और ऊष्मा ।
कैसे देते हैं पितरों को जल?
1. तृप्त करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं।
2. पितरों के लिए किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध तथा तंडुल या तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं।
3. तर्पण के प्रकार : तर्पण के 6 प्रकार हैं- 1. देव-तर्पण 2.ऋषि-तर्पण 3. दिव्य-मानव-तर्पण 4. दिव्य-पितृ-तर्पण 5. यम-तर्पण 6. मनुष्य-पितृ-तर्पण। सभी के लिए तर्पण करते हैं।
जल देते समय क्या बोलते हैं?
पितरों को जल देते समय ध्यानपूर्वक कहना चाहिए कि वसु रूप में मेरे पिता या पितृ जल ग्रहण करके तृप्त हों।
जल देते समय अपने गोत्र का नाम लें और इसी के साथ गोत्रे अस्मत्पितामह (पितामह का नाम) वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः. इस मंत्र का उच्चारण करते हुए 3 बार जल दें।
तिल और कुशा का महत्व
• कुशा को भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता और
तिल में भगवान विष्णु का वास होता है।
• माना जाता है कि जब कुशा से आप पितरों का तर्पण
करते हैं तो भगवान विष्णु की कृपा से पितरों को मोक्ष
की प्राप्ति होती है।
• इससे पितर भी आपसे प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं
और आपके संकट दूर हो जाते हैं ।
पितरों को जल देने की विधि:
• नदी में स्नान करने के बाद पितरों को जौ, काला तिल
और एक लाल फूल डालकर दक्षिण दिशा की ओर मुंह
करके खास मंत्र बोलते हुए जल अर्पित करना होता है।
• सर्वप्रथम अपने पास शुद्ध जल, बैठने का आसन (कुशा
का हो), बड़ी थाली या ताम्रण ( ताम्बे की प्लेट), कच्चा
दूध, गुलाब के फूल, फूल-माला, कुशा, सुपारी, जौ,
काली तिल, जनेऊ आदि पास में रखे। आसन पर
बैठकर तीन बार आचमन करें। ॐ केशवाय नमः, ॐ
माधवाय नम:, ॐ गोविन्दाय नम: बोलें।
• आचमन के बाद हाथ धोकर अपने ऊपर जल छिड़के
अर्थात् पवित्र होवें, फिर गायत्री मंत्र से शिखा बांधकर
तिलक लगाकर कुशे की पवित्री (अंगूठी बनाकर )
अनामिका अंगुली में पहन कर हाथ में जल, सुपारी,
सिक्का, फूल लेकर निम्न संकल्प लें।
• अपना नाम एवं गोत्र उच्चारण करें फिर बोले
अथ्श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थ देवर्षिमनुष्यपितृतर्पणम करिष्ये।।
इसके बाद थाली में जल, कच्चा दूध, गुलाब की पंखुड़ी
डाले, फिर हाथ में चावल लेकर देवता एवं ऋषियों का
आह्वान करें। स्वयं पूर्व मुख करके बैठें, जनेऊ को रखें।
कुशा के अग्रभाग को पूर्व की ओर रखें, देवतीर्थ से
अर्थात् दाएं हाथ की अंगुलियों के अग्रभाग से तर्पण दें,
इसी प्रकार ऋषियों को तर्पण दें।
• अब उत्तर मुख करके जनेऊ को कंठी करके (माला
जैसी) पहने एवं पालकी लगाकर बैठे एवं दोनों हथेलियों
के बीच से जल गिराकर दिव्य मनुष्य को तर्पण दें।
अंगुलियों से देवता और अंगूठे से पितरों को जल अर्पण
किया जाता है।
●इसके बाद दक्षिण मुख बैठकर, जनेऊ को दाहिने कंधे
पर रखकर बाएं हाथ के नीचे ले जाए, थाली में काली
तिल छोड़े फिर काली तिल हाथ में लेकर अपने पितरों
का आह्वान करें-
ॐ आगच्छन्तु में पितर इमम ग्रहन्तु जलान्जलिम |
फिर पितृ तीर्थ से अर्थात् अंगूठे और तर्जनी के मध्य भाग से तर्पण दें।
तर्पण करते वक्त अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें,
गोत्रे अस्मत्पितामह (पिता का नाम) वसुरूपत् तृप्यतमिदं
तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा
नमः, तस्मै स्वधा नमः ।
इस मंत्र से स्वर्गीय पिता, पितामह (पिता के पिता अर्थात् बाबा या दादा), प्रपितामह (बाबा या दादा के पिता) और स्वर्गीय मातामह (नाना), प्रमातामह (नाना के पिता) और वृद्ध प्रमातामह (नाना के बाबा या दादा) आदि के नामों का उच्चारण कर उनके प्रति जलाञ्जलि देनी होती है। फिर अपनी ‘स्वर्गीया माता, पितामही (दादी) और प्रपितामही (दादा की माता) को, आगे अपनी स्वर्गीया मातामही (नानी), प्रमातामही (नाना की माता) और वृद्ध-प्रमातामही (नाना की दादी) का स्मरण कर उन्हें 3- 3 बार जल से तृप्त करना होता है। इस मंत्र को पढ़कर जलांजलि पूर्व दिशा में 16 बार, उत्तर दिशा में 7 बार और दक्षिण दिशा में 14 बार दें।
• जिनके नाम याद नहीं हो, तो रूद्र, विष्णु एवं ब्रह्मा जी
का नाम उच्चारण कर लें। भगवान सूर्य को जल चढ़ाए।
फिर कंडे पर गुड़-घी की धूप दें, धूप के बाद पांच भोग
निकालें जो पंचबली कहलाती है।
इसके बाद हाथ में जल लेकर
ॐ विष्णवे नमः ॐ विष्णवे नम: ॐ विष्णवे नम:
बोलकर यह कर्म भगवान विष्णु जी के चरणों में छोड़ दें। इस कर्म से आपके पितृ बहुत प्रसन्न होंगे एवं मनोरथ पूर्ण करेंगे।
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