नवरात्र व्रत का पारण : जानिये दुर्गास्वरूप कुमारी पूजन से क्या फल की होती है प्राप्ति , पूजन में रखे कन्या उम्र का विशेष ध्यान
नवरात्र व्रत का पारण : जानिये दुर्गास्वरूप कुमारी पूजन से क्या फल की होती है प्राप्ति , पूजन में रखे कन्या उम्र का विशेष ध्यान
नवरात्र व्रत का पारण : जानिये दुर्गास्वरूप कुमारी पूजन से क्या फल की होती है प्राप्ति , पूजन में रखे कन्या उम्र का विशेष ध्यान
कुमारी पूजन-अर्चन से मनोरथ होंगे पूर्ण
बुधवार, 5 अक्टूबर
नवरात्र में जगत जननी माँ जगदम्बा दुर्गाजी की पूजा-अर्चना की विशेष महिमा है।
नवरात्र व्रत का पारण : जानिये दुर्गास्वरूप कुमारी पूजन से क्या फल की होती है प्राप्ति
ज्योतिॢवद् विमल जैन ने बताया कि नवरात्र के धार्मिक अनुष्ठान में पूजा-अर्चना के पश्चात् कुमारी कन्या की पूजा करना अत्यन्त आवश्यक है। कुमारी कन्याओं को त्रिशक्ति यानि महाकाली, महालक्ष्मी एवं महासरस्वती देवी का रूप माना गया है। नवरात्र में व्रतकर्ता को या देवीभक्त को व्रत के पारण के पूर्व कुमारी कन्या एवं बटुक की विधि-विधानपूर्वक पूजन करके उनका आशीर्वाद लेना चाहिए। श्रीदुर्गाजी की अर्चना करके हवन आदि करने का विधान है। इस बार 2 अक्टूबर, शनिवार को महाअष्टमी व 3 अक्टूबर, सोमवार को महानवमी का व्रत रखा जाएगा। महानिशा पूजा 2 अक्टूबर, रविवार को मध्यरात्रि में होगी।
इस बार आश्विन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 2 अक्टूबर, रविवार को सायं 6 बजकर 48 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 3 अक्टूबर, सोमवार को दिन में 4 बजकर 38 मिनट तक रहेगी। तत्पश्चात् नवमी तिथि लग जाएगी जो कि 4 अक्टूबर, मंगलवार को दिन में 2 बजकर 22 मिनट तक रहेगी। तदुपरान्त दशमी तिथि प्रारम्भ हो जाएगी, जो कि 5 अक्टूबर, बुधवार को दिन में 12 बजकर 01 मिनट तक रहेगी। 3 अक्टूबर, सोमवार को अष्टमी तिथि का हवन-पूजन इसी दिन रात्रि में किया जाएगा। अष्टमी तिथि उदया तिथि के रूप में 3 अक्टूबर, सोमवार को है, फलस्वरूप महा अष्टमी का व्रत इसी दिन रखा जाएगा। महानवमी का व्रत 4 अक्टूबर, मंगलवार को रखा जाएगा। महानवमी का व्रत रखकर जगदम्बाजी की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना की जाएगी। महाअष्टमी तिथि व महानवमी तिथि के दिन बटुक व कुमारी पूजन का विधान है।
नवरात्र व्रत का पारण
आश्विन शुक्लपक्ष की दशमी तिथि 4 अक्टूबर, मंगलवार को दिन में 2 बजकर 22 मिनट पर लगेगी जो कि 5 अक्टूबर, बुधवार को दिन में 12 बजकर 01 मिनट तक रहेगी। नवरात्र व्रत का पारण 5 अक्टूबर, बुधवार को किया जाएगा। इस दिन श्रवण नक्षत्र 4 अक्टूबर, मंगलवार को रात्रि 10 बजकर 51 मिनट पर लगेगा जो कि 5 अक्टूबर, बुधवार को रात्रि 9 बजकर 15 मिनट तक रहेगा। विजया दशमी का पर्व इसी दिन मनाया जाएगा। इसी दिन अपराजिता देवी तथा शमी वृक्ष की पूजा होती है साथ ही शस्त्रों के पूजन का भी विधान है। विजया दशमी के दिन नीलकण्ठ पक्षी का दर्शन किया जाता है, उन्हें आजाद करवाया जाता है।
राशि रंग के अनुसार करें पूजा-अर्चना
मेष-लाल, गुलाबी एवं नारंगी। वृषभ-सफेद एवं क्रीम। मिथुन-हरा व फिरोजी। कर्क-सफेद व क्रीम। ङ्क्षसह-केसरिया, लाल व गुलाबी। कन्या-हरा व फिरोजी। तुला-सफेद व हल्का नीला। वृश्चिक-नारंगी, लाल व गुलाबी। धनु-पीला व सुनहरा। मकर व कुम्भ-भूरा, स्लेटी व ग्रे। मीन-पीला व सुनहरा।
देवीभागवत ग्रन्थ के अनुसार अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए अलग-अलग वर्ण या सभी वर्णों की कन्याओं का पूजन करना चाहिए। धर्मशास्त्र में उल्लेखित है कि ब्राह्मण वर्ण की कन्या-शिक्षा ज्ञानार्जन व प्रतियोगिता, क्षत्रिय वर्ण की कन्या-सुयश व राजकीय पक्ष से लाभ, वैश्य वर्ण की कन्या-आॢथक समृद्धि व धनवृद्धि के लिए एवं शूद्र वर्ण की कन्या-कार्यसिद्धि एवं शत्रुओं पर विजय के लिए विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना करनी चाहिए। दो वर्ष से दस वर्ष तक की कन्या को देवी स्वरूप माना गया है, जिनकी नवरात्र पर भक्तिभाव के साथ पूजा करने से भगवती जगदम्बा का आशीर्वाद मिलता है। शास्त्रों में दो वर्ष की कन्या को कुमारी, तीन वर्ष की कन्या-त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कन्या-कल्याणी, पाँच वर्ष की कन्या-रोहिणी, छ: वर्ष की कन्या-काली, सात वर्ष की कन्या-चण्डिका, आठ वर्ष की कन्या-शाम्भवी एवं नौ वर्ष की कन्या-दुर्गा तथा दस वर्ष की कन्या को सुभद्रा के नाम से दर्शाया गया है। कुमारी कन्या की आयु (उम्र) विशेष पूजा के अनुसार भी अलग-अलग फल मिलते हैं। दो वर्ष की कन्या—दु:ख दारिद्र्य से मुक्ति, तीन वर्ष की कन्या-धन-धान्य का सुयोग, चार वर्ष की कन्या-परिवार में मंगल कल्याण, पाँच वर्ष की कन्या-आरोग्य सुख तथा रोगमुक्ति, छ: वर्ष की कन्या-विजय और राजयोग, सात वर्ष की कन्या-ऐश्वर्य व वैभव में वृद्धि, आठ वर्ष की कन्या-वाद-विवाद में सफलता तथा नौ वर्ष की कन्या-शत्रुओं का पराभव एवं कठिन कार्य में पूर्णता तथा दस वर्ष की कन्या-समस्त मनोकामना की पूर्ति । इनकी पूजा-अर्चना करने से मनोवांछित फल मिलता है। पूजन हेतु कन्याएँ अस्वस्थ, विकलांग एवं नेत्रहीन नहीं होनी चाहिए। फिर भी इनकी उपेक्षा न करते हुए इन कन्याओं की यथाशक्ति यथासामथ्र्य सेवा व सहायता करते रहने पर जगत् जननी माँ दुर्गा की कृपा सदैव बनी रहती है। कन्याओं का पूजन करने के पश्चात् उनको पौष्टिक व रुचिकर भोजन करवाकर उन्हें नव व, ऋतुफल, मिष्ठान्न तथा नगद द्रव्य आदि उपहार स्वरूप देकर उनके चरणस्पर्श करने चाहिए तत्पश्चात उनसे आशीर्वाद प्राप्त करके पुण्यलाभ लेना चाहिए।
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