जब पुत्र गणेश ने पिता शिव को काशी में प्रवेश कराया
काशी के अन्नपूर्णा मंदिर के पश्चिम में गली के मोड़ पर स्थित हैं ढुंढिराज गणेश।
यही काशी के सात आवरणों में प्रत्येक आवरण में आठ रूपधारण कर 56 विनायक हो गए। शिव की काशी में 56 विनायक क्यों हुए?
इसके पीछे एक कथा है। जब सभी देवी-देवताओं पर राजा दिवोदास ने काशी में रहने पर प्रतिबंध लगा दिया था, तब शिव ने सूर्य, 64 योगनियां आदि को भेजा। लेकिन कोई भी शिव को काशी में प्रवेश कराने में असफल रहा। तब शिव ने गणेश को भेजा। पुत्र धर्म को सार्थक करते हुए गणेश ने राजा दिवोदास के मन में वैराग्य भर कर उन्हें विष्णु जी का आशीर्वाद दिलवाकर शिव सहित सभी देवी-देवताओं की काशी में पुन: प्रतिष्ठा दिलवाई।
विनायक काशी की रक्षा करते हैं और अपने भक्तों को सिद्धि प्रदान करते हैं। काशी में पंचकोशी यात्रा में दस गणेश मंदिर बड़े ही महत्वपूर्ण हैं। इनके नाम हैं-अर्कविनायक, दुर्गविनायक, देहली विनायक, उदंडविनायक, पाषपाणि विनायक, सिद्धि विनायक, मोदविनायक, प्रमोद विनायक, सुमुख विनायक और दुर्मुख विनायक।अर्क विनायक का मंदिर तुलसी घाट स्थित लोलार्क कुंड के पास विद्यमान है।
रविवार को इनका दर्शन-पूजन करने वालों की बहुत भीड़ होती है। एक मंदिर बड़ा गणेश, जिन्हें वक्रतुंड भी कहा जाता है, का मंदिर लोहटिया में है। गर्भगृह में सिंदूरी रंग की गणेश की विशाल प्रतिमा के साथ इनका पूरा परिवार पत्नी ऋद्घि-सिद्धि एवं पुत्र शुभ-लाभ भी हैं। वाहन मूषक भी हैं। यहां गणेश के दर्शन करने से रुके हुए कार्य जल्दी पूरे हो जाते हैं। दुर्गाकुंड में स्थित दुर्ग विनायक का मंदिर कुंड के दक्षिणी कोने पर है। यह मां दुर्गा के प्रसिद्ध मंदिर के पीछे है। दुर्ग विनायक के दर्शन-पूजन से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं, आय और प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। क्ली चण्डी विनायक कलियुग में शीघ्र मनोकामना पूरी करते हैं। चिंतामणि गणेश सोनारपुरा से केदारघाट की ओर बढ़ने पर गली में स्थित हैं। यह मंदिर सभी प्रकार की चिंताओं को दूर करने वाला माना जाता है। देहली विनायक काशी के पश्चिम द्वार पर स्थित है। मूर्ति गणेश वाहन चूहे पर स्थापित हैं। गणेश के चारों हाथों में चार वस्तुएं-शस्त्र, माला, फल और उनके प्रिय लड्डू हैं। काशी खंड के अनुसार शिव ने इन विनायक को द्वारपाल के रूपमें प्रतिष्ठित कर काशी के पश्चिम भाग की रक्षा करने को कहा है। यहीं नृसिंह भगवान की मूर्ति भी है। नंदी और सात शिवलिंग भी स्थापित हैं।उदंड विनायक की मूर्ति करीब 4 फुट की है। वह पद्मासन की मुद्रा में हैं। हेरंब विनायक का मंदिर वाल्मीकि के टीले पर स्थित है। 40 के करीब सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। एक फीट ऊंची प्रतिमा हैं, जिसमें गणेश बैठे हुए दिखाये गये हैं। यहीं महर्षि बाल्मीकि भी विराजमान हैं।
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