कर्दमेश्वर महादेव : काशी के सबसे पहला शिवालय,जिसे श्रीराम ने स्थापित कर किया था तप
कर्दमेश्वर महादेव : काशी के सबसे पहला शिवालय,जिसे श्रीराम ने स्थापित कर किया था तप
12 वीं सदी में स्थापित कर्दमेश्वर महादेव मंदिर शहर से करीब पांच किलोमीटर दूर कन्दवा में स्थित है।
काशी राम ने स्वयं यहांके सबसे पुराने इस शिवालय का महत्व इसलिए भी है क्योकि धार्मिक ग्रन्थों व उपनिषदों में कहा गया है कि भगवान राम शिवलिंग स्थापित कर तप किया था। मंदिर के देखरेख की जिम्मेदारी राज्य पुरातत्व विभाग की है।
काशी की प्रसिद्ध पंचक्रोशी यात्रा का प्रथम पड़ाव होने के नाते कर्दमेश्वर मंदिर का काफी महत्व है।
मुस्लिम शासकों के समय में काशी के अधिकतर मंदिर नष्ट कर दिये गये थे। संयोगवश यह मंदिर बचा रहा। यह पुरातत्वविदों के लिए अध्ययन का भी केन्द्र है। मंदिर के पूरब विशाल तालाब है जिसका पुनर्निर्माण 1751-52 में नेटोर (बंगाल) की तत्कालीन रानी भवानी द्वारा कराया गया था। साढ़े तेरह बीघा क्षेत्रफल में दर्जनभर मंदिर हैं। मुख्य एवं प्राचीन कर्दमेश्वर महादेव मंदिर एक ऊंचे अधिष्ठान पर स्थित है। तलदंद विन्यास की दृष्टि से अर्धमण्डप अन्तराल और गर्भगृह के ऊपर मंजिल शिखर से युक्त है। मंदिर का गर्भगृह चौकोर है। इसके बीच में शिवलिंग तथा अन्य मूर्तियां व पीछे की दीवारों में जालीदार अलंकरण बना है। इस मंदिर का शिखर भाग खुजराहो शैली में निर्मिंत है। खुजराहो के समान यहां भी अंग शिखर बने हैं, लेकिन इनमें कुछ अंतर है। इसकी द्वितीय मंजिल के नीचे का भाग क्यूब आकार की सीधी खड़ी दीवार है। मंदिर के जंघा भाग पर कुम्भपट्टिका तथा पांच प्रकार के घुमावदार पट्टिकाओं से युक्त है। इसके साथ ही खरकुम्भ और स्कंध पट्टिकाओं का भी समावेश है। कर्दमेश्वर महादेव मंदिर मूर्ति कला की दृष्टि से अपना अलग स्थान रखता है।
इस मंदिर के जंघा भाग पर अनेक मूर्तियां भी लगी हैं। अन्तराल भाग की उत्तरी दीवार में बने आले के मध्य नृत्यरत गणेश तथा दाहिनी ओर स्थित आले के मध्य अष्टभुजी महिषासुरमर्दनी की मूर्ति स्थापित है। दक्षिणी दीवार के साथ गणेश, कार्तिकेय, ब्रह्मा, विष्णु भी हैं। इन मूर्तियों में खुजराहो के दुलादेव की मूर्तियों के समान चेहरे और ओठ हैं। इसके अतिरिक्त इस दीवार पर नाग की मूर्ति है जो द्विभुजी तथा पांच फणों वाली हैं। यहां इन्हें ललितासन मुद्रा में कमल पर बैठे चित्रित किया गया है। पश्चिम दीवार के आलों में समभंग मुद्रा में चतुर्भज विष्णु, शिव की नटेश मूर्ति और ब्रह्मा की खड़ी मूर्ति निरूपित है। उत्तरी दीवार पर गजासुर संहारक की मूर्ति है जो आलढ़ासन मुद्रा में अपने दोनों हाथों में गजर्चम लिए हुए हैं। इसी दीवार पर महिषासुरमर्दनी की भी मूर्ति है। बलराम के सिर पर गुप्त कालीन मूर्तियों के समान सिर पर सात फणों का अंकन हुआ है। इसी पर अर्धनारीश्वर की मूर्ति है। इसका दाहिना भाग पुरु ष तथा बाया भाग स्त्री का है। स्त्री के हाथ में दर्पण तथा बगल में सिंह निर्मित है। इसके अतिरिक्त ब्रह्मा और नाग को निरुपित किया गया है। कर्दमेश्वर महादेव मंदिर नाग शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है।
मंदिर तलछंद विन्यासी की स्थापित है। गर्भगृह की छत अष्ट भुजाकार है जिसमें चार प्रस्तर खण्डों द्वारा आड़ा तिरछा रखकर बनाया गया है। गर्भगृह का प्रवेश द्वार फूलपत्तियों युक्त डिजाइनों द्वारा अलंकृत है। चौखट भाग पर गंगा-जमुना की मूर्तियां है जो शुभ का प्रतीक हैं। गर्भगृह के सामने अर्धमण्डप है जो आठ स्तम्भों पर आधारित है। यह स्तम्भ दो पंक्तियों में लगाया गया है। अर्धमण्डप सामने से खुलता है उसके बगल में ऊंचे अधिष्ठान गर्भगृह, अन्तराल, अधमण्डप से युक्त है तथा इरुछंद विन्यास की दृष्टि से शिखर अंग से युक्त खुजराहो शैली में निर्मिंत है। मंदिर पर उत्कीर्ण मूर्तियों में बालों की बनावट, आभूषण शारीरिक घुमाव, उभार चेहरे की बनावट में गुप्त और खुजराहो शैली का प्रभाव दिखायी देता है। इससे यह पता चला है कि 11वीं व 12वीं सदी में काशी में गुप्त शैली व खुजराहो मूर्ति शैली की मूर्तियां व मंदिरों पर था जो इस उत्तर भारत में कहीं भी दिखायी नहीं देती।
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