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नरक से मुक्ति के लिए घर के प्रवेश द्वार के बाहर जलाये चौमुखा (चार बत्तियों वाला) दीपक , आज ही श्रीकृष्ण ने किया था नरकासुर राक्षस का वध


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24 अक्टूबर, सोमवार
नरक चतुर्दशी ‘रूप चतुर्दशी’, छोटी दीपावली और हनुमान जयंती

कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को नरक चतुर्दशी या रूप चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। इस बार यह पर्व 24 अक्टूबर, सोमवार को मनाया जाएगा। कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 23 अक्टूबर, रविवार को सायं 6 बजकर 04 मिनट से 24 अक्टूबर, सोमवार को सायं 5 बजकर 28 मिनट तक रहेगी। चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्दशी तिथि के दिन यह पर्व मनाया जाता है। चतुर्दशी तिथि के दिन तेल में लक्ष्मीजी का निवास माना गया है। सूर्योदय पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में उठकर दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर, शरीर पर तेल लगाकर स्नान करना चाहिए। स्नान के पश्चात् नवीन व या स्वच्छ व धारण करके मस्तिष्क पर तिलक लगाकर दक्षिण दिशा की ओर मुँह करके यम के निमित्त तीन-तीन जलांजलि देने का नियम है।

इस दिन यम के चौदह नामों
ॐ यमाय नम:, ॐ धर्मराजाय नम:, ॐ मृत्यवे नम:, ॐ अन्तकाय नम:,ॐ वैवस्वताय नम:, ॐ कालाय नम:,ॐ सर्वभूतक्षयाय नम:, ॐ औदुम्बराय नम:, ॐ दध्नाय नम: ॐ नीलाय नम:, ॐ परमेष्ठिने नम:, ॐ वृकोदराय नम:, ॐ चित्राय नम:, ॐ चित्रगुप्ताय नम: के तर्पण करने से वर्षभर के पाप नष्ट हो जाते हैं। जिससे जीवन में आरोग्य सुख, भौतिक समृद्धि, कार्य-व्यवसाय में सफलता आदि का सुयोग बना रहता है।

सायंकाल दीपक जलाने की परम्परा है, नरक चतुर्दशी को छोटी दीपावली भी कहते हैं। इस दिन घर के प्रवेश द्वार के बाहर चौमुखा (चार बत्तियों वाला) दीपक जलाकर रखने से नरक से मुक्ति मिलती है। परम्परा के मुताबिक आटे का चौमुखा दीपक बनाकर उसे तेल से भरकर चार बत्ती लगाकर प्रज्वलित किया जाता है। प्रदोष काल के समय तिल के तेल का 14 दीपक प्रज्वलित करके देवस्थान, बाग-बगीचे और अन्य स्वच्छ स्थानों पर रखने की परम्परा है। प्रदोष काल का शुभारम्भ सूर्यास्त के पश्चात् और रात्रि के प्रारम्भ को बतलाया गया है। प्रदोष काल 2 घटी या तीन घटी यानि 48 या 72 मिनट का होता है।
पौराणिक मान्यता है कि द्वापर युग में नरकासुर नामक राक्षस ने देवताओं और मनुष्यों को बहुत परेशान कर रखा था। उसके आक्रान्त से सभी लोग दुखी थे। भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन नरकासुर राक्षस को यमलोक पहुँचाया था। उसी के फलस्वरूप नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है।

श्री हनुमान जन्मोत्सव (24 अक्टूबर, सोमवार)
काॢतक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को सायंकाल मेष लग्न में श्रीहनुमान जी का जन्म माना जाता है। इस दिन श्रीहनुमान जी का जन्म-महोत्सव काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन भक्तिभाव से श्री हनुमान जी की पंचोपचार या षोडशोपचार पूजा-अर्चना की जाती है। मेष लग्न सायं 04 बजकर 58 मिनट से सायं 06 बजकर 36 मिनट तक है। श्रीहनुमानजी की विशेष कृपाप्राप्ति के लिए श्री हनुमानजी से सम्बन्धित स्तुति यथा श्री हनुमान चालीसा, श्री पंचमुखी हनुमत् स्तोत्र, सुन्दरकाण्ड आदि विविध मंगलपाठ किए जाते हैं। अखंड रामायण के पाठ का भी आयोजन किया जाता है। इस दिन व्रत-उपवास रखने की परम्परा है।



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Author: Admin Editor MBC

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