डाला छठ व्रत विधान : जानिये,चार दिवसीय सूर्य उपासना के इस महापर्व से कैसे मिलता हैं आरोग्य, सौभाग्य व सर्वसुख , क्या है व्रत का तरीका और पौराणिक महत्त्व
छठ व्रत : 28 अक्टूबर से 31 अक्टूबर तक
॥ व्रत का प्रथम नियम-संयम 28 अक्टूबर, शुक्रवार से
॥ व्रत का द्वितीय संयम 29 अक्टूबर, शनिवार को
॥ अस्ताचल सूर्यदेव को प्रथम अघ्र्य 30 अक्टूबर, रविवार को सायंकाल
॥ उगते हुए सूर्यदेव को द्वितीय अर्घ 31 अक्टूबर, सोमवार को
व्रत का विधान
चार दिवसीय महापर्व पर सूर्यदेव की पूजा के साथ माता षष्ठी देवी की भी पूजा-अर्चना करने का विधान है। इस पर्व पर नवीन वस्त्र, नवीन आभूषण पहनने की परम्परा है। यह व्रत किसी कारणवश जो स्वयं न कर सकें, वे अन्य व्रती को अपनी ओर से समस्त पूजन सामग्री व नकद धन देकर अपने व्रत को सम्पन्न करवाते हैं।
प्रथम संयम 28 अक्टूबर, शुक्रवार को चतुर्थी तिथि के दिन सात्विक भोजन जिसमें कद्दू या लौकी की सब्जी, चने की दाल तथा हाथ की चक्की से पीसे हुए गेहूँ के आटे की पूडिय़ाँ ग्रहण की जाती हैं, जिसे नहाय-खाय के नाम से जाना जाता है। अगले दिन 29 अक्टूबर, शनिवार को पंचमी तिथि को सायंकाल स्नान-ध्यान के पश्चात् प्रसाद ग्रहण करते हैं। जो कि धातु या मिट्टी के नवीन बर्तनों में बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में (नये चावल से बने गुड़ की खीर) ग्रहण किया जाता है, जिसे अन्य भक्तों में भी वितरित करते हैं, इसे खरना के नाम से भी जाना जाता है। तत्पश्चात् व्रत रखकर 30 अक्टूबर, रविवार को षष्ठी तिथि के दिन सायंकाल अस्ताचल (अस्त होते हुए) सूर्यदेव को पूर्ण श्रद्धाभाव से अघ्र्य देकर उनकी पूजा की जाएगी। पूजा के अन्तर्गत भगवान सूर्यदेव को एक बड़े सूप या डलिया में पूजन सामग्री सजाकर साथ ही विविध प्रकार के ऋतुफल, व्यंजन, पकवान जिसमें शुद्ध देशी घी का गेहूँ के आटे तथा गुड़ से बना हुआ ठोकवा प्रमुख होता है, भगवान सूर्यदेव को अॢपत किया जाता है।
भगवान सूर्यदेव की आराधना के साथ ही षष्ठी देवी की प्रसन्नता के लिए उनकी महिमा में गंगाघाट, नदी या सरोवर तट पर लोकगीत का गायन करते हैं, जो रात्रिपर्यन्त चलता रहता है। रात्रि जागरण से जीवन में नवीन ऊर्जा के साथ अलौकिक शान्ति भी मिलती है। अन्तिम दिन 31 अक्टूबर, सोमवार को सप्तमी तिथि के दिन प्रात:काल उगते हुए सूर्यदेव को द्वितीय अघ्र्य देकर छठ व्रत का पारण किया जाएगा। यह व्रत मुख्यत: महिलाएँ ही करती हैं। महिलाएँ अधिक से अधिक लोगों में सौभाग्य की भावना के साथ भक्तों में प्रसाद वितरण करती हैं, जिससे उनके जीवन में सुख-समृद्धि, सफलता का सुयोग बना रहे। इस महापर्व पर स्वच्छता व पूर्ण सादगी तथा नियम-संयम अति आवश्यक है। इस पर्व पर पूजा में परिवार के समस्त सदस्य पूर्ण श्रद्धा, आस्था व भक्ति के साथ अपनी सहभागिता निभाते हैं, जिससे जीवन में ऐश्वर्य, वैभव एवं सुख-समृद्धि मिलती है।
धार्मिक पौराणिक मान्यता
सूर्य षष्ठी के व्रत से पाण्डवों को अपना खोया हुआ राजपाट एवं वैभव प्राप्त हुआ था। एक मान्यता यह भी है कि काॢतक शुक्ल षष्ठी के सूर्यास्त तथा सप्तमी तिथि के सूर्योदय के मध्य वेदमाता गायत्री का प्रादुर्भाव हुआ था। ऐसी भी पौराणिक मान्यता है कि भगवान राम के वनवास से लौटने पर राम और सीता ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि के दिन उपवास रखकर प्रत्यक्ष भगवान सूर्यदेव की आराधना कर तथा सप्तमी तिथि के दिन व्रत पूर्ण किया था। इस अनुष्ठान से प्रसन्न होकर भगवान सूर्यदेव ने उन्हें आशीर्वाद प्रदान किया था। फलस्वरूप इस चार दिवसीय महापर्व में भगवान सूर्य की ही आराधना करके छठपर्व मनाया जाता है।
– ज्योतिर्विद् विमल जैन
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