गोपाष्टमी : कब शुरू हुआ गौ पूजन, जानिए गाय के शरीर में है किन किन देवता का हैं निवास
सनातन धर्म में गाय, गंगा, गायत्री, गीता, व गोविंद पूजनीय हैं। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मथुरा, ब्रज और वृंदावन में मनाया जाने वाला उत्सव है। इस दिन गाय और बछड़े की पूजा करने की परंपरा है। इस दिन सुबह गायों को स्नान करा कर आकषक ठंग से सजाकर पुष्प, अक्षत्, गंध आदि से विधि पूर्वक पूजा और अंत में आरती किया जाता है । इसके बाद गायों को भोजन दे कर उनका परिक्रमा और कुछ दूर चलने का विधान है माना जाता है ऐसा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। कुछ जगहों पर गाय के पैर के बीच से निकलने की भी परम्परा है।
गोपाष्टमी की शुरुआत
भागवत पुराण के वर्णन के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के पहले दिन से सातवें दिन तक( प्रतिपदा से लेकर सप्तमी ) इंद्र के गुस्से से गो-गोप-गोपियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठा रखा था । लगातार वारिस के बाद भी बात बनती न देख अष्टमी के दिन इंद्र ने अपनी पराजय स्वीकार श्रीकृष्ण के शरण में आ पहुंचे अष्टमी को ही कामधेनु के दूधः से भगवान श्रीकृष्ण का अभिषेक किया और श्रीकृष्ण गोविन्द के नाम से जाने गए और यही से गोपाष्टमी का उत्सव मनाने की परम्परा का शुरुआत हुआ। मान्यता यह भी है कि गोपाष्टमी के दिन नन्द बाबा ने श्रीकृष्ण को स्वतन्त्र रूप से गायों को वन में चराने की आज्ञा दी थी।
शास्त्रनुसार गाय सर्वदेवमयी है। पद्मपुराण के अनुसार गोमूत्र में भवानी, गोबर में लक्ष्मी जी खुर में नागदेवता पैरों में देवता, रंभाने में प्रजापति व थनों में समुद्र ,मुख में चारों वेदों, सींगों में शंकर व विष्णु, उदर में कार्तिकेय, मस्तक में ब्रह्मा, ललाट में रुद्र, नेत्रों में सूर्य-चंद्र सहित सभी देवता विराजते है।
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