भीष्म पंचक 2022 : 4 नवंबर से शुरुआत हो रही हैं इस व्रत की जानिए पूरी जानकारी
भीष्म पंचक का शास्त्रों में विशेष महत्व है। पंचांग के अनुसार हर साल प्रबोधनी एकादशी से भीष्म पंचक व्रत शुरू होता है, जो पांचवे दिन कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है। इसलिए इसे भीष्म पंचक कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार पांडवों ने कार्तिक शुक्ल एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक पितामह से धर्म उपदेश ग्रहण किया था। इस साल भीष्म पंचक 4 नवंबर शुरू होगा, जो कि 8 नवंबर तक रहेगा।भीष्म पंचक में व्रत और पूजा करने से शुभ फल प्राप्त होने की मान्यता है। आइए जानते हैं इसके लाभ और महत्व…
जानिए पूजा- विधि
प्रबोधनी एकादशी के दिन जल्दी उठ जाएं और फिर साफ- सुथरे वस्त्र पहन लें। इसके बाद चौकी पर भगवान कृष्ण का चित्र स्थापित करें। वहीं अगर भीष्म पितामह का चित्र हो तो अच्छा है। इसके बाद व्रत का संकल्प लें और दीवार पर मिट्टी से सर्वतोभद्र की वेदी बनाकर कलश की स्थापना करें। साथ ही भगवान कृष्ण और भीष्म पितामह को चंदन लगाएं। साथ ही फल और फूल अर्पित करें। इसके बाद दीप जलाएं, ध्यान रहे यह दीपक पांच दिन तक जलना चाहिए। साथ ही अंतिम दिन मतलब कार्तिक पूर्णिमा की तिथि पर हवन करें। भीष्म पंचक व्रत समस्त प्रकार के सुख भोग और आध्यात्मिक, आत्मिक उन्नति के लिए किया जाता है। इस व्रत को रखने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होने की मान्यता है।
जानिए धार्मिक महत्व
महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद जब भीष्म पितामह सरशैया पर लेते हुए थे और सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। जब भगवान श्री कृष्ण ने पंडवों से कहा कि तुम सभी पांडवों को पितामह से ज्ञान लेना चाहिए। जिसके बाद सभी पांडव भगवान श्री कृष्ण के साथ पितामह के पास पहुंचे और भगवान कृष्ण ने पितामह से ज्ञान देने का अनुरोध किया। जिसके बाद पितामह ने धर्म, वर्ण धर्म और मोक्ष धर्म का अनमोल ज्ञान दिया।
यह उपदेश कार्तिक शुक्ल एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक चला। वहीं उनका उपदेश सुनकर श्रीकृष्ण संतुष्ट हुए और बोले पितामह, आपने कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक पांच दिनों में जो धर्ममय उपदेश दिया है, उससे मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है। इसलिए आज से इन पांच दिनों को भीष्म पंचक के नाम से जाना जाएगा। तब से ही भीष्म पंचक व्रत रखा जाने लगा।
व्रत – त्यौहार
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