Home 2022 Pushkar सरोवर : प्रसिद्ध तीर्थ स्थल पुष्कर, जहाँ कार्तिक एकादशी से पूर्णिमा तक स्नान से मिलता हैं ये

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Pushkar सरोवर : प्रसिद्ध तीर्थ स्थल पुष्कर, जहाँ कार्तिक एकादशी से पूर्णिमा तक स्नान से मिलता हैं ये फल

राजस्थान में पुष्कर एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। यहां पर ब्रह्मा का एकमात्र प्रसिद्ध मंदिर है और सावित्री का मंदिर भी है। यहीं पर ब्रह्माजी ने यज्ञ किया था। यहां पर हिन्दुओं के पवित्र सरोवरों में से एक पुष्कर सरोवर है जिसे झीत भी कहते हैं। यहां पर प्रतिवर्ष कार्तिक मास में मेला लगगा है और कार्तिक पूर्णिमा का स्नान किया जाता है।
पुष्कर में कई देशी और विदेशी पर्यटक आते जाते रहते हैं। इसलिए यहां पर दिपावली का उत्सव अलग ही अंदाज में मनाया जाता है। यहां की दिवाली देशभर में प्रसिद्ध है। पूरे शहर के दीपों से सजाया जाता है। पुष्कर झील के आसपास दिवाली के दीये जब जलाए जाते हैं तो पूरा क्षेत्र ऐसा नजर आता है जैसे झील में सूर्य उतर आया हो। यहां पर दिवाली पर 5 दिनों का भव्य उत्सव, ऊंट मेला और समारोह होता है जिसे देखने के लिए देश और विदेश से लोग आते हैं।

कार्तिक स्नान

पुस्कर में स्नान करने से जातक के पापों का क्षय होता है और उसे जन्म मरण के चक्र से छुटकारा मिलता है। पुष्कर मेले के दौरान आंवला नवमी भी स्नान कर महिलाएं ने आंवले के पेड़ की पूजा करती हैं। यह मान्यता भी है कि इस झील में डुबकी लगाने से पापों का नाश होता है।

पुस्कर मेला

ब्रह्माजी ने पुष्कर में कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णमासी तक यज्ञ किया था जिसकी स्मृति में अनादिकाल से यहां कार्तिक मेला लगता आ रहा है। सैकड़ों श्रद्धालु ने पुष्कर सरोवर की महाआरती करते हैं। इसके बाद आतिशबाजी के नजारों ने पुष्कर सरोवर का नजारा ही बदल जाता है। सरोवर के ब्रह्म घाट पर फूल बंगला भी सजाया जाता है। पुष्कर मेला मैदान पर पशुओं की खरीदी बिक्री भी होती है।

ब्रम्हा मंदिर

पुष्कर के मुख्य बाजार के अंतिम छोर पर ब्रह्माजी का मंदिर बना है। आदि शंकराचार्य ने संवत् 713 में ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना की थी। मंदिर का वर्तमान स्वरूप गोकलचंद पारेख ने 1809 ई. में बनवाया था। यह मंदिर विश्व में ब्रह्माजी का एकमात्र प्राचीन मंदिर है। मंदिर के पीछे रत्नागिरि पहाड़ पर जमीन तल से दो हजार तीन सौ 69 फुट की ऊंचाई पर ब्रह्माजी की प्रथम पत्नी सावित्री का मंदिर है। यज्ञ में शामिल नहीं किए जाने से कुपित होकर सावित्री ने केवल पुष्कर में ब्रह्माजी की पूजा किए जाने का श्राप दिया था।

गायत्री मंदिर

आद्य शंकराचार्य ने संवत् 713 में ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना की थी। यहां पर माता गायत्री की प्रतिमा भी विराजमान है। कहते हैं कि पुष्कर में ही यज्ञ के दौरान सावित्री के अनुपस्थित होने की स्थित में ब्रह्मा ने वेदों की ज्ञाता विद्वान स्त्री गायत्री से विवाह कर यज्ञ संपन्न किया था। उल्लेखनीय है कि हरिद्वार शांतिकुंज वाले गायत्री परिवार ने देश-दुनिया में गायत्री शक्तिपीठ स्थापित कर रखें हैं वहां पर आप गायत्री मंदिर में माता गायत्री के दर्शन कर सकते हैं।

सावित्री माता मंदिर :

पुष्कर में रत्नागिरी पहाड़ी पर स्थित सावित्री माता का प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर भगवान ब्रह्मा की पत्नी देवी सावित्री को समर्पित है। सावित्री मंदिर काफी ऊंचाई पर स्थित है जिसकी वजह से मंदिर से पुष्कर शहर और आस-पास की सभी घाटियों का दृश्य काफी साफ दिखाई देता है।

मणिबन्ध मणिदेविक शक्तिपीठ :

अजमेर के निकट विश्व प्रसिद्ध पुष्कर नामक स्थान से लगभग 5 किलोमीटर दूर गायत्री पर्वत पर दो मणिबंध (हाथ की कलाई) गिरे थे इसीलिए इसे मणिबंध स्थान कहते हैं। इसे मणिदेविक मंदिर भी कहते हैं। इसकी शक्ति है गायत्री और शिव को सर्वानंद कहते हैं। यह शक्तिपीठ मणिदेविका शक्तिपीठ नाम से ज्यादा विख्यात है।

पुष्कर में तप

सृष्टि के रचियता ब्रह्मा की यज्ञस्थली और ऋषियों की तपस्यास्थली तीर्थगुरु पुष्कर नाग पहाड़ के बीच बसा हुआ है। पुष्कर में अगस्तय, वामदेव, जमदाग्नि, भर्तृहरि इत्यादि ऋषियों के तपस्या स्थल के रूप में उनकी गुफाएं आज भी नाग पहाड़ में हैं। महाभारत के वन पर्व के अनुसार योगीराज श्रीकृष्ण ने पुष्कर में दीर्घकाल तक तपस्या की थी। सुभद्रा के अपहरण के बाद अर्जुन ने पुष्कर में विश्राम किया था।।

मुक्ति कर्म :

यहां पर प्राचीन झील के किनारे मुक्ति कर्म भी किया जाता है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने भी अपने पिता दशरथ का श्राद्ध पुष्कर में किया था। यह स्थान गया की तरह भी प्रसिद्ध है।

पुष्कर के अन्य पौराणिक तथ्य :

पुष्कर को पांच तीथों में सर्वाधिक पवित्र माना गया है। पुष्कर, कुरुक्षेत्र, गया, हरिद्वार और प्रयाग को पंचतीर्थ कहा गया है। अर्द्ध चंद्राकार आकृति में बनी पवित्र एवं पौराणिक पुष्कर झील धार्मिक और आध्यात्मिक आकर्षण का केंद्र रही है। झील की उत्पत्ति के बारे में किंवदंती है कि ब्रह्माजी के हाथ से यहीं ” कमल पुष्प गिरने से जल प्रस्फुटित हुआ जिससे इस झील का उद्भव हुआ। झील के चारों ओर 52 घाट व अनेक मंदिर बने हैं। इनमें गऊघाट, वराहघाट, ब्रह्मघाट, जयपुर घाट प्रमुख हैं। जयपुर घाट से सूर्यास्त का नजारा अत्यंत अद्भुत लगता है। झील के बीचोंबीच छतरी बनी है।


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Author: Admin Editor MBC

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