जानिए कैसे बनी काशी संगीत की नगरी ?
ओमकार से जन्मा संगीत महादेव की मुख से होकर समस्त देवी देवताओ का कल्यान करता हुआ सभी प्राणियों को उपहार रूप में मिला | भगवान शंकर ने ही रागों की रचना की |ब्रह्मांड में सबसे पहले गायक और गायिका भगवान शिव और माता पार्वती को माना जाता है | गायन वादन और नृत्य की कला की समावेश को संगीत कहा जाता है |
बनारस स्वयं महादेव की नगरी है, बनारस और संगीत का सदियों से गहरा रिश्ता रहा है, बनारसी संगीत ने आधुनिक भारत की सोच और आध्यात्मिकता मे बहुत बड़ा योगदान दिया | हम भारत की शास्त्रीय संगीत पर नजर डाले तो इस बात का एहसास होता है कि भारतीय शास्त्रीय संगीत के सभी श्रेष्ठ महारथीयों ने बनारस के कबीर चौरा के आसपास 300 मी. के दायरे में ही जन्म लिया था | जैसे उस्ताद बिस्मिल्ला खां, पंडित रवि शंकर, पंडित किशन महाराज, राम सहाय, सितारा देवी आदि |आज बनारसी तबला घराना अपने शक्तिशाली रूप के लिये प्रसिद्ध है, हालांकि बनारस घराने के वादक हल्के और कोमल स्वरों के वादन में भी सक्षम हैं। घराने को पूर्वी बाज मे वर्गीकृत किया गया है, जिसमें लखनऊ, फर्रुखाबाद और बनारस घराने आते हैं। बनारस घराने के तबला वादक तबला वादन की सभी शैलियों में, जैसे एकल, संगत, गायन एवं नृत्य संगत आदि में पारंगत होते हैं।
बनारस घराना भारतीय तबला वादन के छः प्रसिद्ध घरानों में से एक है।ये घराना २०० वर्षों से कुछ पहले ख्यातिप्राप्त पंडित राम सहाय (1780-1826) के प्रयासों से विकसित हुआ था।
जब राम सहाय मात्र 17 वर्ष के ही थे, तब लखनऊ के नये नवाब ने मोधु खान से पूछा कि क्या राम सहाय उनके लिये एक प्रदर्शन कर सकते हैं? कहते हैं, कि राम सहाय ने 7 रातों तक लगातार तबला-वादन किया जिसकी प्रशंसा पूरे समाज ने की एवं उन पर भेटों की बरसात हो गयी। अपनी इस प्रतिभा प्रदर्शन के बाद राम सहाय बनारस वापस आ गये।कई वादक जैसे पंडित शारदा सहाय, पंडित किशन महाराज और पंडित समता प्रसाद, एकल तबला वादन में महारत और प्रसिद्धि प्राप्त हैं।
– जया पाण्डेय
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