काशी रहस्य का अद्भुत संयोग, जहां डुबकी लगाने से भर जाए सूनी गोद
कुंडों के शहर वाराणसी वैसे तो काशी के हर नदी, तालाब, कुंडको ही जल तीर्थ की मान्यता है, परंतु वाराणसी का ही एक ऐसा कुंड है जहां स्नान मात्र से संतान प्राप्ति की कामना पूर्ण होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार देवासुर संग्राम के दौरान भगवान सूर्य के रथ का पहिया इस जगह पर गिरा था, जिसके बाद यहां पर कुंड का निर्माण हुआ। बता दें, आज भी काशी में उदय होने वाले सूर्य की पहली किरण इस कुंड में पड़ती है। यहां पर जो भी भक्त पूरी श्रद्धा के साथ स्नान करता है, उसके सभी रोग दूर हो जाते हैं। पांचों पांडवों ने और भगवान कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न ने भी यहीं पर स्नान किया था। सूर्य के बारह आदित्यों में से प्रथम लोलार्क आदित्य यहीं पर स्थापित है।
लोलार्क कुंड की मान्यता:
अद्भुत शक्ति वाले इस कुंड की मान्यता यह है कि जिन विवाहित महिलाओं की गोद सूनी होती है, उन दंपति को लोलार्क छठ के दिन काशी के भदैनी स्थित लोलार्क कुंड में तीन बार डुबकी लगाकर स्नान करने से पुत्र प्राप्ति का सुख प्राप्त होता है।
पुत्र की प्राप्ति से पहले नही खाना चहिए ये फल:
कुंड में स्नान के बाद दंपति को एक फल का दान कुंड में करना चहिए अर्थात स्नान के दौरान दंपति जिस फल का दान कुंड में करते हैं, मनोकामना पूर्ति तक उसे उसका सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से भगवान सूर्य प्रसन्न होते हैं और स्नान करने वाली माताओं की सूनी गोद भर जाती है।
पौराणिक महत्व:
पौराणिक मान्यता के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्य षष्ठी या लोलार्क षष्ठी के नाम से मनाया जाता है। पौराणकि कथा के अनुसार सूर्य देव ने विद्युन्माली नाम के शिव भक्त असुर का वध कर दिया था। इससे क्रोधित हो कर भगवान शिव ने सूर्य देव को मारने के लिए अपना त्रिशूल हाथ में उठा लिया। शिव जी के क्रोध से बचते हुए सूर्य देव काशी में आकर रूकेथे। माना जाता है कि यहां पर उनके रथ का एक पहिया गिर गया था,इस कारण इस स्थान का नाम लोलार्क पड़ गया। काशी में भगवान शिव की शरण में पहुंच कर सूर्य देव को अभयदान मिला। तब से मान्यता है कि काशी के इस सूर्य कुण्ड या लोलार्क कुण्ड में स्नान करने से भक्तों को सभी रोग और दोषों से मुक्ति मिलती है।
– सौम्या सिंह
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