मुक्ति व मानव दुख के अंत का मंच है मणिकर्णिका घाट
हिंदू धर्म में पवित्र शास्त्रों द्वारा इसे अन्य घाटों में सर्वोच्च स्थान दिया गया है। ऐसा माना जाता है कि अगर यहां किसी व्यक्ति का अंतिम संस्कार किया जाता है, तो उसे तुरंत मोक्ष की प्राप्ति होती है, अर्थात इस स्थान पर अंतिम संस्कार होने पर व्यक्ति सीधे स्वर्ग को जाता है। पुराणों में यह भी बताया गया है कि इस स्थान पर आकर मौत भी दर्द हीन हो जाती है जिसका मतलब हुआ कि इस स्थान पर जिस भी व्यक्ति की मृत्यु होती है उसे किसी भी दर्द की अनुभूति नहीं होती है। इससे जुड़ी एक और हैरान कर देने वाली बात ये है कि यहां पर साल में एक दिन ऐसा भी होता है जब नगर बधु पैर में घुंघरू बांधकर यहां नृत्य करती हैं। ये कार्यक्रम चैत्र नवरात्र की सप्तमी की रात में होता है। महाश्मशान पर अनूठी साधना की परंपरा श्मशान नाथ महोत्सव का हिस्सा है। मौत के मातम के बीच वे नाचती-गाती हैं। और नाचते हुए वे ईश्वर से प्रार्थना करती हैं कि उनको अगले जन्म में ऐसा जीवन ना मिले। ये परंपरा अकबर काल में आमेर के राजा सवाई मान सिंह के समय से शुरू होकर अब तक चली आ रही है।
कैसे पड़ा मणिकर्णिका नाम:
मान्यता है कि भगवान शिव और पार्वती के स्नान के लिए यहां विष्णु जी ने कुआं खोदा था, जिसे लोग अब मणिकर्णिका कुंड के नाम से भी जानते हैं। जब भगवान शिव इस कुंड में स्नान कर रहे थे, तब उनका एक कुंडल कुएं में गिर गया तब से इस जगह को मणिकर्णिका घाट कहा जाने लगा।
पौराणिक महत्व:
यह मान्यता है कि यहां हजारों साल तक भगवान विष्णु ने भगवान शिव की आराधना की थी और ये प्रार्थना की थी कि सृष्टि के विनाश के समय भी काशी को नष्ट न किया जाए। भगवान विष्णु की प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवान शिव अपनी पत्नी पार्वती के साथ काशी आए और उन्होंने भगवान विष्णु की मनोकामना पूरी की। तभी से यह मान्यता है कि वाराणसी में अंतिम संस्कार करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
माता सती का अंतिम संस्कार:
यह भी कहा जाता है कि भगवान् भोलेनाथ जी द्वारा यही पर माता सती जी का अंतिम संस्कार किया था। इसी कारण यह घाट महाश्मशान घाट प्रसिद्ध है।
कुंड से निकली प्रतिमा:
प्राचीन काल में मां मणिकर्णिका की अष्टधातु की प्रतिमा इसी कुंड से निकली थी। कहते हैं कि यह प्रतिमा वर्षभर ब्रह्मनाल स्थित मंदिर में विराजमान रहती है
365 दिन 24 घंटे जलती है चिताओं की अग्नि:
यहां चिता की अग्नि कभी ठंडी नहीं होती है। यही नहीं यहां के लोगों का यह भी मानना है कि इस घाट में जिस दिन भी चिताएं जलनी बंद हो जाएंगी उस दिन वाराणसी के लिए प्रलय का दिन होगा। वास्तव में वाराणसी का मणिकर्णिका घाट देश के अनोखे स्थानों में से एक है जो न जाने कितनी विविधताओं को समेटे हुए है।
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