बृहदेश्वर मंदिर : कई भूकंपों के बाद भी नहीं टूटा यह मंदिर, बगैर नींव के बना है …
तमिलनाडु का बृहदेश्वर मंदिर – भारत का सबसे ऊंचा और फेमस शिव मंदिर है, क्या है इसकी खासियत, महत्व और कैसे बना ये मंदिर
दक्षिण भारत में कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, जो केरल, चेन्नई और तमिलनाडु स्थित हैं। हर कोई मंदिर अपनी विशेषता के लिए जाने जाते हैं। तमिलनाडु का बृहदेश्वर मंदिर विश्व का सबसे प्रसिद्ध और ऊंचा मंदिर है, इसकी बनावट देखकर आपकी आंखें खुली रह जाएंगी। इस मंदिर का खास बात है कि यह बिना नींव का मंदिर है।
यह मंदिर भारत का सबसे ऊंचा मंदिर है जिसे हेरिटेज का दर्जा दिया गया है। इसे इंटरलॉकिंग विधि का उपयोग करके बनाया गया है, इसके निर्माण में पत्थरों के बीच कोई सीमेंट,प्लास्टर या किसी भी तरह के चिपकने वाले पदार्थों का प्रयोग नहीं किया गया है। इसके बावजूद पिछले 1000 वर्षों में 6 बड़े भूकंपों को झेलकर यह मंदिर आज भी वैसे का वैसा ही है। यह मंदिर 216 फीट ऊंचा है। इस मंदिर के निर्माण के सालों बाद पीसा का मीनार बना लेकिन वो समय के साथ साथ झुक गया लेकिन इस मंदिर की नींव आज भी वैसे ही मजबूत है।
क्यों है ये मंदिर खास
Why is this temple special
बृहदेश्वर मंदिर (Brihadeshwara Temple) के नाम से पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। ये भव्य मंदिर तमिलनाडु के तंजावुर ज़िले में मौजूद है। इसका निर्माण 1003-1010 ई. के बीच चोल राजवंश के शासन में हुआ था। द्रविड़ शैली में बने इस मंदिर का निर्माण चोल शासक प्रथम राजा ने करवाया था।
इसलिए इसे राजराजेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। 13 मंजिला ये टेंपल अपनी भव्यता के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इस मंदिर के निर्माण के लिए 1.3 लाख टन ग्रेनाइट का उपयोग किया गया था जिसे 60 किलोमीटर दूर से 3000 हाथियों द्वारा ले जाया गया था । मंदिर टॉवर के शीर्ष पर स्थित शिखर का वजन 81 टन है, जो आज के समय के हिसाब से बहुत भारी है। कब बना था बृहदेश्वर मंदिर ? लोग ये देखकर दंग रह जाते हैं कि किस तकनीक की मदद से प्राचीन काल में इस मंदिर को बनवाया गया होगा। लगभग 216 फ़ीट की ऊंचाई वाले इस मंदिर को 130,000 टन ग्रेनाइट के पत्थरों से बनाया गया है।
बिना किसी मशीन के कैसे पहुंचाए इतनी ऊपर पत्थर
How to reach the stone so high without any machine
गीज़ा के महान पिरामिडों की तुलना में इसमें अधिक पत्थरों को नीचे से ऊपर की ओर स्थापित किया गया. हैरानी की बात ये है कि उस दौर में न तो कोई मशीन न ही कोई दूसरा यंत्र जिसकी सहायता से इतने भारी-भरकम पत्थरों को ऊपर तक पहुंचाया गया. यही नहीं इसमें जो पत्थर लगे हैं उन्हें बिना किसी सीमेंट के ऐसे ही एक के ऊपर एक रखकर बनाया गया है।
80 टन के पत्थर से बना है इसका गुंबद
Its dome is made of 80 tonnes of stone
इतनी सदियां बीत जाने और कई भूकंप आने के बाद भी मंदिर ऐसे के ऐसे है जैसे पहले था। जानकारों का कहना है इस मंदिर के निर्माण में हाथियों का प्रयोग किया गया था और मंदिर के ऊपरी हिस्से को बनाने के लिए एक 6 किलोमीटर का रैंप तैयार किया गया था। इसके गुंबद में जो पत्थर लगा है वो 80 टन का है। मंदिर को पज़ल टेक्नीक के हिसाब से बनाया गया है। इसके गर्भगृह में भगवान शिव का एक शिवलिंग भी स्थापित है। ये शिवलिंग 12 फ़ीट का है। मंदिर के बाहर नंदी भी विराजमान हैं। नंदी की इस विशाल प्रतिमा को भी एक ही पत्थर से बनाया गया है। ये मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल की लिस्ट में शामिल है।
पत्थरों को कैसे तराशा गया होगा?
How would the stones have been carved?
मंदिर के आस-पास के इलाके में ग्रेनाइट का पत्थर उपलब्ध नहीं है. इसलिए इन्हें संभवत: कहीं दूर से यहां पर लाया गया होगा। वास्तव में इसके लिए भी काफ़ी धन-बल ख़र्च हुआ होगा। ग्रेनाइट को काटने के लिए स्पेशल औज़ार (हीरे से बना) की ज़रूरत होती है, प्राचीन काल में इन्हें कैसे काटा-तराशा गया ये भी एक रहस्य है।
इस मंदिर में शिवलिंग स्थापित है। मंदिर में प्रवेश करने पर गोपुरम यानी द्वार के भीतर एक चौकोर मंडप है तथा चबूतरे पर नंदी जी की विशाल मूर्ति स्थापित है। नंदी की यह प्रतिमा भारतवर्ष में एक ही पत्थर से निर्मित नंदी की दूसरी सर्वाधिक विशाल प्रतिमा है।
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