नदी : ऋग्वेद में सबसे पवित्र नदी किसे बताया गया है, कहां है ये नदी
भारतीय पुरातत्ववेत्ताओं और नासा ने सरस्वती नदी के विषय में काफी खोजबीन की है, जिससे अब प्रमाणित हो गया है कि यह किसी तरह का मिथक या कपोल कल्पित बाते नहीं है बल्कि सरस्वती एक ऐतिहासिक नदी थी जो कालान्तर में लुप्त हो गई तथा उसके परिवहन पथ पर यमुना बहने लगी।
प्राप्त साक्ष्यों से यह मालूम हुआ है कि नदी के किनारों पर हजारों की संख्या में गाँव और नगर बसे हुए थे, जो हड़प्पा संस्कृति कहलाई. यह सिन्धु सभ्यता की पूर्ववर्ती संस्कृति थी।
माना जाता है कि 900 ई पू के आसपास नदी का पानी सूखने लगा सम्भवतः विवर्तनिक बदलाव के कारण यह नदी सूख गई. सूखने से पूर्व सरस्वती आदिबद्री (देहरादून के नजदीक) और राजस्थान, गुजरात के अपवाह तन्त्र होते हुए अरब सागर में जाकर मिलती थी।
सबसे पवित्र नदी
सरस्वती का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है. इस वेद में इस प्राचीन भारतीय नदी के बारे में नदीतमे (नदियों में श्रेष्ट), अम्बितमे व देवितमे (माताओं देवियों में श्रेष्ट) मानी गई सरस्वती का उद्गम भारतीय पुरातत्व परिषद के अनुसार हिमालय पर्वतमाला की शिवालिका श्रेणी के रूपण हिमनद से बताया गया है. हालांकि वर्तमान में सरस्वती नदी लुप्त नदियों में गिनी जाती है, इसके बारे में अधिक पुरातात्विक जानकारियां उपलब्ध नही है।
नदी की भागोलिक स्थिति
यह नदी रूपण से आदिबद्री तक पहुच कर जल धारा का रूप ले लेती थी. द्रष्द्वती व हिरण्यवती जैसी सहायक धाराओं का जल लेकर वर्तमानकालीन सतलज व यमुना मार्ग के मध्य भाग में बहने वाली वेद पुराणकालीन सरस्वती के प्रवाह मार्ग कालान्तर में भूगर्भिक हलचलों रवन उत्थानों के स्वरूप पश्चिम में खिचकते हुए अततः जलापूर्ति में कमी आने से सतह पर सूखते गये और यह नदी धीरे धीरे विलुप्त (अन्तः सलिला) हो गई।
इसरों द्वारा किये गये शोध से पता चला है कि कुरु क्षेत्र का ब्रह्मा सरोवर, पेहवा आदि में विद्यमान अर्द्ध चन्द्राकार झीलें तथा पंजाब, हरियाणा व उत्तर पश्चिमी राजस्थान से होकर पाकिस्तान तक घग्घर हकरा नारा के रूप में द्रश्यमान प्रवाह मार्ग उक्त सरस्वती नदी की धरातलीय भूमिगत उपस्थति के प्रमाण है।
आरंभिक पुरातात्विक प्रमाणों के आधार पर हड़प्पा सभ्यता को सिन्धु घाटी सभ्यता का नाम दिया गया. किन्तु सिन्धु तट पर प्राप्त प्राचीन बस्तियों (265) से कई गुना प्राचीन बस्तियों (2600) वैदिक सरस्वती नदी के तट पर पाये जाने से इसे सिन्धु सरस्वती सभ्यता के नाम से मान्य किया जाने लगा है।
नदी का उद्गम स्थल
प्राचीन भारतीय ग्रन्थ महाभारत के अनुसार विलुप्त सरस्वती नदी का उद्गम स्थल वर्तमान हरियाणा प्रदेश के यमुनानगर के आदिबद्री नामक स्थान को माना जाता है, इस पवित्र नदी का यह उद्गम स्थल होने के कारण आज यह एक तीर्थस्थल के रूप में अपनी मान्यता रखता है. आज भी हरियाणा के आदिबद्री की शिवालिक पहाडियों में एक छोटे आकार में जल धारा बहती है, जो कुछ दुरी पर चलकर समाप्त हो जाती है, इसलिए ऐसा भी माना जाता है, कि सरस्वती वर्तमान में पाताल में बहती है।
हरियाणा के कुरुक्षेत्र मैदान में बड़े सरोवर बने हुए है, जब सरस्वती अपने इस प्रवाह मार्ग से चला करती थी, तब ये सरोवर जल से भर जाया करते थे, तथा जल की कमी के समय इसी जल का उपयोग किया जाता है. इतिहासकारों द्वारा इस संबंध में किये गये शोधों से इस बात की पुष्टि होती है, कि सरस्वती का उद्गम उतरांचल के हिमनंद ग्लेशियर से हुआ करता था. यही से जल धारा नीचे बहकर नदी का रूप धारण करती थी, इस ग्लेशियर को सरस्वती ग्लेशियर भी कहा जाता है।
इस नदी में समय समय पर प्रवाह तन्त्र में बदलाव हुए थे, एक समय यह चम्बल की सहायक नदी हुआ करती थी. उस समय यह अपना जल यमुना के साथ भी सांझा किया करती थी. प्रयाग में गंगा, यमुना एवं सरस्वती का संगम माना जाता है, असल में ये नदियाँ यहाँ कभी नही मिलती थी।
विलुप्त होने के कारण
आज के समय में सरस्वती के बारे में सबसे रोचक सवाल यही हैं कि सरस्वती नदी आखिर कैसे विलुप्त हो गई . क्यों वो एक कारण था जिसके चलते हमेशा बारहमास चलने वाली जलधारा बस एक इतिहास ही रह गई।
पिछले दो दर्शकों में इतिहासकारों तथा पुरातत्ववेत्ताओं का मानना है कि सरस्वती नदी जिस ग्लेशियर से होकर निकलती थी संभवतः वे सूख गये होंगे इस कारण यह नदी अपने आप सूख गई होगी।
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