10 दिशाओं को क्यों माना जाता है महत्वपूर्ण ? जानें इनके नाम और देवता को
वास्तु और ज्योतिष शास्त्र में 10 दिशाओं का वर्णन मिलता है। हालांकि लोगों को सिर्फ चार दिशाओं- ‘पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण’ इन्हीं के बारे में पता होता है। ऐसे में आज हम आपको वास्तु में दिशाओं का क्या महत्व और किस दिशा के कौन से देवता हैं इस बारे में बताने जा रहे हैं।
10 दिशाएं के नाम
पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण (दक्षिण दिशा में रखें ये चीजें) के अलावा 6 और दिशाएं हैं जिनके नाम कुछ इस प्रकार से हैं: उत्तर-पश्चिम, उत्तर-पूर्व, दक्षिण-पूर्व, दक्षिण-पश्चिम, दक्षिण-पूर्व, उत्तर-दक्षिण।
इसके अलावा, जो भी दो दिशाएं मिलाकर एक दिशा बनती है उसके मध्य में भिन्न-भिन्न कोण होते हैं।
जैसे कि उत्तर-पश्चिम के मध्य में व्यायव्य कोण, उत्तर-पूर्व के मध्य में ईशान कोण, दक्षिण-पूर्व के मध्य में आग्नेय कोण, दक्षिण-पश्चिम के मध्य नैऋत्य कोण आदि।
10 दिशाओं के देवता, ग्रह और महत्व
ईशान दिशा:
उत्तर और पूर्व दिशा के मध्य का स्थान ईशान कोण कहलाता है। इस दिशा के देवता भगवान शिव हैं। वहीं, इस दिशा के स्वामी ग्रह बृहस्पति हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार इस दिशा में खिड़की या दरवाजों का होना बहुत शुभ माना जाता है। यह स्थान पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ है।
पूर्व दिशा:
पूर्व दिशा के दिग्पाल इंद्र देव हैं। साथ ही, इस दिशा के स्वामी ग्रह सूर्य देव हैं। इस दिशा में पितरों का भी वास होता है। इसी कारण से इस दिशा को खुले रखने की बात वास्तु शास्त्र में कही जाती है। इस दिशा में सीढ़ियां भी नहीं बनवानी चाहिए।
वायव्य दिशा:
उत्तर-पश्चिम के मध्य स्थान को वायव्य दिशा या कोण कहा जाता है। इस दिशा के देवता वायु देवता हैं और इस दिशा के ग्रह स्वामी चंद्रमा हैं। इस दिशा को साफ-सुथरा रखने को हल्का फुल्का सामान रखने से रिश्तों में मधुरता बनी रहती है। इस दिशा में भारी सामान नहीं रखना चाहिए।
पश्चिम दिशा:
पश्चिम दिशा के देवता वरुण देव हैं यानी कि पानी के देवता और इस दिशा के ग्रह स्वामी शनिदेव हैं। इस दिशा को कभी भी खाली नहीं छोड़ना चाहिए। इस दिशा में भारी सामान रखना बेहद शुभ फलदायक होता है। इस दिशा को खाली छोड़ने से व्यापार में दिक्कतें आती हैं।
उत्तर दिशा:
उत्तर दिशा के देवता भगवान धनवंतरी यानी कि कुबेर देव हैं। इस दिशा के स्वामी ग्रह बुध हैं। वास्तु में इस दिशा को धन लाभ कराने वाली दिशा माना गया है। इसलिए इस दिशा में बने कमरे में हमेशा मां लक्ष्मी की फोटो या तस्वीर अवश्य होनी चाहिए। इससे घर में आर्थिक तंगी नहीं आती।
आग्नेय दिशा:
दक्षिण-पूर्व के मध्य स्थान को आग्नेय कोण कहा जाता है। जैसा कि इसके नाम से ही समझ आता है कि इस दिशा के देवता अग्नि देव हैं। वहीं, इस दिशा के स्वामी ग्रह शुक्र देव हैं। इस दिशा में रसोई बनाना बेहद शुभ माना जाता है।
दक्षिण दिशा:
दक्षिण दिशा के देवता यमराज हैं तो वहीं इसके स्वामी ग्रह मंगल देव हैं। इस दिशा में भारी निर्माण और भारी सामान रखना शुभ होता है। हालांकि दक्षिण दिशा में दरवाजा बनाने के लिए वास्तु में मना किया जाता है।
नैऋत्य कोण:
दक्षिण और पश्चिम के बीच से निकल रही दिशा नैऋत्य दिशा या कोण कहलाती है। इस दिशा के देवता नैऋत देव हैं और इस दिशा के स्वामी ग्रह राहु और केतु हैं। इ स्थान को ऊंचा और भारी रखना चाहिए। साथ ही, यहां जल का कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
ऊर्ध्व दिशा:
आकाश दिशा ऊर्ध्व दिशा कहलाती है। इस दिशा के स्वामी ब्रह्म देव हैं। इस दिशा के कोई स्वामी ग्रह नहीं हैं। वास्तु का मानना है कि इस दिशा में मुंह करके की गई प्रार्थना हमेशा पूर्ण होती है।
पाताल या अधो दिशा:
जो दिशा धरती या पाताल की ओर जाती है उसे पाताल या अधो दिशा कहते हैं। इस दिशा के स्वामी नाग देवता हैं। इसी कारण से कोई भी निर्माण आरंभ करने से पूर्व या नए घर में जाने से पूर्व भूमि पूजन और गृह प्रवेश पूजन करने का विधान है।
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