जोशी मठ : जानिए धार्मिक आस्था के इस भूमि से बजरंगबली, भगवान बदरी, नरसिंह और आदि शंकाराचार्य का क्या हैं नाता
उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित जोशीमठ आस्था का पर्याय रहा है इसलिए ये सैलानियों के पसंदीदा पर्यटन स्थलों मे भी गिना जाता है। जोशीमठ का जिक्र धार्मिक पुराणों में भी मिलता है। महर्षि बाल्मिकी ने ‘रामायण’ में लिखा है कि ‘जब लक्ष्मणजी मेघनाद के शक्तिबाण के कारण मूर्छित हो गए थे और बजरंग बली ने संजीवनी बूटी लाने के लिए उड़ान भरी थी तो वो उत्तराखंड के जोशीमठ से ही गुजरे थे।’
कालनेमी राक्षस का वध
यहीं पर उन्हें रोकने के लिए असुर रावण ने ‘कालनेमी राक्षस’ को भेजा था और बजरंग बली ने जोशीमठ की ही धरती पर उसका वध किया था।
पांडवों को दिए थे दर्शन
केवल ‘रामायण’ में ही नहीं बल्कि ‘महाभारत’ में भी वेद व्यास ने जोशीमठ का जिक्र किया है। उनके मुताबिक पांडवों को जोशीमठ में ही बजरंगबली ने दर्शन दिए थे। यहीं पर उनका वृ्द्ध रूप दिखा था और कहा तो यह भी जाता है कि जोशीमठ से ही पांडवों ने स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया था।
जोशीमठ का सही नाम ‘ज्योतिमठ’
इससे अलावा यही वो धरती है जहां 8वीं सदी में धर्मसुधारक आदि शंकराचार्य को ज्ञान प्राप्त हुआ था और उन्होंने पहले मठ की स्थापना यहीं की थी इसलिए जोशीमठ को ‘ज्योतिमठ’ भी कहा जाता है।
शीतकाल में भगवान बदरी की विश्रामस्थली
यही नहीं शीतकाल में ‘भगवान बदरी’ यहीं निवास भी करते हैं, इसलिए जोशीमठ के लोग आपदा की इस घड़ी में ‘भगवान बदरी’ से सबकुछ ठीक कर देने की भी प्रार्थना कर रहे हैं।
भगवान विष्णु के रूप नरसिंह की तपोभूमि
जोशीमठ केवल आस्था का ही मानक नहीं है बल्कि इसे प्रकृति ने अपने दोनों हाथों से संवारा है। यहां की खूबसूरत पहाड़ियां इसकी सुंदरता में चार चांद लगाती हैं तो वहीं ललितशूर के तांब्रपत्र में जोशीमठ को कत्यूरी राजाओं की राजधानी ‘कार्तिकेयपुर’ बताया गया है। तो वहीं कुछ पुराणों में इसे भगवान विष्णु के रूप नरसिंह की तपोभूमि भी कहा गया है।
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