ऐसे करे ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी की आराधना जिससे होगी बुद्धि एवं विद्या की प्राप्ति
भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म के अनुसार हिन्दू धर्मशास्त्रों में माँ सरस्वती देवी की महिमा अनन्त है। बसन्त पंचमी के दिन श्री की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है। इस वर्ष 26 जनवरी, गुरुवार पंचमी का पावन पर्व हर्ष, उमंग, उल्लास के साथ मनाया जाएगा। बुद्धि, ज्ञान-विज्ञान, विद्या की अधिष्ठात्री देवी भगवती सरस्वती को विशेष आराधना का पर्व है। इस बार माघ शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि ‘बसन्त पंचमी’ के रूप में मनायी जाती है, इसे ‘ श्री पंचमी’ भी कहते हैं।
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माघ शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि 25 जनवरी, बुधवार को दिन में 12 बजकर 35 मिनट पर लगेगी जो अगले दिन 26 जनवरी, गुरुवार को प्रातः 10 बजकर 29 मिनट तक रहेगी। भगवती सरस्वती को विद्या, बुद्धि ज्ञान-विज्ञान की अधिष्ठात्री देवी के रूप में मान्यता प्राप्त है। विद्वत् एवं विद्यार्थी वर्ग माँ सरस्वती जी की पूजा-अर्चना हर्षोल्लास व उमंग के साथ मनाते हैं। आज के दिन भगवान् श्रीगणेशजी, श्रीविष्णुजी एवं माँ भगवती सरस्वती जी की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना करके मनोरथ की पूर्ति करते हैं। भगवान् श्रीकृष्ण ने देवी सरस्वती से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था।
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पूजा की विधि-
व्रतकर्ता को प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। अपने इष्ट देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना के पश्चात् माँ सरस्वती (बसन्त पंचमी) के बत पीले रंग लेना चाहिए। इस दिन व्रत-उपवास करके माँ सरस्वती जी को विभिन्न प्रकार के पुष्पों से सुसज्जित तथा सफेद व च आभूषणों से शृंगार करके पूजा-अर्चना करते हैं। साथ ही सफेद व पीले रंग के नैवेद्य, ऋतुफल एवं मेवे सहित केसरिया पीले रंग के मीठे चावल भी अर्पित किए जाते हैं। भगवती सरस्वती जी की अनुकम्पा प्राप्ति के लिए उनकी महिमा में सरस्वती जी के विविध स्तोत्र आदि का पाठ व मंत्र आदि का जाप करने की परम्परा है। विद्वानों और विद्यार्थियों के लिए आज का दिन खास है। उन्हें व्रत उपवास रखकर माता सरस्वती जी की पूर्ण आस्था श्रद्धा व विश्वास के साथ विधि-विधान पूर्वक पूजा- अर्चना करके अपने ज्ञानार्जन में वृद्धि करना चाहिए।
ज्योतिर्विद् विमल जैन
आज की जानकारी
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