कैसे और क्यों प्रकट हुई माता सरस्वती.. जानिए बसंत पंचमी का शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, प्रत्येक वर्ष बसंत पचंमी या सरस्वती पूजा का पर्व माघ शुक्ल पंचमी को मनाया जाता है. इस साल बसंत पंचमी 26 जनवरी को पड़ रही है. दरअसल माघ शुक्ल पंचमी तिथि 25 जनवरी की शाम से ही शुरू हो जाएगी, लेकिन उदयातिथि के अनुसार बसंत पंचमी 26 जनवरी को मनाई जाएगी. धार्मिक दृष्टिकोण से यह पर्व विद्यार्थियों के लिए विशेष महत्व रखता है।
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बसंत पंचमी के दिन से ही बसंत ऋतु का आगमन भी हो जाता है. मान्यता है कि इसी दिन सृष्टि पर मां सरस्वती की उपत्ति भी हुई थी. विशेषकर छात्रों, कला, संगीत आदि क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए बसंत पंचमी का दिन बेहद खास होता है. बसंत पंचमी के दिन पीले रंग का भी विशेष महत्व होता है. विद्या आरंभ या फिर किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत के लिए इस दिन को बेहद उत्तम माना जाता है।
शुभ मुहूर्त
माघ शुक्ल पंचमी आरंभ: 25 जनवरी 2023, दोपहर 12:34 से
माघ शुक्ल पंचमी समाप्त- 26 जनवरी 2023, सुबह 10:28 तक
उदयातिथि के अनुसार, बसंत पंचमी 26 जनवरी 2023 को मान्य होगी.
पूजा के लिए शुभ मुहूर्त- 26 जनवरी 2023, सुबह 07:12 से दोपहर 12:34 तक
पौराणिक धार्मिक मान्यता
मानव रचना के समय पृथ्वीलोक मौन था। धरती पर किसी प्रकार की कोई ध्वनि नहीं यह शांति देख त्रिदेव हैरान होकर एक दूसरे को देखने लगे, क्योंकि वे सृष्टि की इस रचना से संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लग रहा था कि इसमें किसी चीज की कमी रह गई है। इसी के चलते पृथ्वीलोक पर मौन व्याप्त है। तभी ब्रह्मा जी ने शिवजी और विष्णुजी से आज्ञा ली और अपने कमंडल से जल अंजलि में भरकर कुछ उच्चारण करते हुए पृथ्वी पर छिड़क दिया। ऐसा करते ही उस जगह कंपन शुरू हो गया और उस स्थान से एक शक्ति का प्रादुर्भाव हुआ। वहाँ एक शक्तिरूपी माता के एक हाथ में वीणा, दूसरा हाथ तथास्तु मुदा में था। इतना ही नहीं, उनके अन्य दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी। माता को देख त्रिदेवों ने देवी को प्रणाम किया और उनसे वीणा बजाने को प्रार्थना की। त्रिदेवों की प्रार्थना के बाद मां ने वीणा बजानी शुरू कर दी। जिससे तीनों लोकों में वीणा का मधुरनाद होने लगा। इससे पृथ्वी लोक के सभी जीव जंतु और जन भाव विभोर हो गए। ऐसा होने से लोकों में चंचलता आई। उस समय त्रिदेव ने मां को शारदे-सरस्वती, संगीत की देवी का नाम दिया। मां सरस्वती के ये नाम त्रिदेवों द्वारा दिए गए हैं। उन्हें मां शारदे, मां वीणापाणि, वीणावादनी, मां बागेश्वरी, मां भगवती और मां वाग्यदेवी आदि नामों से जाना जाता है।
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