पौराणिक कथा : जानिए आखिर कैसे हुई थी श्री राधा रानी की मृत्यु ?
ब्रज स्वामिनी, कृष्ण कामिनी, मन भाविनी।। श्री राधे। अर्थात ब्रज की पटरानी, कृष्ण से भी सुंदर और उनकी प्रिय, सबके मन को भाने वाली राधा रानी। राधा रानी के बारे में ऐसी बहुत सी चीजें हैं जिनके विषय में लोग जानने के लिए अति उत्सुक रहते हैं।
ये तो सभी जानते हैं कि श्री कृष्ण की आधार शक्ति थीं श्री राधा। कृष्ण के जीवन में उन्हें सर्वाधिक मात्र दो ही चीजें प्रिय थीं। एक तो उनकी बांसुरी और दूसरी राधा रानी। माना जाता है कि कृष्ण की बांसुरी से तब तक मधुर स्वर नहीं निकलते थे जब तक श्री राधा रानी बांसुरी को अपने होठों से न लगा लें।
राधा रानी को मिलने के लिए बुलाने का और रास लीला रचाने का अमाध्यम भी उन्हीं की बांसुरी थीं। माना जाता है कि कृष्ण को बांसुरी प्रिय ही इसलिए थी क्योंकि उसमें राधा राधी की श्वास बसी थी। इसी कारण से कृष्ण अपनी बांसुरी को हमेशा अपने पास ही रखते थे और अन्य किसी के हाथ में नहीं देते थे।
कथा के अनुसार, जहां एक ओर धर्म की स्थापना के लिए श्री कृष्ण ने मथुरा छोड़ा तो वहीं, राधा रानी कृष्ण विरह में प्रतिदिन उनकी पूजा करते हुए समय बिताने लगी। एक समय वो आया जब राधा रानी के पिता ने उनका विवाह किसी अन्य यादव से करा दिया और श्री कृष्ण का विवाह भी देवी रुक्मणि से हो चुका था।
कई वर्ष बीत जाने के बाद जब राधा रानी ने सभी सांसारिक कर्तव्यों का निर्वाह कर लिया था और श्री कृष्ण भी धर्म की स्थापना कर चुके थे तब राधा रानी कृष्ण से मिलने द्वारका पहुचीं थीं। जहां उन्होंने कृष्ण के साथ-साथ उनके समस्त परिवार से भेंट की। राधा रानी कुछ समय द्वारका ही रुकी।
मगर बाद में कृष्ण भक्ति में और भी लीन होने के लिए उन्होंने द्वारका के पास ही वन में अपना स्थान बना लिया। श्री राधा रानी वन में अकेले रहने लगीं और कृष्ण का नाम जप कर अपने अंतर ध्यान होने के समय की प्रतीक्षा करने लगीं। आखिरकार वह समय आया और कृष्ण ने राधा रानी को पुनः दर्शन दिए।
श्री कृष्ण जब राधा रानी से मिले तो वह राधा रानी की पीड़ा उनकी आंखों में देखते ही समझ गए और साथ ही यह भी राधा रानी उन्हें दोबारा देखकर कितनी प्रसन्न हैं। उन्होंने राधा रानी से वरदान मांगने को कहा तो उन्होंने बस यह इच्छा जताई कि वह आखिरी बार कृष्ण की बांसुरी की धुन सुनना चाहती हैं।
कृष्ण न बांसुरी बजानी शुरू की ओर तब तक बजाई जब तक राधा रानी अंतर ध्यान हो कृष्ण में ही विलीन नहीं हो गईं। कृष्ण की बांसुरी की धुन सुनते-सुनते राधा रानी ने अपना सांसारिक शरीर त्याग दिया और गोलोक में जा पहुंची। जहां से द्वापर की प्रेम लीला का आरंभ हुआ था और कृष्ण का इंतजार करने लगीं।
माना जाता है कि जब राधा रानी सांसारिकता का दूर अपने दैवीय रूप में गोलोक धाम में स्थित हुईं तब कृष्ण ने उस स्थान पर अपनी बांसुरी तोड़ दी और दो टुकड़े कर उसे फेंक दिया। राधा रानी के जाने के बाद से जब तक कृष्ण धरती पर रहे तब तक उन्होंने दोबारा बांसुरी नहीं बजाई।
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