जानिए क्यों मनाते है रंगभरी एकादशी, क्या है इसका काशी से कनेक्शन
रंगभरी एकादशी / ग्यारस का धार्मिक महत्व बहुत ज्यादा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान शिवजी माता पार्वती को पहली बार काशी में लेकर आए थे। अतः यह एकादशी बाबा विश्वनाथ के भक्तों के लिए विशेष महत्वपूर्ण मानी जाती है।
एकादशी फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में पड़ती है, ‘इस वर्ष रंगभरी एकादशी पर्व 3 मार्च 2023, दिन शुक्रवार को मनाया जा रहा है । इसे अन्य नाम आमलकी एकादशी से भी जाना जाता है। माना जाता है कि रंगभरी एकादशी के दिन से काशी में होली का पर्व शुरू हो जाता है, जो अगले छ दिनों तक मनाया जाता है।
रंग-गुलाल से मनती है रंगभरी एकादशी-
काशी भगवान शिव की नगरी है, वहां के लोगों के लिए रंगभरी एकादशी का दिन बहुत खास होता है। इस दिन भगवान शिव और माता गौरा, अपने गणों के साथ रंग-गुलाल से होली खेलते हैं। इस हर्षोल्लास के पीछे एक खास वजह हैं कि यह दिन भगवान शिव और माता गौरी के वैवाहिक जीवन में बड़ा महत्व रखता है।
रंगभरी एकादशी के दिन काशी में बाबा विश्वनाथ का विशेष श्रृंगार करके उनको दूल्हे के रूप में सजा कर गाजे-बाजे के साथ नाचते हुए बाबा विश्वनाथ जी का माता गौरा के साथ गौना कराया जाता है। इसी के साथ पहली बार माता पार्वती ससुराल के लिए प्रस्थान करती हैं और काशी में रंगोत्सव का आरंभ हो जाता है।
पौराणिक मान्यता
रंगभरी एकादशी के दिन ही भगवान शिव माता गौरा को विवाह के बाद पहली बार काशी लाए थे। इस उपलक्ष्य में भोलेनाथ ने अपने गणों के साथ रंग-गुलाल उड़ाते हुए खुशियां मनाई थी। यह पर्व खुशहाल जीवन के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है।
काशी में भोलेनाथ माता पार्वती के साथ रंग-गुलाल से होली खेलते हैं। फिर माता गौरा का गौनाकराया जाता है, तभी से रंगभरी एकादशी पर काशी में बाबा विश्वनाथ का यह पर्व बहुत ही खास तरीके से मनाया जाता है।
विशेष : होली है ..
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