प्रेरक कथा : जब भक्त का पहना माला पहने भगवान फिर क्या हुआ …
अखिलकोटी ब्रह्मांड नायक महाराजाधिराज मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के जन्म उत्सव की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।
लगभग सौ साल पुरानी बात है , श्री अयोध्या में एक वसिष्ठ गोत्रीय ब्राह्मण निवास करते थे । भगवान से भक्त जन किसी भी प्रकार का संबंध बनाते आए है । कोई पिता का, कोई भाई कान, कोई गुरु का तो कोई शिष्य का परंतु ऐसे महात्मा कम ही होते है जो श्री भगवान को अपना शिष्य मानते है ।
श्री रामजी द्वारा गुरुजी की प्रसादी माला धारण करना और पक्का शिष्यत्व
अयोध्या के पंडित श्री उमापति त्रिपाठी शास्त्री जी मानते थे कि मैं वशिष्ठ गोत्रीय ब्राह्मण राम जी के कुल का पुरोहित हूँ और वे मेरे यजमान है । श्री उमापति जी नित्य कनक भवन जाते और पुजारी को अपनी प्रसादी माला दे कर कहते हमारे यजमान को पहना देना । पुजारी भी सिद्ध थे अतः वे उमापति जी के भाव से अच्छी प्रकार परिचित थे । पुजारी जी ने कभी इस बार का विरोध नही किया ।
जब पुजारी जी माला पहना देते तब श्री उमापति जी खड़े होकर आशीर्वाद देते – वत्स ! तुम सदा प्रसन्न रहो ,सदा संतो के प्रिय बने रहो, तुम्हे किसी की नज़र ना लगे । उस समय के जो रसिक संत थे, वे सब उनके सिद्ध भाव का आदर करते थे परंतु कुछ कुछ ऐसे लोग भी थे जिह्ने उमापति जी का यह भाव पसन्द नही आता था । वे कहा करते थे – अरे ! यह बड़ भारी पंडित बनता है, ठाकुर जी को अपनी पहनी हुईं माला पहनाता है । यदि इसका इतना ही भाव है तो अपने घर मे जाकर करे , यहाँ मदिर में ऐसा करना ठीक नही । लोग क्या सिख लेंगे इनकी हरकतों से । उन लोगो ने पुजारी जी से शिकायत की और कहा कि कृपा करके आज के बाद आप ठाकुर जी को पहनी हुई माला नही अपितु अमनिया माला (नई माला) पहनाएं ।
पुजारी जी ने कहा ठीक है जैसा आप लोग कहे – कल से हम अमनिया माला पहना देंगे । अगले दिन उमापति जी आये तो लोगो ने कहा कि आपकी प्रसादी माला ठाकुर जी नही पहनेंगे । एक नई माला मंगा कर ठाकुर जी को पहनाई गयी । जैसै ही पहनाई गई, माला खंड खंड हो कर गिर गई। इंतने पर भी वे लोग नही माने । उन लोगों ने कहा शायद इसने फूल माला बनाने वाले को पैसे देकर कच्चे धागे मे माला बनवाई । अब खूब मोटे पक्के धागे मे माला पिरो कर ठाकुर जी को पहनाई गयी लेकिन धारण कराते ही वह भी खंड खंड हा कर गिर गई। अनेक मोटे धागे की मालाएं इसी प्रकार पहनाते ही गिर जाया करती । श्री उमापति जी ने कहा – देखो ! कनक बिहारी हमारा पक्का शिष्य है । यह अपने गुरु जी की प्रसादी माला पहने बिना दूसरी माला कैसे पहन सकता है , मर्यादा का पक्का है ।
लोगो ने कहा – चलो ठीक है अभी तुम अपनी प्रसादी माला कनक बिहारी सरकार को अर्पण करो, यदि उन्होंने धारण कर ली तो हम मानेंगे की तुम्हे कनक बिहारी जी गुरुदेव के रूप में स्वीकार करते है । उमापति जी ने माली से एक माला ली और ठाकुर कनक बिहारी को कहाँ – वत्स ! यह प्रसादी माला ग्रहण करो । तुम्हारा मंगल हो । ऐसा कहकर पुजारी जी ने कनक बिहारी जी को माला पहनाई और आश्चर्य की ठाकुर जी वह माला पहन ली। वह माला न टूटी और न गिरी ।
– पं.ऋषि राज मिश्रा (ज्योतिष आचार्य) दिल्ली
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