क्यों बद्रीनाथ में नहीं बजाया जाता शंख, जानें इसके पीछे का बड़ा रहस्य
हिन्दू धर्म में चार धाम यात्रा का सबसे बहुत महत्व है। चारधाम यात्रा में भक्त मोक्ष प्राप्त करने के लिए जाते हैं। सनातन धर्म में चार धाम यात्रा के बहुत मायने है, जो देवभूमि में मौजूद है। उत्तराखंड को इसलिए देवभूमि कहते हैं क्योंकि यहां पर चारों धाम मौजूद है। जिनमें शामिल है गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ। केदारनाथ धाम के कपाट 25 अप्रैल को खुलेंगे और बद्रीनाथ धाम के कपाट 27 अप्रैल को खुलेंगे। अगर हम बद्रीधाम की बात करें तो ये खास भगवान विष्णु को समर्पित है। भगवान विष्णु के भक्त इस बात को अच्छे से जानते हैं कि उनको शंख की ध्वनि कितनी पसंद है। लेकिन आपको ये बात जानकर हैरत होगी कि चार धामों में से एक धाम बद्रीनाथ में शंख नहीं बजाया जाता। हिमालय के पाद पर स्थित बद्रीनाथ धाम में शंखनाद नहीं किया जाता है।
शंख ना बजाने के पीछे धार्मिक मान्यताएं-
बद्रीनाथ में शंख ना बजाने के पीछे कई धार्मिक मान्यताएं भी हैं। शास्त्रों के अनुसार, मां लक्ष्मी बद्रीनाथ में ध्यान लगा रही थीं। तभी भगवान विष्णु ने शंखचूर्ण नामक एक राक्षस का वध किया था। लेकिन जीत पर शंखनाद नहीं किया गया क्योंकि माता लक्ष्मी ध्यान में थी, और भगवान विष्णु उनका ध्यान भंग नहीं करना चाहते थे।
बद्रीनाथ मंदिर के नाम में एक रहस्य भी है। पुराणों के अनुसार, जब भगवान विष्णु ध्यान में मग्न थे, उस वक्त बर्फ गिरने लगी थी, जिसकी वजह से मंदिर पूरा बर्फ से ढक गया। तब मा लक्ष्मी ने बद्री यानि बेर के पेड़ का रूप लिया और भगवान विष्णु पर गिरने वाली बर्फ से बचाव किया।
इसके पीछे का रहस्य-
बद्रीनाथ में शंख ना बजाने के पीछे कई वैज्ञानिक फैक्टर काम करते हैं। यहां बहुत अधिक ठंड होती है और बर्फ पड़ती रहती है, अगर यहां शंखनाद होगा तो ध्वनि पहाड़ों से टकराकर प्रतिध्वनि पैदा कर देगी, जिससे एवलॉन्च आ सकता है, क्योंकि बर्फ में दरार पड़ने लग जाती है। ये सबसे बड़ा कारण है कि यहां पर आदिकाल से ही शंखनाद नहीं बजाया जाता।
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