विशेष : अक्षय तृतीया की कथा है खास, इसे सुनने मात्र से बन जाएंगे पुण्य के भागीदार
पंचांग के अनुसार, हर साल वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जाता है। हिंदू धर्म में इस दिन की विशेष महत्ता बताई गयी है।
अक्षय तृतीया के दिन किये गए दान से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि इस दिन जरूरतमंदों की मदद करके अगले जन्म को संवारा जा सकता है।
अक्षय तृतीया के दिन पूरे विधि-विधान से भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और कुबेर की पूजा की जाती है। इससे घर में सुख-समृद्धि और संपन्नता का वास होता है। अक्षय तृतीया के दिन एक विशेष कथा का पाठ भी किया जाता है। मान्यता है कि इस कथा के श्रवण मात्र से जातक का कल्याण होता है। अक्षय तृतीया की कथा में भी आपको दान के महत्व के बारे में पता चलेगा।
अक्षय तृतीया की कथा
भविष्य पुराण की कथा के अनुसार, धर्मदास नाम का एक वैश्य शाकलनगर का निवासी था। वह एक धार्मिक प्रवृत्ति व्यक्ति था। वह सदैव पूजा पाठ और दान आदि करता था। वह दान पुण्य कर्म में विश्वास करता था। वह हमेशा ब्राह्मणों की सेवा करता और भगवान के भक्ति-भजन में अपना समय बिताता था। एक दिन उसे अक्षय तृतीया के बारे में जानकारी हुई। उसे किसी ने बताया कि अक्षय तृतीया के दिन किये गए दान से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। तब उसने तय किया कि इस बार अक्षय तृतीया पर वह पूजा पाठ और दान करेगा।
वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को वह सुबह ही जग गया। उसने पवित्र नदी में स्नान किया। इसके बाद पितरों को स्मरण कर उनकी पूजा की। उनके लिए तर्पण किया। अपने इष्ट देवता की पूजा-आराधना की। फिर उसने घर पर ब्राह्मणों को भोजन करने के लिए आमंत्रित किया। भोजन कराने के बाद उन्हें गेहूं, चना, सोना, दही, गुड़ आदि का दान भी दिया।
अक्षय तृतीया के दिन धर्मदास के घर ऐसा सेवा सत्कार पाकर सभी ब्राह्मण बहुत खुश हुए और वे उसे खूब सारा आशीर्वाद देकर अपने घर चले गए। अब वह हर साल अक्षय तृतीया पर इस विधि से ही पूजा पाठ और दान करता था। मगर उसके ऐसा करने से घरवाले खुश नहीं थे। पत्नी ने कहा कि अक्षय तृतीया पर इस तरह के कार्य करना बंद कर दो। घरवाले उससे परेशान होकर उसके खिलाफ हो गए, लेकिन धर्मदास ने अक्षय तृतीया पर पूजा पाठ और दान करना जारी रखा। परिवार की मनाही के बाद भी इस कार्य को बंद नहीं किया।
कई सालों तक ऐसा ही चलता रहा। एक दिन धर्मदास का निधन हो गया। उनका अगला जन्म द्वारका नगरी में हुआ। वह कुशावती के राजा बने। अक्षय तृतीया के दिन किए गए पूजा पाठ और दान के मिले अक्षय पुण्य से अगले जन्म में राजयोग बना और उससे उन्हें राजा का पदभार मिला। इस जन्म में भी वह धार्मिक व्यक्ति थे। उसके पास धन और वैभव की कोई कमी नहीं थी। उनका जीवन लोगों की मदद करके सुख से बीता।
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