एक मंदिर जहां नरसिंह देवता के पतले हो रहे हाथ, आखिर क्या है रहस्य, जानिए
जोशीमठ का नरसिंह देवता का मंदिर लगभग 12 हज़ार साल प्राचीन मंदिर है। एक मत है कि मंदिर की स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी। पौराणिक काल में इस जगह को कार्तिकेयपुर नाम से जाना जाता था। हिंदू ग्रंथों के अनुसार नरसिंह देवता भगवान विष्णु जी के चौथे अवतार थे।नृसिंह बदरी मंदिर में भगवान की मूर्ति करीब 10 इंच की है और यह शालिग्राम पत्थर से बनी है। मंदिर में भगवान नृसिंह की मूर्ति एक कमल पर विराजमान है। भगवान नृसिंह के अलावा मंदिर में बद्रीनारायण, कुबेर, उद्धव की मूर्तियां भी विराजमान हैं। वहीं भगवान नृसिंह के राइट साइड की तरफ राम, सीता, हनुमानजी और गरुड़ की मूर्तियां भी स्थापित है और लेफ्ट साइड में कालिका माता की प्रतिमा स्थापित है।
ग्रंथों के अनुसार उत्तराखंड भगवान शंकर की भूमि है। लेकिन यहीं जोशीमठ में भगवान विष्णु का ऐसा धाम है जहां दर्शन पूजन से हर मनोकामना पूरी होती है। यहां नृसिंह मंदिर की स्थापना को लेकर कई मत हैं। कुछ विद्वान पांडवों की स्वर्ग रोहिणी यात्रा के दौरान इसकी स्थापना की बात कहते हैं तो कुछ विद्वान यहां आदि शंकराचार्य की ओर से भगवान विष्णु के शालिग्राम की स्थापना किए जाने की बात कहते हैं। वहीं राजतरंगिणी में राजा ललितादित्य मुक्तापीड की ओर से यहां नृसिंह मंदिर की स्थापना की बात कही गई है। वहीं कुछ लोग इसे स्वयंभू मानते हैं।
हाथ हो रही पतली
मंदिर में स्थित भगवान नृसिंह की प्रतिमा की एक भुजा पतली है और यह हर साल धीरे-धीरे पतली होती जा रही है। केदारखंड के सनत कुमार संहिता में बताया गया है कि एक दिन भगवान नृसिंह का यह हाथ टूट कर गिर जाएगा। जिस दिन यह घटना होगी, नर और नारायण नाम के पहाड़ आपस में मिल जाएंगे और भगवान बदरीनाथ के दर्शन नहीं हो पाएंगे। तब जोशीमठ के तपोवन क्षेत्र में भविष्य बदरी मंदिर में बदरीनाथ के दर्शन होंगे।
मान्यता है कि आदिशंकराचार्य ने यहीं शहतूत पेड़ के नीचे ज्ञान प्राप्त किया था। यहीं शंकर भाष्य की रचना की थी। यहां आदिशंकराचार्य ने पहले मठ की स्थापना की थी, यहां अथर्ववेद का पाठ पवित्र माना जाता है। जोशीमठ मंदिर के अलावा भी कई मंदिर हैं, जो हिंदू धर्म के मानने वालों की आस्था के बड़े केंद्र हैं।
अनबूझ शिलालेख
भविष्य बदरी मंदिर के पास एक पत्थर है, जिस पर आदिगुरु शंकराचार्य ने भविष्यवाणी भी लिखी है। लेकिन आज तक कोई भी इस भविष्यवाणी को पढ़ नहीं सका है। जोशीमठ का संबंध रामायण और महाभारत काल से भी है। बताया जाता है कि भगवान हनुमानजी संजीवनी बूटी की खोज में यहां आए थे, तब उनका युद्ध कालनेमी असुर से हुआ था। जहां पर हनुमानजी ने असुर को मारा वहां की जमीन आज भी लाल कीचड़ जैसी दिखाई दे रही है।
कथा ये भी है प्रचलित
एक कथा जोशीमठ में प्रचलित है कि, एक समय में यहां पर वासुदेव नाम के एक राजा का शासन था। एक दिन राजा शिकार खेलने के लिए वन में गए हुए थे। इसी समय भगवान नृसिंह राजा के महल में पधारे औऱ महारानी से भगवान नृसिंह ने भोजन के लिए कहा। महारानी ने आदर पूर्वक भगवान को भोजन करवाया। भोजन के पश्चात भगवान के राजा के बिस्तर पर आराम करने के लिए कहा। इस बीच राजा शिकार से लौट आए और अपने कक्ष में पहुंचे। राजा ने देखा की एक पुरुष उनके बिस्तर पर लेटा हुआ है। राजा क्रोध से तमतमा उठा और तलवार से उस पुरुष पर वार कर दिया। तलवार लगते ही उस पुरुष के बाजू से खून की बजाय दूध बहने लगा। और पुरुष भगवान नृसिंह के रूप में बदल गया। राजा को अपनी भूल का अहसास हुआ और क्षमा याचना करने लगा। भगवान नृसिंह ने कहा कि तुमने जो अपराध किया है उसका दंड यह है कि तुम अपने परिवार के साथ जोशीमठ छोड़ दो और कत्यूर में जाकर बस जाओ। साथ ही भगवान ने कहा कि तुम्हारे प्रहार के प्रभाव से मंदिर में जो मेरी मूर्ति है उसकी एक बाजू पतली होती जाएगी और जिस दिन वह पतली होकर गिर जाएगी उस दिन राजवंश का अंत हो जाएगा।
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