Chaturmas 2023: चातुर्मास आज से प्रारंभ, जानिए इसके मायने और महत्व
चातुर्मास मनुष्य की आत्मिक, आध्यात्मिक और मानसिक चेतना जागृत करने का सिद्धभूत समय होता है। चातुर्मास में संयम, व्रत, यम-नियम का पालन करके मनुष्य स्वयं बाह्यांतर शुद्धि करने में समझ बनता है। चातुर्मास में नियमपूर्वक, संयमपूर्वक रहकर मनुष्य में जो चेतना और ऊर्जा उत्पन्न होती है वह उसे प्रत्येक क्षेत्र में उन्नति प्रदान करने में सहायक होती है। इस बार चातुर्मास में एक मास की अधिकता प्राप्त होना अत्यंत शुभ है। अपनी चेतना जगाने के लिए अधिक समय मिल रहा है।
चातुर्मास में अपनी आध्यात्मिक उन्नति
चातुर्मास आज से प्रारंभ होकर 23 नवंबर 2023 तक रहेगा। 148 दिन के चातुर्मास में अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिए प्रत्येक मनुष्य को कोई एक नियम अवश्य बनाना चाहिए। चातुर्मास वर्षाकाल का समय होता है जब साधु-संत एक स्थान पर रहकर अपनी साधनाएं संपन्न करते हैं। जैन धर्म में भी चातुर्मास का विशेष महत्व होता है। निरंतर विहार करते रहने वाले जैन संत-मुनि चातुर्मास में एक स्थान पर ठहर जाते हैं। कई संत इस दौरान मौन रहकर साधनाएं करते हैं।
कुल 148 दिन के चातुर्मास में जप, तप, दान-धर्म, मंत्र सिद्धि किए जाते हैं। चातुर्मास में संयमित जीवन जीने से अनेक प्रकार की सिद्धियां प्राप्त की जा सकती हैं। वैज्ञानिक दृष्टकोण से भी चातुर्मास विशेष होता है। क्योंकि वर्षाकाल में अनेक प्रकार के कीटाणु वातावरण में पनपते हैं जो रोगों का कारण बनते हैं। शरीर की पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। पत्तेदार सब्जियों आदि में कीड़े पनपने लगते हैं जो रोगी बना सकते हैं। इसलिए इन दिनों में खानपान का भी विशेष ध्यान रखा जाता है।
प्रत्येक मास के विशिष्ट देव और उनकी पूजा
चामुर्मास आषाढ़ मास के अंतिम पांच दिनों से प्रारंभ होता है। इन पांच दिनों में भगवान वामन की पूजा की जाती है।
इसके बाद श्रावण मास प्रारंभ होता है। इस बार श्रावण का अधिकमास होने से दो श्रावण रहेंगे। इसमें भगवान शिव की उपासना की जाती है।
श्रावण के बाद भाद्रपद मास प्रारंभ होता है। इस मास में भगवान श्री गणेश और श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है।
भाद्रपद के बाद आश्विन मास में देव कार्य और पितृ कार्य किए जाते हैं। इस मास में देवी आराधना विशेष फलदायी रहती है।
आश्विन के बाद कार्तिक मास में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का पूजन सर्वसिद्धिदायक होता है।
चातुर्मास में अपनाएं नियम
शास्त्रों का निर्देश है कि चातुर्मास में संयमित जीवन जीना चाहिए। काम, क्रोध, लोभ, मोह से दूर रहते हुए ईश्वर भक्ति में मन रमाएं रहें।
चातुर्मास में देव पूजन, भागवत कथा पाठ और श्रवण, रामायण पाठ। अपने गुरु द्वारा प्रदत्त मंत्र का जाप करने से आध्यात्मिक उन्नति होती है।
चातुर्मास में खानपान संतुलित और सात्विक रखना चाहिए। अधिक तीखा, तला- मिर्च-मसाले युक्त भोजन से परहेज करें। अधिकांश फलाहार पर रहें।
चातुर्मास में यात्राएं न करें। एक स्थान पर रहते हुए प्रभु भक्ति में लीन रहें।
चातुर्मास में पापाचार, झूठ बोलना, किसी का धन हरण करना, पराए स्त्री-पुरुष पर दृष्टि डालना आदि कर्म बिल्कुल न करें।
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