Lalita Panchami 2023: कब है ललिता पंचमी व्रत, देवी ललिता का पूजन देगा सुख-समृद्धि और धन
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन ललिता पंचमी व्रत पूजन किया जाता है। यह पूजन इस बार 19 अक्टूबर 2023 गुरुवार को किया जाएगा। गुरुवार और रवियोग बनने से इस दिन किया गया देवी ललिता का पूजन सुख-समृद्धि, धन संपदा में वृद्धि करने वाला रहेगा।
देवी ललिता दस महाविद्याओं में से एक है और इन्हें त्रिपुर सुंदरी और षोडशी के नाम से भी जाना जाता है। देवी ललिता का पूजन करने से समस्त कष्टों का निवारण होता है। परिवार में सुख-समृद्धि आती है और समस्त रोगों का नाश होता है।
कैसे करें पूजन ललिता पंचमी का पूजन
ललिता पंचमी का पूजन अत्यंत सिद्ध और समृद्धि देने वाला है किंतु इसमें शुद्धता का अत्यंत ध्यान रखना होता है। यह शुद्धता तन और मन दोनों की होने आवश्यक है। ललिता पंचमी के दिन प्रात: स्नानादि से निवृत्त होकर अपने घर के पूजा स्थान को झाड़ू पोछा लगाकर साफ-स्वच्छ कर लें।
अब उत्तर दिशा की ओर मुंह करके लाल कपड़े के आसन पर बैठें। एक चौकी पर लाल कपड़ बिछाकर उस पर देवी ललिता का चित्र या मूर्ति स्थापित करें। ललिता पंचमी व्रत का सकाम या निष्काम संकल्प लें। फिर पंचदेवों का पूजन करें। इनमें श्रीगणेश, भगवान शिव, माता दुर्गा, श्रीहरि विष्णु भगवान और सूर्य देव का पूजन करें।
इसके बाद ललिता सुंदरी माता की आराधना करें। उनसे सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करें। माता ललिता के सामने शुद्ध घी का दीपक लगाएं और ललिता सहस्रनामावली का पाठ करें। ललिता पंचमी व्रत कथा पढ़ें या सुनें। खीर का नैवेद्य लगाएं। पूजन में लाल पुष्प, कमल या गुलाब के अवश्य उपयोग करें।
ललिता पंचमी व्रत कथा
किसी समय की बात है। देवी सती के पिता राजा दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ का आयोजन किया। इसमें समस्त देवी-देवताओं को आमंत्रित किया किंतु भगवान शिव को निमंत्रित नहीं किया। इस कारण शिवजी ने सती को भी यज्ञ में जाने से रोका किंतु सती बिन बुलाए ही पिता के यज्ञ में शामिल होने पहुंच गई। वहां देखा कि सभी लोग उनके पति शिव का तिरस्कार कर रहे थे। पिता दक्ष भी शिवजी की निंदा कर रहे थे। इससे व्यथित होकर सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। देवी सती के वियोग में भोलेनाथ उनकी पार्थिव देह को लेकर संपूर्ण ब्रह्मांड में भटकने लगे। भोलेनाथ का मोह भंग करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती की देह के टुकड़े कर दिए। जहां-जहां सती के अंग गिरे वहां शक्तिपीठ बन गए। नैमिषारण्य में सती का हृदय गिरा जिसे भगवान शिव ने अपने हृदय में धारण कर लिया, इसी कारण वह ललिता कहलाई।
संपदा प्रदान करेगा गुरुवार और रवियोग का संयोग
ललिता पंचमी के दिन 19 अक्टूबर को गुरुवार के साथ रवियोग का संयोग बन रहा है। इस दिन सौभाग्य और शोभन योग भी रहेंगे जिनमें किया गया ललिता पंचमी का पूजन धन संपदा प्रदान करेगा।
तिथि काल
पंचमी तिथि प्रारंभ : 18 अक्टूबर रात्रि 1:11 से
पंचमी तिथि पूर्ण : 19 अक्टूबर रात्रि 12:31 तक
पूजन मुहूर्त
लाभ : दोपहर 12:12 से 1:38
अभिजित : प्रात: 11:48 से दोप 12:35
शुभ : सायं 4:31 से 5:57
अमृत : सायं 5:57 से 7:31
लग्न अनुसार मुहूर्त
वृश्चिक : प्रात: 8:40 से 10:56
कुंभ : दोप 2:47 से सायं 4:20
वृषभ : सायं 7:36 से रात्रि 9:35
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