Brihaspati Chalisa: कर्ज में डूबे हैं या नहीं हो रही है शादी तो गुरुवार को जरूर करें वृहस्पति चालीसा का पाठ
गुरुवार का दिन वृहस्पति भगवान को समर्पित है। भगवान का ये रूप बहुत मोहक है। कहते हैं कि इन्हें पीला रंग बहुत पसंद है इसलिए इन्हें पीला वस्त्र और पीला प्रसाद चढ़ाया जाता है। माना जाता है कि जो कोई भी इनकी पूजा सच्चे मन से करता है उसकी हर मनोकामना पूरी होती है और उसके सारे पापों का अंत होता है।
वृहस्पति भगवान अपने भक्त की हर इच्छा को पूरी करते हैं, जैसे कि अगर आपकी शादी नहीं हो रही, आपके घर में बच्चे नहीं है या फिर आपको नौकरी नहीं मिल रही तो इस दिन आप वृहस्पति भगवान की विशेष पूजा कीजिए, देखिएगा आपकी समस्या का अंत कुछ दिनों में हो जाएगा।
धन लाभ और यश की प्राप्ति
वृहस्पति भगवान की पूजा करने से इंसान को धन लाभ होता है उसे यश की प्राप्ति होती है और वो हर तरह के सुख का भागीदार बनता है। इस दिन हर किसी को वृहस्पति भगवान की पूजा निम्नलिखित चालीसा और आरती के साथ करनी चाहिए, ऐसा करने से भक्त को दोगुने फल की प्राप्ति होती है
श्री ब्रहस्पति देव चालीसा का महत्व
श्री ब्रहस्पति देव चालीसा का पाठ करने से सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है। श्री ब्रहस्पति देव की कृपा से सिद्धि-बुद्धि, ज्ञान-विवेक की प्राप्ति होती है। श्री ब्रहस्पति देव चालीसा के प्रभाव से इंसान धनी बनता है, वो तरक्की करता है। वो हर तरह के सुख का भागीदार बनता है, उसे कष्ट नहीं होता।
श्री बृहस्पतिदेव चालीसा
||दोहा||
प्रन्वाऊ प्रथम गुरु चरण, बुद्धि ज्ञान गुन खान
श्रीगणेश शारदसहित, बसों ह्रदय में आन
अज्ञानी मति मंद मैं, हैं गुरुस्वामी सुजान
दोषों से मैं भरा हुआ हूं तुम हो कृपा निधान।
||चौपाई||
जय नारायण जय निखिलेशवर, विश्व प्रसिद्ध अखिल तंत्रेश्वर
यंत्र-मंत्र विज्ञानं के ज्ञाता , भारत भू के प्रेम प्रेनता
जब जब हुई धरम की हानि, सिद्धाश्रम ने पठए ज्ञानी
सच्चिदानंद गुरु के प्यारे,सिद्धाश्रम से आप पधारे
उच्चकोटि के ऋषि-मुनि स्वेच्छा, ओय करन धरम की रक्षा
अबकी बार आपकी बारी ,त्राहि त्राहि है धरा पुकारी
मरुन्धर प्रान्त खरंटिया ग्रामा, मुल्तानचंद पिता कर नामा
शेषशायी सपने में आये, माता को दर्शन दिखलाये
रुपादेवि मातु अति धार्मिक, जनम भयो शुभ इक्कीस तारीख
जन्म दिवस तिथि शुभ साधक की, पूजा करते आराधक की
जन्म वृतन्त सुनाये नवीना, मंत्र नारायण नाम करि दीना
नाम नारायण भव भय हारी, सिद्ध योगी मानव तन धारी
ऋषिवर ब्रह्म तत्व से ऊर्जित, आत्म स्वरुप गुरु गोरवान्वित
एक बार संग सखा भवन में, करि स्नान लगे चिन्तन में
चिन्तन करत समाधि लागी, सुध-बुध हीन भये अनुरागी
पूर्ण करि संसार की रीती, शंकर जैसे बने गृहस्थी
अदभुत संगम प्रभु माया का, अवलोकन है विधि छाया का
युग-युग से भव बंधन रीती, जंहा नारायण वाही भगवती
सांसारिक मन हुए अति ग्लानी, तब हिमगिरी गमन की ठानी
अठारह वर्ष हिमालय घूमे, सर्व सिद्धिया गुरु पग चूमें
त्याग अटल सिद्धाश्रम आसन, करम भूमि आये नारायण
धरा गगन ब्रह्मण में गूंजी, जय गुरुदेव साधना पूंजी
सर्व धर्महित शिविर पुरोधा, कर्मक्षेत्र के अतुलित योधा
ह्रदय विशाल शास्त्र भण्डारा, भारत का भौतिक उजियारा
एक सौ छप्पन ग्रन्थ रचयिता, सीधी साधक विश्व विजेता
प्रिय लेखक प्रिय गूढ़ प्रवक्ता, भुत-भविष्य के आप विधाता
आयुर्वेद ज्योतिष के सागर, षोडश कला युक्त परमेश्वर
रतन पारखी विघन हरंता, सन्यासी अनन्यतम संता
अदभुत चमत्कार दिखलाया, पारद का शिवलिंग बनाया
वेद पुराण शास्त्र सब गाते, पारेश्वर दुर्लभ कहलाते
पूजा कर नित ध्यान लगावे, वो नर सिद्धाश्रम में जावे
चारो वेद कंठ में धारे, पूजनीय जन-जन के प्यारे
चिन्तन करत मंत्र जब गायें,विश्वामित्र वशिष्ठ बुलायें
मंत्र नमो नारायण सांचा, ध्यानत भागत भुत-पिशाचा
प्रातः कल करहि निखिलायन, मन प्रसन्न नित तेजस्वी तन
निर्मल मन से जो भी ध्यावे, रिद्धि सिद्धि सुख-सम्पति पावे
पथ करही नित जो चालीसा, शांति प्रदान करहि योगिसा
अष्टोत्तर शत पाठ करत जो, सर्व सिद्धिया पावत जन सो
श्री गुरु चरण की धारा. सिद्धाश्रम साधक परिवारा
जय-जय-जय आनंद के स्वामी, बारम्बार नमामी नमामी
बृहस्पति मंत्र
ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः।
ॐ बृं बृहस्पतये नमः।
ओम बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु
यद्दीदयच्छवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्।।
आरती
जय वृहस्पति देवा,
ऊँ जय वृहस्पति देवा ।
छिन छिन भोग लगाऊँ,
कदली फल मेवा ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
तुम पूरण परमात्मा,
तुम अन्तर्यामी ।
जगतपिता जगदीश्वर,
तुम सबके स्वामी ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
चरणामृत निज निर्मल,
सब पातक हर्ता ।
सकल मनोरथ दायक,
कृपा करो भर्ता ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
तन, मन, धन अर्पण कर,
जो जन शरण पड़े ।
प्रभु प्रकट तब होकर,
आकर द्घार खड़े ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
दीनदयाल दयानिधि,
भक्तन हितकारी ।
पाप दोष सब हर्ता,
भव बंधन हारी ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
सकल मनोरथ दायक,
सब संशय हारो ।
विषय विकार मिटाओ,
संतन सुखकारी ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
जो कोई आरती तेरी,
प्रेम सहित गावे ।
जेठानन्द आनन्दकर,
सो निश्चय पावे ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
सब बोलो विष्णु भगवान की जय ।
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डिसक्लेमर
इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता को जाँच लें । सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/ प्रवचनों /धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। जानकारी पूरी सावधानी से दी जाती हैं फिर भी आप पुरोहित से स्पस्ट कर लें।
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