प्रदोष जानिये प्रदोष काल का शुभ मुहूर्त और कैसे करे पूजन
आश्विन मास के शुक्लपक्ष की त्रयोदशी तिथि 7 अक्टूबर, शुक्रवार को प्रात: 7 बजकर 27 मिनट पर लगेगी, जो कि उसी दिन 7 अक्टूबर, शुक्रवार को अर्धरात्रि के पश्चात 5 बजकर 26 मिनट तक रहेगी। जिसके फलस्वरूप प्रदोष व्रत 7 अक्टूबर, शुक्रवार को रखा जाएगा। प्रदोषकाल का समय सूर्यास्त से 48 मिनट या 72 मिनट का माना जाता है। सम्पूर्ण दिन निराहार रहते हुए सायंकाल पुन: स्नान करके स्वच्छ व धारण करके प्रदोषकाल में भगवान शिवजी की पूजा-अर्चना उत्तराभिमुख होकर करने का विधान है।
ऐसे करे प्रदोष व्रत व्रतकर्ता को प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर स्नान-ध्यान, पूजा-अर्चना के पश्चात् अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर प्रदोष व्रत का संकल्प लेना चाहिए। दिनभर निराहार रहकर सायंकाल पुन: स्नान करके स्वच्छ वस्ïत्र पहन कर प्रदोष काल में भगवान शिवजी की विधि-विधान पूर्वक पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार श्रद्धा-भक्तिभाव के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए। देवाधिदेव शिवजी का अभिषेक करके उन्हें वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, सुगन्धित द्रव्य के साथ बेलपत्र, कनेर, धतूरा, मदार, ऋतुपुष्प, नैवेद्य आदि अर्पित करके धूप-दीप के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
ऐसी धार्मिक मान्यता है कि व्रतकर्ता अपने मस्तिष्क पर भस्म और तिलक लगाकर देवाधिदेव शिवजी की पूजा करें तो पूजा शीघ्र फलित होती है। देवाधिदेव महादेव जी की महिमा में प्रदोष स्तोत्र का पाठ एवं स्कन्दपुराण में वॢणत प्रदोष व्रत कथा का पठन या श्रवण अवश्य करना चाहिए। प्रदोष व्रत से सम्बन्धित कथाएँ भी सुननी चाहिए। यह व्रत महिला एवं पुरुष दोनों के लिए समानरूप से फलदायी है। प्रदोष व्रत से जीवन के समस्त दोषों के शमन के साथ ही जीवन में सुख, समृद्धि व खुशहाली मिलती है।